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आ प्रिये कि प्रेम का हो एक नया शृंगार अब....

आ प्रिये कि हो नयी
कुछ कल्पना - कुछ सर्जना,
आ प्रिये कि प्रेम का हो
एक नया शृंगार अब.....

तू रहे ना तू कि मैं ना
मैं रहूँ अब यूं अलग
हो विलय अब तन से तन का
मन से मन का - प्राणों का,
आ कि एक - एक स्वप्न मन का
हो सभी साकार अब....

अधर से अधरों का मिलना
साँसों से हो सांस का,
हो सभी दुखों का मिटना
और सभी अवसाद का,
आ करें हम ऊर्जा का
एक नया संचार अब.....

चल मिलें मिलकर छुएं
हम प्रेम का चरमोत्कर्ष,
चल करें अनुभव सभी
आनंद एवं सारे हर्ष,
आ चलें हम साथ मिलकर
प्रेम के उस पार अब....

ध्यान की ऐसी समाधि
आ लगायें साथ मिल,
प्रेम की इस साधना से
ईश्वर भी जाए हिल,
आ करें ऐसा अलौकिक
प्रेम का विस्तार अब....

- VISHAAL CHARCHCHIT

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Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on September 3, 2012 at 12:17am

भाई Arun Kumar Pandey जी अभिभूत हूँ आपकी भावपूर्ण टिप्पणी से !!!

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on September 3, 2012 at 12:15am

विन्देश्वरी भाई जी शुक्रिया !!!

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on September 3, 2012 at 12:12am

ह्रदय से आभार deepti !!!

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 2, 2012 at 7:22pm

"आ प्रिये कि प्रेम का हो एक नया श्रृंगार अब...."

ध्यान की ऐसी समाधि  आ लगायें साथ मिल,
प्रेम की इस साधना से   ईश्वर भी जाए हिल,
सुन्दर भावों की अलौकिक काव्यात्मक रचना के लिए बधाई और 
माह की सर्वश्रेष्ट रचना चयनित होने पर आपको बहुत बहुत बधाई 
स्वीकार करे भाई श्री विशाल चर्चित,मुंबई  
Comment by Shubhranshu Pandey on September 2, 2012 at 3:15pm

माह की सर्वोत्तम रचना के लिये आपको ढेरों बधाइयाँ.........


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 2, 2012 at 1:41pm

भाई विशाल चर्चितजी, आपका हृदय से स्वागत है.  सर्जना शब्द को आपने ठीक कर लिया, अच्छा किया. वस्तुतः एक और शब्द अक्षरी-दोष से प्रभावित है, और वह है - श्रृंगार.

तालव्य में व्यञ्जन संयुक्त होता है तो श्र होता है. उससे संयुक्त होता है तो शृ होता है. शृंगार का शृं तालव्य में और मात्रा अं के संयुक्त होने से बनता है. शुद्ध अक्षर शृंगार होता है न कि श्रृंगार.

प्रस्तुत रचना के साथ आप द्वारा संलग्न चित्र में शृंगार शब्द सही अक्षरी में अंकित है.

शुभ-शुभ

Comment by deepti sharma on September 2, 2012 at 12:11pm

आदरणीय विशाल जी ... बहुत सुंदर रचना .. बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ

Comment by Abhinav Arun on September 2, 2012 at 11:43am

क्या कहने सारे भाव सगुण निर्गुण , समेट लिए हैं आपने इस रचना में ! अदभुत अप्रतिम ! हार्दिक शुभकामनाएं !!

Comment by Admin on September 2, 2012 at 10:39am

आदरणीय विशाल अर्चन जी, ओ बी ओ नियम 2ग के अनुसारबाहरी लिंक देना मना है, लिंक को प्रबंधन स्तर से हटा दिया गया है, यदि पोस्ट में कोई संशोधन आपेक्षित है तो ओ बी ओ प्रबंधन से अनुरोध कर सकते है अथवा स्वयं भी एडिट कर सकते है । 

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on September 2, 2012 at 10:12am

आदरणीय Saurabh Pandey जी, आपका ह्रदय से आभारी हूँ. जी हाँ, इस प्रतिष्ठित ब्लॉग पर ये मेरी पहली रचना है, इससे पहले मैं फेसबुक एवं अपने ब्लॉग पर लिखता रहा हूँ. आप मेरी पहले कि रचनाएं वहाँ देख सकते हैं. रहा सवाल सृजना या सर्जना शब्द का तो मुझे आश्चर्य है कि मैंने फेसबुक एवं अपने ब्लॉग पर तो सर्जना ही लिखा है तो यहाँ कैसे बदल गया, जबकि मैंने तो कॉपी पेस्ट किया था.....

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