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ग़ज़ल - इतनी आसाँ ज़िंदगी होगी नहीं !

(मात्रिक विन्यास -- २१२२ २१२२ २१२ )


इतनी आसाँ ज़िंदगी होगी नहीं
मुश्किलों से दोस्ती होगी नहीं |

दर्द से कागज़ पे करना रौशनी
हर किसी से शाइरी होगी नहीं |

रुक न पाया सिलसिला जो बाँध का
कल के दिन भागीरथी होगी नहीं |

इस तरह कुचला गया जो हर गुलाब
फिर किसी घर में कली होगी नहीं |

मुद्दतों के बाद याद आया कोई
मेरे घर अब तीरगी होगी नहीं |


- आशीष नैथानी 'सलिल'
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by गिरिराज भंडारी on August 25, 2013 at 9:20pm

लाजवाब गज़ल कही भी सलिल , वाह वाह !!

दर्द से कागज़ पे करना रौशनी
हर किसी से शाइरी होगी नहीं ------------- वाह !!!

Comment by रमेश कुमार चौहान on August 25, 2013 at 8:47pm

वाह बहुत बढि़या

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on August 25, 2013 at 8:33pm

शुक्रिया शुक्रिया भाई जी !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on August 25, 2013 at 8:31pm

बढ़िया ग़ज़ल भाई आशीष जी बधाई स्वीकार करें

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