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छरहरा सा वदन उसका श्वेत वस्त्र धारण किये ।

था पीत किरीट भाल की शोभा तन वहुत नाजुक लिए।

खोल के जो कपाट घर के देखा उसको गौर  से ।

शर्म से नज़रें झुका लीं प्रिय सी चंचलता लिए ।

थाम के उसको लगाया होंठ से अपने जभी ।

इश्क की गर्मी से  मेरी खुद ही खुद वह जल उठी ।

खेंच कर सांसों को उसकी जब मै उसको पी गया ।

आग सीने में लगी जल कर कलेजा रह गया ।

धुंए का गुब्बार निकला और फिजा में वह गया ।


लोग कहते है न उसको मुंह लगाना तुम कभी ।

फूंक कर रख देगी तुमको चीज़ है यह वहुत बुरी ।


पर मै  यह कहता हूँ की :- 


वे वफाओं की तालिका में 

मै अपना नाम कैसे जोड़ लूँ 

जिसने अपना तन जला कर 

मुझको है संतुष्टि दी ।

तुम बताओ दुनिया वालों 

उसको कैसे छोड़ दूँ । उसको कैसे छोड़ दूँ ।

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Comment

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Comment by Nazeel on January 24, 2012 at 1:51pm

बहुत बढ़िया  रचना ... हार्दिक बधाई ...:)


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 24, 2012 at 12:19pm

श्वेतधूमदण्डिका .. !! ..

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