For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अदब के साथ जो कहता कहन है 
वो अपने आप में एक अंजुमन है

 

हमें धोखे दिये जिसने हमेशा
उसी के प्यार में पागल ये मन है

 

हुई है  दिल्लगी बेशक हमीं से 
कभी रोशन था उजड़ा जो चमन है

 

अँधेरे के लिए शमआ जलाये
जिया की बज्म में गंगोजमन है  

 

नज़र दुश्मन की ठहरेगी कहाँ अब
बँधा सर पे हमेशा जो कफ़न है 

 

खिले हैं फूल मिट्टी है महकती 
यहाँ पर यार जो मेरा दफ़न है 

 

कहाँ परहेज मीठे से हमें अब
वो कहता यार यह तो आदतन है 

 

ये फैशन हाय रे जीने न देगा
कई कपड़ों में भी नंगा बदन है 

 

तुम्हारे हुस्न में फितरत गज़ब की
तभी चितवन में 'अम्बर' बांकपन है 

--अम्बरीष श्रीवास्तव

Views: 777

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on October 2, 2011 at 1:20pm

 

वाह क्या बात है अम्बरीश जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल .. और इस शेर के क्या कहने ..

ये फैशन हाय रे जीने न देगा
कई कपड़ों में भी नंगा बदन है

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 2, 2011 at 12:07pm

हमें शिकवा नहीं है आपसे जी
हुआ
अच्छा ज़माने का चलन है........हा हा हा हा :-)))))))))))))))


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 2, 2011 at 11:14am

 

अजी क्या आपसे ऐसा, रे बप्पा !

बड़ा ही कातिलाना बांकपन है ...    ;-P    

....  हा हा हा हा ... ..

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 2, 2011 at 9:37am

तारीफ के लिए शुक्रिया भाई सौरभ जी! 

सादर:

मिटी तस्वीर दिल से यार की जो
हमें गम औ ज़माने को जलन है ......:-)))))))))))))))

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 2, 2011 at 9:37am

स्वागत है भाई वीनस जी! इस अंदाज़ में ग़ज़ल की तारीफ के लिए तहे दिल से आपका शुक्रिया !...:-)))


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 2, 2011 at 2:14am

आपकी नयी ग़ज़ल, भाई अम्बरीषजी, हिंडोल मचा रही है !  ..  :-)))))

इस शे’र के साथ सादर बधाई --

न आये सामने वो यूँ नज़र फिर

बसे मन में, कला, वर्ना चुभन है. .. 


Comment by वीनस केसरी on October 2, 2011 at 2:01am

वाह वाह वा ...

अम्बरीष जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है

मतला से मकता तक हर एक शेर सुन्दर कहन से भरपूर है

हार्दिक बधाई व तहे दिल से दाद कबूल करें

ये फैशन हाय रे जीने न देगा
कई कपड़ों में भी नंगा बदन है

उफ्फ्फ्फ़

 

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 2, 2011 at 12:57am

स्वागत है भाई आशीष जी ! इसकी तारीफ के लिए तहे दिल से शुक्रिया! बस यूं की कुछ कहने का मन हुआ तो यह फ़ौरी ग़ज़ल हो गयी ! :-)

Comment by आशीष यादव on October 2, 2011 at 12:38am

वाह अम्बरीश सर,

क्या शानदार ग़ज़ल कही है आपने| कुछ आज की हकीकत तो कुछ तसव्वुर का नजारा| सच में पढ़ कर बेहद मजा आया| 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"वाह, हर शेर क्या ही कमाल का कथ्य शाब्दिक कर रहा है, आदरणीय नीलेश भाई. ंअतले ने ही मन मोह…"
3 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"कैसे क्यों को  छोड़  कर, करते रहो  प्रयास ।  .. क्या-क्यों-कैसे सोच कर, यदि हो…"
4 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"  आदरणीय गिरिराज जी सादर, प्रस्तुत छंद की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. सादर "
5 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"  आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, वाह ! उम्दा ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई स्वीकारें.…"
5 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विविध
"  आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, सभी दोहे सुन्दर रचे हैं आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर "
5 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . उल्फत
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आदरणीय नीलेश भाई , खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई आपको "
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय बाग़पतवी भाई , बेहतरीन ग़ज़ल कही , हर एक शेर के लिए बधाई स्वीकार करें "
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
"आदरणीय शिज्जू शकूर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । आपके द्वारा  इंगित…"
12 hours ago
Mayank Kumar Dwivedi commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"सादर प्रणाम आप सभी सम्मानित श्रेष्ठ मनीषियों को 🙏 धन्यवाद sir जी मै कोशिश करुँगा आगे से ध्यान रखूँ…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
"आदरणीय सुशील सरना सर, सर्वप्रथम दोहावली के लिए बधाई, जा वन पर केंद्रित अच्छे दोहे हुए हैं। एक-दो…"
16 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service