For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इच्छापूर्ति(लघुकथा)राहिला

"चलो अच्छा है,आखिरकार जीजाजी के सर का बोझ कुछ तो हल्का हुआ"
"अरी! अब तो बाकी की दोनों लड़कियाँ झट से निपट जाएँगी ।ये तो सुचि ही रंगरूप में इतनी गयीबीती थी, कि चार साल लग गए मौसाजी को चप्पल चटकाते ।उन दोनों के रिश्तों की तो लाइन लगी है।"
"वो तो आज भी चप्पल ही चटकाते फिरते ,अगर सुचि ने लड़का खुद पसंद न किया होता तो।"
"हाय...,क्या कह रही हो? तो क्या ये पसंद की शादी है।"
"और क्या। सहकर्मी है सुचि का।"
"लेकिन लड़के ने इसमें क्या देखा ?"
"उसकी सरकारी नौकरी और क्या?"वो मुँह बना के बोली।
इतने में बारात का शोर उठा।सभी दरवाजे की ओर दौड़ी।
"हे भगवान ये लड़का है या भूतनाथ?"सुचि की मौसी दूल्हा देख,उलटे पाँव उसके के कमरे में लौटी।
"हाय री ...!ये तूने क्या किया ।और सब कह रहे हैं ।तेरी पसन्द की शादी है।"
"क्या हुआ मौसी?"
"क्या हुआ ?क्या देखा बिटिया तूने लड़के में ?इतना कुरूप।"
"तो क्या हुआ मौसी, मैं भी कौन सी सुंदर हूँ"
"तेरा दिमाग खराब है लाड़ो !इससे तो तू लाख गुना सुंदर है।फिर ऐसा क्यूँ किया?"
"आह...,लाख गुना सुंदर!!"उसने आँखें बंद कर कई बार इस जुमले को दोहराया।और तृप्त आत्मा से बोली-"यही सुनने के लिए मौसी!जिसे जीवन में अपने लिए कभी नहीं सुना और आज के बाद हमेशा सुनूंगी।"
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 891

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rahila on July 22, 2016 at 11:14am
बहुत शुक्रिया आदरणीया नयना दीदी!सादर
Comment by Ravi Prabhakar on July 22, 2016 at 7:43am

ये कथा मैनें कल सुबह ही पढ़ ली थी । लगभग एक दिन के विचार के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि इस लघुकथा का रूख व्‍यंग्‍य और लतीफे की महीन रेखा को पर कर लतीफे की ओर अधिक चला गया है। कथा की अंतिम पंक्‍ित /आह...,लाख गुना सुंदर!!"उसने आँखें बंद कर कई बार इस जुमले को दोहराया।और तृप्त आत्मा से बोली-"यही सुनने के लिए मौसी!जिसे जीवन में अपने लिए कभी नहीं सुना और आज के बाद हमेशा सुनूंगी।"/ पढ़ने के बाद पाठकीय संवेदनाएं नायिका से नहीं जुड़ पा रही हैं। बस नायिका की युक्‍ित पर हंसी ही आती है कि अपना तथाकथित अवगुण छिपाने के लिए उसने  'अंधो में काना राजा' जैसी चालाकी का सहारा लिया। और लघुकथा का शीर्षक इच्‍छापूर्ति भी कुछ कुछ खानापूर्ति जैसा ही लगा जिस पर अधिक गंभीरता से सोचा नहीं गया है। शीर्षक लघुकथा का सबसे अहम् हिस्‍सा होता है जिसे दुर्भाग्‍यवश इग्‍नोर ही कर दिया जाता है। आपसे गंभीर व सुलझी हुई रचनाओं की अपेक्षा होती है आदरणीय राहिला जी जिसमें आज आपने निराश किया है। क्षमासहित सादर ।

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on July 21, 2016 at 10:06pm

मन की पीड़ा से उबरने का प्रयास दर्शाती रचना हेतु सादर बधाई स्वीकार करें, आदरणीया राहिला जी| रचना यह प्रश्न भी खड़ा करती है कि शादी-ब्याह के लिये चेहरे की खूबसूरती ज़्यादा ज़रूरी है या फिर उत्तम चरित्र और व्यवहार? 

Comment by नयना(आरती)कानिटकर on July 21, 2016 at 9:31pm

 वाह राहिला जी  "जिसे जीवन में अपने लिए कभी नहीं सुना और आज के बाद हमेशा सुनूंगी।" दिल की ये कसक आपने बडी अच्छे से निभाई रचना मे. बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"जय हो.. "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह .. एक पर एक .. जय हो..  सहभागिता हेतु आपका हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय अशोक…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"क्या बात है, आदरणीय अशोक भाईजी, क्या बात है !!  मैं अभी समयाभाव के कारण इतना ही कह पा रहा हूँ.…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, आपकी प्रस्तुतियों पर विद्वद्जनों ने अपनी बातें रखी हैं उनका संज्ञान लीजिएगा.…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी सहभागिता के लि हार्दिक आभार और बधाइयाँ  कृपया आदरणीय अशोक भाई के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाई साहब, आपकी प्रस्तुतियाँ तनिक और गेयता की मांग कर रही हैं. विश्वास है, आप मेरे…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, इस विधा पर आपका अभ्यास श्लाघनीय है. किंतु आपकी प्रस्तुतियाँ प्रदत्त चित्र…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय मिथिलेश भाईजी, आपकी कहमुकरियों ने मोह लिया.  मैंने इन्हें शमयानुसार देख लिया था…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी सादर, प्रस्तुत मुकरियों की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार.…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय मिथिलेश जी सादर, प्रस्तुत मुकरियों पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय से आभार.…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत मुकरियों की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"    प्रस्तुति की सराहना हेतु हृदय से आभार आदरणीय मिथिलेश जी. सादर "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service