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हमको बहुत लूटा गया,
फिर घर मेरा फूंका गया.

 

झगड़ा रहीम-औ-राम का,
पर, जान से चूजा गया.

 

दर पर, मुकम्मल उनके था,
बाहर गया, टूटा गया.

 

भारी कटौती खर्चो में,
मठ को बजट पूरा गया ,

 

मजलूम बन जाता खबर,
गर ऐड में ठूँसा गया. (ऐड = प्रचार/विज्ञापन/Advertisement)

 

उत्तम प्रगति के आंकड़े,
बस गाँव में, सूखा गया.

 

वादा सियासत का वही,
पर क्या अलग बूझा गया!!

 

है चोर, पर साबित नहीं,
दरसल, वही पूजा गया.

 

माझी, सयाना वो मगर,
मन से नहीं जूझा, गया.

 

 

----------- अगर ये गजल व्याकरण की दृष्टि से सही है, तो श्री सौरभ जी को समर्पित.

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Comment by वीनस केसरी on March 25, 2012 at 12:53am

हर पंक्ति दमक रही है

आप  बधाई के सुपात्र हैं
पुनः बधाई स्वीकारें

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 25, 2012 at 12:36am

snehi rakesh ji. sadar . jitna tapoge utna hi nikhro ge. sundar rachna ke liye badhai to aap swikar karenge.

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