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2122     1212    22 / 112

आज  सोया है शहर घर कर के ! 

खूब  रोया  खुदा  महर  कर के  !!

क्या बुरा हो गया  सनम मुझ से

देखता कब है वो नज़र कर के  !

ज़हरीला बन गया हरेक रिश्ता याँ 

खत्म हो हर अजाब मर कर के  !

हम हैं मारे उसी की बेरुखी के

जिसको देखा नज़र वो भर कर के !

कोई है बात जो लगी दिल को

मिलता कोई नहीं खबर  कर के !

क्या करू मिल के ज़िन्दगी से मैं

खौलता  खून  है  कहर  कर के !

कोई  फौलाद सा  हो  मजबूत याँ

चल चले दोस्त आँख भर कर के !

मौलिक व  अप्रकाशित 

प्रोफ चेतन प्रकाश 'चेतन'

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Comment

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Comment by Chetan Prakash on August 5, 2021 at 6:30pm

 आदाब भाई, मौ. अनीस अरमान, बहुत इन्साफ हुआ ग़ज़ल के साथ और, सच कहूँ तो मेरे साथ भी! ममनून हूँ, आपका भाई! सलामत रहे ं ! 

Comment by Md. Anis arman on August 5, 2021 at 10:00am

जनाब चेतन प्रकाश जी अच्छी ग़ज़ल कही आपने बहुत बहुत मुबारक 

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