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जीवन-सार --- (छंद - घनाक्षरी) --- सौरभ

 

नाधिये जो कर्म पूर्व, अर्थ दे  अभूतपूर्व
साध के संसार-स्वर, सुख-सार साधिये ॥1॥

साधिये जी मातु-पिता, साधिये पड़ोस-नाता
जिन्दगी के आर-पार, घर-बार बाँधिये ॥2॥

बाँधिये भविष्य-भूत, वर्तमान,  पत्नि-पूत
धर्म-कर्म, सुख-दुख, भोग, अर्थ राँधिये ॥3॥

राँधिये आनन्द-प्रेम, आन-मान, वीतराग
मन में हो संयम, यों, बालपन नाधिये  ॥4॥

***************
हो धरा ये पूण्यभूमि, ओजसिक्त कर्मभूमि
विशुद्ध हो विचार से, हर व्यक्ति हो खरा  ||1||

हो खरा वो राजसिक, तो आन-मान-प्राण दे
जिये-मरे जो सत्य को, तनिक न हो डरा  ||2||

हो डरा मनुष्य लगे, जानिये हिंसक उसे 
तमस भरा विचार, स्वार्थ-द्वेष हो भरा  ||3||

हो भरा उत्साह और सुकर्म के आनन्द से--
वो मनुष्य सत्यसिद्ध, ज्ञानभूमि हो धरा  ||4||

***************
दीखते व्यवहार जो हैं व्यक्ति के संस्कार वो 
नीति-धर्म साधना से, कर्म-फल रीतते   ||1||

रीतते हैं भेद-मूल, राग-द्वेष, भाव-शूल 
साधते विज्ञान-वेद, प्रति पल सीखते  ||2||

सीखते हैं भ्रम-काट, भोग-योग भेद पाट
यों गहन कर्म-गति, वो विकर्म जीतते  ||3||

जीतते अहं-विलास, ध्यान-धारणा प्रयास
संतुलित विचार से, धीर-वीर दीखते   ||4||

***************

-- सौरभ

***************

 

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 14, 2011 at 12:23pm

शन्नोजी, आपको रचना (छंद - सांगोपांग घनाक्षरी) रुची यह मेरे लिये भी संतोष की बात है. हम परस्पर कितना कुछ जानते और सीखते हैं. इसी से सत्संग की इतनी महिमा है.

सधन्यवाद.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 14, 2011 at 12:15pm

भाई सतीशजी, हार्दिक धन्यवाद कि रचना की पंक्तियाँ और गठन पसंद आये. 

Comment by Shanno Aggarwal on October 14, 2011 at 2:23am

सौरभ जी,

मैं आपकी लेखन प्रतिभा से अभिभूत हूँ...आपको और आपकी लेखनी दोनों को नमन. 

Comment by satish mapatpuri on October 14, 2011 at 12:41am

नाधिये जो कर्म पूर्व, अर्थ दे  अभूतपूर्व
साध के संसार-स्वर, सुख-सार साधिये ॥1॥

साधिये जी मातु-पिता, साधिये पड़ोस-नाता
जिन्दगी के आर-पार, घर-बार बाँधिये ॥2॥

बाँधिये भविष्य-भूत, वर्तमान,  पत्नि-पूत
धर्म-कर्म, सुख-दुख, भोग, अर्थ राँधिये ॥3॥

राँधिये आनन्द-प्रेम, आन-मान, वीतराग
मन में हो संयम, यों, बालपन नाधिये  ॥4॥

निःशब्द टिपण्णी ........................ आपकी लेखनी .............. ख्यालात ............ और ज़ज्बात को सलाम मित्रवर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 13, 2011 at 10:09pm

भाई बाग़ीजी, बहुत-बहुत धन्यवाद. आपकी बधाई मेरे लिये अत्यंत आह्लादकारी है.  इस विशेष तरह की घनाक्षरी को सांगोपांग घनाक्षरी कहते हैं.

आपकी प्रशंसा खुले आम घोषणा है कि देखो ओबीओ एक रचना-प्रेमी को कैसे रचनाधर्मी बना सकता है. ओबीओ के वातावरण को मेरा सादर प्रणाम.  बहुत कुछ सीखा है बहुत कुछ सीख रहा हूँ, सहयोग बना रहे

सधन्यवाद.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 13, 2011 at 10:04pm

हार्दिक धन्यवाद रवि भाई .. . आपका सहयोग उत्साहकारी है.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 13, 2011 at 9:51pm

आदरणीय सौरभ भईया. तीनो घनाक्षरियां एक से बढ़कर एक है, कथ्य उत्तम लगा, शिल्प के हिसाब से कवित्त का यह प्रकार बहुत ही खुबसूरत लगता है, बहुत बहुत बधाई सौरभ भईया |

Comment by Rash Bihari Ravi on October 13, 2011 at 6:39pm

sir sab ke sab chhand gyan parakh.. bahut kuchh sikhata huaa

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