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बहुत देर से 

धूप ही धूप  थी 

दूर तक

कोई दरख्त नहीं 

जिसकी छाँव तले मै 

आ जाऊं !

बहुत दिनों से

कंठ  सूखा था

दिनों तक कोई

लहर नहीं

जिसे जी भर मै

पी जाऊं !

कई जेठों  से

स्वेद की कितनी बूंदें

माथे छलछलाती थीं

कब शीतल पुरवाई में

समा जाऊं !

आ जाओ

बस आ ही जाओ

मेरी जिन्दगी 

छाँव, तृप्ति और श्वास

मेरी तुम !

-जीतेन्द्र 'गीत'  

(मौलिक और अप्रकाशित) 

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Comment

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 25, 2013 at 7:47pm

आदरणीय लछमण जी,

आपने रचना पर दृष्टि डाली, लेखन कर्म को सार्थकता का प्रमाण मिला , बहुत बहुत आभार आपका..

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 25, 2013 at 7:43pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी,

आपने रचना को सराहा , रचना सार्थक हुई.. बहुत बहुत आभार

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 25, 2013 at 7:38pm

आदरणीया डा. प्राची जी,

आपने रचना के मर्म को छुआ ,आपका बहुत बहुत आभार

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 25, 2013 at 7:35pm

आदरणीय..बृजेश जी, 

यह मेरे लिए बड़े सौभाग्य की बात है , कि  प्रथम कविता रचना पर आपका आशीर्वाद मिला  

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 25, 2013 at 7:26pm

आदरणीय केतन जी,

//jaise kuch baat adhuri rah gayi hai//

कोई स्पेस्फिक पंक्ति, बंद, भाव,गेयता आदि सम्बंधित जो भी त्रुटी हो, इंगित करेंगे तो सुधार की ओर अग्रसर हो पाउँगा|

आदरणीय केतन जी,

यह मेरे जीवन की प्रथम कविता रचना है,इसलिए जैसे भाव आये ,पिरो दिए,.. आप साथ देंगे ,अवश्य सीख जाऊंगा, भाई जी 

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 24, 2013 at 10:09am

अपने मंच का एक संवेदनशील पाठक कवि हो गया !

इस वैचारिक कायाकल्प पर अतिशय बधाइयाँ, जीतभाईजी.

शुभ-शुभ

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on July 23, 2013 at 11:21pm

आदरणीय जीतेंद्र जी, बढ़िया कविता लिखी है...
हार्दिक बधाइयाँ !!

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 23, 2013 at 7:20pm

आ जाओ

बस आ ही जाओ

मेरी जिन्दगी 

छाँव, तृप्ति और श्वास

मेरी तुम !--------------पूरी रचना के भाव को समेटे सुन्दर पंक्तियों में आपकी जीत दिखाई दे रही है  |

हार्दिक बधाई श्री जितेन्द्र "जीत" जी 

Comment by annapurna bajpai on July 23, 2013 at 6:22pm

बहुत ही भाव पूर्ण शब्दों मे पिरो कर रची गई कविता के लिए बधाई स्वीकारें , आ० जितेंद्र भाई जी ।  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 23, 2013 at 6:09pm

प्यासे को पानी सा, जेठ में सावन सा, धूप में छाँव सा कोई अपना... उसे पुकारते अंतर्भावों की अभिव्यक्ति का सुन्दर प्रयास 

हार्दिक बधाई 

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