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तुम हकीकत हो
या ख़्वाब?
बतादो ना.
अरज है मेरी
ज़नाब
बतादो ना.
तुम्हारे ही ख़्वाबों में
मैं जीता हूँ,तुम्हारी आँखों से ही
मैं पीता हूँ.
तुम अमृत हो
या शराब ?
बतादो ना.
अपनी जिंदगी का अक्स
तुम्हीं में देखता हूँ,
अपनी जिंदगी के मायने
तुम्हीं में पढता हूँ.
तुम आईना हो
या किताब?
बतादो ना.
जिंदगी के समंदर का
ज्वार भी तुम हो,
मेरी कश्ती और
पतवार भी तुम हो.
तुम सवाल हो
या कि ज़वाब?
बतादो ना.
अपने दिन रौशन है
तुम्हीं से यारा,
अपनी रातों में है
तुम्हीं से उजियारा.
तुम आफ़ताब हो
या माहताब?
बतादो ना.
तुम्हारे दीदार से ही
जीवन में रंग है,
खुशबु तुम्हारी
हर पल मेरे संग है.
तुम गुलमोहर हो
या गुलाब?
बतादो ना.
तुम हकीकत हो
या ख़्वाब?
बतादो ना.
अरज है मेरी
ज़नाब
बतादो ना.

********************

-- अशोक पुनमिया 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 20, 2012 at 5:20pm

वाह वाह वाह ------शब्द नहीं हैं मेरे पास कितने प्यारे भाव और शब्द संयोजन बहुत प्यारी लगी ये रचना बहुत बहुत बधाई 

कृपया ध्यान दे...

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