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गहरा है ये सागर बहुत साहिल ही नही है

ये दिल मेरा अब इश्क के काबिल ही नहीं है
बिखरा है जो अब टूट के वो दिल ही नहीं है

हम जीते थे जिस शान से यारों के साथ में
वो छूटे हैं पीछे सभी महफ़िल ही नहीं है

गम हैं मेरा जो जान से मारेगा  एक दिन
जो गम को डाले मार वो कातिल ही नहीं है

नादानी थी या भूल थी आशिक मैं बन गया
क्या आँखों को उसकी पढ़ें कामिल ही नहीं है

मैं डूबा था इस इश्क में पाने को कुछ सकूँ
गहरा है ये सागर बहुत साहिल ही नही है

है कैसा ये निजाम दीप लुट रहा हर सख्स
इतना मेरा कानून तो ग़ाफिल ही नहीं है !!!!!!

संदीप पटेल "दीप"

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on June 2, 2012 at 10:18am

BAHUT BAHUT AABHARI HUN AAPKA DR. SAHIBAA

SAADAR NAMAN
SAHIT SAADAR AABHAR AAPKA

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on June 2, 2012 at 10:17am

AADARNEEYAA RAAJESH KUMAARI JI SADAR NAMAN

AAPKA BAHUT BAHUT DHANYVAAD IS HAUSALAAFAJAAI KE LIYE

SAADAR AABHAR

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on June 2, 2012 at 10:16am

AADARNEEY SIR JI SAADAR NAMAN

AAPKA BAHUT BAHUT DHANYVAAD AUR SAADAR AABHAR

JI AAPKI BAAT KAABILE GAUR HAI

ISME KUCHH HARF SAHI NAHI HAI MAINE ABHI DEKHA SUKUN KI JAGAH SAKUN LIKH GAYA HAI

AAPKA YE SNEH BANAYE RAKHIYE AAPKA EK BAAR PUNH DHANYVAAD AUR AABHAR

SAADAR WANDE


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 2, 2012 at 10:11am
बहुत सुन्दर ग़ज़ल संदीप जी.. हार्दिक बधाई

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 2, 2012 at 8:50am

संदीप जी प्यारी ग़ज़ल लिखी है बाकी अलबेला जी की टिपण्णी पर गौर फरमाएं 

Comment by Albela Khatri on June 2, 2012 at 8:25am

भाई संदीप कुमार पटेल जी,
अच्छी  ग़ज़ल है.......बढ़िया  शब्दावली भी है  और रस भी....
टंकण में कहीं कहीं  त्रुटि हो गई है  सुधार लेंगे तो  और  अच्छा होगा
सादर

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