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सो रही है दुनिया सारी

तुम हर पल क्यूँ सजग रहे 

कौन व्यथा है दबी हिय में 

किस अगन में संत्रस्त रहे |

घूर रहे क्यूँ रक्तिम चक्षु 

कुपित अधर क्यूँ फड़क रहे 

दावानल से केश खुले क्यूँ 

तन से शोले भड़क रहे |

प्रदूषण ने ध्वस्त किये 

जो, बहु  तेरे संबल रहे 

कतरा -कतरा टूट-टूट कर 

चुपके -चुपके पिघल रहे |

हे हिमगिरी,हे हिमनद   

पिघलते रहे जो 

यूँ ही अप्रतिहत      

प्रलय  भयावही आएगी  

जगत  जननी, पावन  धरिणी 

सब  जल  थल  हो  जायेगी |  

कष्ट निवारक ,विपदा हारक

हे  जगदीश ,हे  त्रिपुरारी 

उसे  जगा दो अपने बल से 

सो रही जो दुनिया सारी|

           *****

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Comment by MAHIMA SHREE on April 13, 2012 at 2:29pm
प्रदूषण ने ध्वस्त किये
जो, बहु तेरे संबल रहे
कतरा -कतरा टूट-टूट कर
चुपके -चुपके पिघल रहे |
हे हिमगिरी,हे हिमनद
पिघलते रहे जो
यूँ ही अप्रतिहत
प्रलय भयावही आएगी
जगत जननी, पावन धरिणी
सब जल थल हो जायेगीआदरणीया राजेश दी ,
वाह अतीव सुंदर रचना सुंदर भाव और शब्दों के साथ , पढ़ का अच्छा भी लगा और चिंता भी जगी , अगर गोबल वार्मिंग के कारण निकट भविष्य में ऐसा होता है जो होने वाला है तो इस प्रलय में कितनी जाने जाएँगी इस कल्पना से ही सिहर गयी , आपने बहुत ही गंभीर विषय हमारे बीच लाया आपका बहुत-२ धन्यवाद , इस जागरूकता की भी अतीव आवशयकता है... बधाई स्वीकार करें

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 13, 2012 at 10:24am

बहुत बहुत आभार राकेश त्रिपाठी  जी आपने बहुत सुन्दर पंक्तियाँ रची हैं सही कह रहे हैं गंगा की शुधि सफाई बहुत जरूरी है 

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on April 13, 2012 at 10:11am

आदरणीया राजेश कुमारी जी, आपको बधाई एवं अभिनन्दन आपसे प्रेरणा पा कर ४ लाइन लिख रहा हूँ, साथ साथ:

अगर गलाना है तो, दिलो में जमी बर्फ गलाओ,
ऊँच नीच, जात पात का दुर्गम फर्क हटाओ.
करो हिमालय की रक्षा, गंगा की जान बचाओं,
पालूशन को दूर करो, धरती को स्वर्ग बनाओ.  :)


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 13, 2012 at 9:57am

this picture is clicked by me.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 13, 2012 at 9:53am

harday se aabhari hoon Ajay ji is sarahna ke liye.

Comment by AjAy Kumar Bohat on April 13, 2012 at 9:48am
bahut hi sundar kriti, namaskar aapki lekhni ko...

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 13, 2012 at 8:32am

सतीश मापतपुरी जी अहो भाग्य मेरे जो आपने मुझे इस लायक समझा हार्दिक आभार आपको| 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 13, 2012 at 8:29am

हार्दिक आभार प्राची जी मेरी कविता का इतना सुन्दर विश्लेषण हेतु सच में ग्लोबल वार्मिंग एक ज्वलंत समस्या है जिसके लिए जागरूक होने की आवश्यकता है वर्ना ये प्राकर्तिक आपदाएं जो हाल ही में कितने देशों में देखी जा रही हैं इस प्रथ्वी इस मानव जीवन को ले डूबेंगी हाल ही की घटनाओं से उद्वेलित मन की कलम है ये |

Comment by satish mapatpuri on April 13, 2012 at 12:22am

प्रदूषण ने ध्वस्त किये

जो, बहु  तेरे संबल रहे

कतरा -कतरा टूट-टूट कर

चुपके -चुपके पिघल रहे |

यथार्थ चित्रण .......... आपकी सोच को सलाम राजेश कुमारी जी

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