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साहिल पॆ जिसनॆ मुझकॊ,,,,,,,

साहिल पॆ जिसनॆ मुझकॊ,,,,,,,

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आँचल हया का सर सॆ सरकनॆ नहीं दिया ॥

चॆहरॆ पॆ दिल का ग़म भी झलकनॆ नहीं दिया ॥

 

तॆबर अना कॆ, उनकॆ, कभी ख़म नहीं हुयॆ,

मिरॆ मिज़ाज़ नॆ मुझकॊ भी झुकनॆ नहीं दिया ॥

 

कुछ तर्कॆ-तआल्लुकात की दुश्वारियां तॊ थीं,

कुछ गर्दिशॊं नॆं भी मुझकॊ सम्हलनॆ नहीं दिया ॥

 

आज समंदर सा हॊता यकीनन रुतबा मॆरा,

दायरॊं नॆ कभी भी मुझकॊ पसरनॆ नहीं दिया ॥

 

मॆरॆ सफ़ीनॆ का मॆरा अपना नाखुदा था वॊ,

साहिल पॆ जिसनॆ मुझकॊ उतरनॆ नहीं दिया ॥

 

कॊशिशॆं तॊ बॆहिसाब की अपनॊं नॆ मगर,

गैरॊं की दुआवॊं नॆं मुझकॊ मरनॆ नहीं दिया ॥

 

बॆखबर है वॊ  ज़िन्दा हूं मैं जिसकॆ वास्तॆ,

उसकी खामॊशी नॆ इज़हार करनॆ नहीं दिया ॥

 

उसकॆ दामन पॆ तहरीर लिखता तॊ कैसॆ,

अश्कॊं की मानिंद मुझकॊ गिरनॆ नहीं दिया ॥

 

छॊड़ दॆता दर,गली,शहर,महफ़िल मगर,

उसकॆ एक वादॆ नॆ मुझकॊ मुकरनॆ नहीं दिया ॥

 

रॆत पर खड़ा था मॆरी मॊहब्बत का मकां,

बुनियाद  पॆ पत्थर तॊ उसनॆ धरनॆ नहीं दिया ॥

 

बड़ा कठिन है ज़मानॆ सॆ लड़ना "राज",

बुलंद हौसलॊं नॆ मुझकॊ बिखरनॆ नहीं दिया ॥

 

       कवि-राज बुन्दॆली

      ११/०३/२०१२

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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Comment by rajesh kumari on March 11, 2012 at 3:05pm

राज बुन्देली जी जितनी तारीफ  करूँ इस ग़ज़ल की वो कम ही होगी शब्द नहीं हैं मेरे पास इतने हर एक अश्शार लाजबाब है फिर भी जो सबसे ज्यादा पसंद आया वो है ---(1)

आज समंदर सा हॊता यकीनन रुतबा मॆरा,

दायरॊं नॆ कभी भी मुझकॊ पसरनॆ नहीं दिया ॥

 (2)

रॆत पर खड़ा था मॆरी मॊहब्बत का मकां,

बुनियाद  पॆ पत्थर तॊ उसनॆ धरनॆ नहीं दिया ॥

 

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on March 11, 2012 at 3:04pm

संदीप भाई साहब आभारी हूं,,,,,,,,,इस हौसला आफ़ज़ाई के लिए,,,,,,,बहुत-बहुत शुक्रिया,,,,,,,,,,,,,,,,

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 11, 2012 at 1:08pm

कॊशिशॆं तॊ बॆहिसाब की अपनॊं नॆ मगर,

गैरॊं की दुआवॊं नॆं मुझकॊ मरनॆ नहीं दिया

आदरणीय राज जी, यूँ तो आपकी पूरी ग़ज़ल लाजवाब है मगर ये शेर तो दिल को छू गया| बहुत ख़ूब|

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on March 11, 2012 at 12:40pm

धन्यवाद,,,,,,,,,,हरीश जी,,,,,,,आभारी हूं आपका,,,,,,,,,,,,,,,,,,

Comment by Harish Bhatt on March 11, 2012 at 12:32pm

Raj ji namastey.

bahut shaandaar. hardik badhayi.

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