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ग़ज़ल "बहरे - रमल मुसम्मन मह्जूफ़"

==========ग़ज़ल===========
बहरे - रमल मुसम्मन मह्जूफ़
वज्न- २ १ २ २- २ १ २ २ - २ १ २ २- २ १ २

पीर है खामोश भर के आह चिल्लाती नहीं
वो सिसकती है ग़मों में नज्म तो गाती नहीं

बाद दंगों के उडी हैं इस कदर चिंगारियाँ
आग है सारे दियों में तेल औ बाती नहीं

जिन सफाहों पर गिराया हर्फे-नफ़रत का जहर
हैं सलामत तेरे ख़त वो दीमकें खाती नहीं

चाँद को पाने मचलता जब समंदर का जिगर
मौज उठती है बहुत पर चाँद छू पाती नहीं

एक कोने में रखी जो सीख देती थी हमें
मौन है सूनी वो खटिया आज बतियाती नहीं

आधुनिक संसार में अब ज्ञान गूगल दे रहा
मान मर्यादा की शिक्षा छात्र को भाती नहीं

जिस हवा में बह गए हिटलर से तानाशाह भी
वो बगावत की हवा तूफ़ान अब लाती नहीं

आँख मूंदे खोजता है रोशनी नादान पर
ये अँधेरी राह तो मंजिल तलक जाती नहीं

वक़्त से ही सीखते हैं ये हुनर अब हम सभी
ज्यों नदी की धार पीछे लौट कर जाती नहीं

वो सनम जो बीच चौराहे खड़ा डंडा लिए
एक दिन पूजें उसे सब याद फिर आती नहीं

"दीप" जबसे पीठ पर खंजर चलाया यार ने
कर रहे हैं पीठ पक्की वीर अब छाती नहीं


संदीप पटेल "दीप"

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Comment by नादिर ख़ान on October 16, 2012 at 5:19pm

संदीप जी बहुत उम्दा भाव है गज़ल के बधाई ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 16, 2012 at 4:41pm

आप बस धैर्य रखें संदीप भाई.  देखियेगा, आप स्वयं ही सधते चले जायेंगे.. 

पीर है खामोश, भर के आह, चिल्लाती नहीं
वो सिसकती है ग़मों में नज्म तो गाती नहीं.. .  इसके सानी में ’नज़्म भी’ कहने से क्या बात और खुल कर निखर सकती है ?

अब तो मूलभूत नियमों पर नहीं बल्कि ग़ज़ल की महीनी की बातें होंगीं, कहन की बातें होंगीं, रेशनलाइजेशन की बातें होंगीं. हम सब बहाव में साथ-साथ हैं...

जिस हवा में बह गए हिटलर से तानाशाह भी
वो बगावत की हवा तूफ़ान अब लाती नहीं

इस शेर में ’हवा’ का दो दफ़े होना खटक रहा है, इसे दुरुस्त करने की कोशिश करें.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 16, 2012 at 4:18pm

आदरणीय गुरुवर सौरभ सर जी सादर प्रणाम
आपकी इस प्रतिक्रिया पे कुर्बान हो गया आपका ये चेला
यूँ लगा के बस किसी जंग के मैदान में खड़े लड़ रहे जवान को आज विजय श्री मिल गयी हो
लेकिन मुझे पता है की अब ये जंग और भी कठिन है ये तो बस चक्रव्यूह का पहला घेरा है जिसे संभवतः में भेदने में सफल हुआ हूँ
किन्तु आपने उत्साह इतना बढाया है की अगले घेरे को भेदने के लिए एक उमंग जाग उठी है
ये स्नेह और आशीष यूँ ही बनाये रखिये सर जी
अब और क्या कहूँ शब्द ही नहीं है निःशब्द हूँ और हतप्रभ भी आपकी प्रतिक्रिया से गुरुवर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 16, 2012 at 3:36pm

संदीप भाई !!  इसे कहते हैं आज की ग़ज़ल.. . ग़ज़लधर्मिता ’सिखाने’ वाले देख लें.  खैर

किस शेर को उद्धृत करूँ !? अभी तक कुल आठ अश’आर लोगों में साझा कर चुका हूँ.  शिल्प अपनी जगह, भाव को इस महीनी से गूँथा गया है कि दिल अश-अश कर रहा है.  दिल से बधाई लें, भाई. ..

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