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ग़ज़ल
by Tarlok Singh Judge
गिर गया कोई तो उसको भी संभल कर देखिये
ऐसा न हो बाद में खुद हाथ मल कर देखिये

कौन कहता है कि राहें इश्क की आसन हैं
आप इन राहों पे, थोडा सा तो चल कर देखिये

पाँव में छाले हैं, आँखों में उमीन्दें बरकरार
देख कर हमको हसद से, थोडा जल कर देखिये

आप तो लिखते हो माशाल्लाह, बड़ा ही खूब जी
कलम का यह सफर मेरे साथ चल कर देखिये

क्या हुआ दुनिया ने ठुकराया है, रोना छोडिये
बन के सपना, मेरी आँखों में मचल कर देखिये

लोग कहते हैं छलावा आप को, क्या बात है
हम से भी मिलिए, जरा हमको भी छ्ल कर देखिये

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Comment

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Comment by राज लाली बटाला on September 18, 2010 at 9:06pm
बहुत खूब लिखा है आपने !!
Thanks
Comment by Admin on September 18, 2010 at 4:34pm
आदरणीय तारलोक सिंह जी, सर्वप्रथम ओपन बुक्स ऑनलाइन के मंच पर आपकी पहली ग़ज़ल का ह्रदय से स्वागत है,
कौन कहता है कि राहें इश्क की आसन हैं
आप इन राहों पे, थोडा सा तो चल कर देखिये,
बहुत खूब, उम्द्दा ख्यालात, अच्छी ग़ज़ल कही है अपने , बधाई स्वीकार करे,

कृपया ध्यान दे...

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
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"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
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