For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सुनो स्त्री !

सुनो स्त्री !

पुरुष स्पर्श की भाषा सुनो !

और तुम देखोगी आत्मा को देह बनते !

 

तेज हुई सांसों की लय पर थिरकती छातियाँ

प्रेम कहेंगी तुमसे -

संगीत और नृत्य के संतुलन को !

सामंजस्य जीवन कहलाता है !

(ये तुम्हे स्वतः ज्ञात होगा)

सम्मोहन टूटते है अक्सर -

बर्तन फेकने की आवाजों से !

 

आँगन और छत के लिए आयातित धुप

पसार दी जाती है ,

शयनकक्ष की मेज पर !

रंगीन मेजपोश आत्ममुग्धता का कारण हो सकते है ,

जब बुझ जाएगा तुम्हारी आँखों का सूरज !

(अगर डूबता तो फिर उग भी सकता था)

 

थोपी गई धार्मिक स्मृतियाँ विस्मृत कर देतीं हैं -

प्रतिरोध की आदिम कला !

इस घटना को आस्तिक होना कहा जाएगा !

 

तो सुनो स्त्री !

पुरुष स्पर्श की भाषा सुनो !

बस , ह्रदय कर्ज़दार न हो
तुम्हारे कान गिरवी न रख दिए जाएँ !
(होंठ उम्र भर सूद चुकाते रहेंगे )

दूब ताकतवर मानी गई है ,

कुचलने वाले भारी भरकम पैरों से !

बीच समुन्दर ,

अकेला जहाज ,

मस्तूल पर तुम !

तुम्हारे पंख सजावट का सामान नहीं हैं !

थोपी गई स्मृतियाँ नकार दी जानी चाहिए !

 

 

 

……………………………...….. अरुन श्री !

Views: 879

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Arun Sri on May 5, 2013 at 1:36pm

विजय मिश्र सर , हार्दिक धन्यवाद !

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 5, 2013 at 1:26pm

बहुत सुन्दर ओज के भाव स्त्री मन में ऊर्जा भरती सुन्दर रचना के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकारें भाई अरुण जी.

Comment by बृजेश नीरज on May 5, 2013 at 12:04am

आपकी रचना की प्रशंसा में इससे बड़ी कविता तैयार हो जाएगी इसलिए मेरी बधाई स्वीकार कर लें।

एक बात आपसे पूछना चाहता था ‘धुप’ का आशय क्या है?

Comment by seema agrawal on May 4, 2013 at 11:44pm

 पुरुष स्पर्श की भाषा सुनो !
और तुम देखोगी आत्मा को देह बनते !......बेहद संवेदनशील और कचोटता हुआ स्वर 

सामंजस्य जीवन कहलाता है !.......वाह 

सम्मोहन टूटते है अक्सर -
बर्तन फेकने की आवाजों से !...सच में लगा कोई सम्मोहन टूटा 

थोपी गई धार्मिक स्मृतियाँ विस्मृत कर देतीं हैं -
प्रतिरोध की आदिम कला !
इस घटना को आस्तिक होना कहा जाएगा ! ..........hmmmm बात तो 100% सही है धार्मिक स्मृतियाँ ही अधार्मिकता का कारण हैं (व्यक्तिगत विचार है ये बस )

तो सुनो स्त्री !
पुरुष स्पर्श की भाषा सुनो !
बस तुम्हारे कान कर्जदार न हों !
(होंठ चुकाते रहेंगे उम्र भर)
दूब ताकतवर मानी गई है ,
कुचलने वाले भारी भरकम पैरों से ! 
बीच समुन्दर ,
अकेला जहाज ,
मस्तूल पर तुम !
तुम्हारे पंख सजावट का सामान नहीं हैं !
थोपी गई स्मृतियाँ नकार दी जानी चाहिए ! ....रचना का समापन एक ऐसे अंदाज़ में और वो भी एक पुरुष की कविता में ...निशब्द हूँ आपके विचारों को पढ़ कर ....ढेरों आशीष इस रचना के लिए


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 3, 2013 at 9:41pm

सचाई क्या है  और, चाहिये क्या के मध्य के विचार को तार्किकता का आवरण दे, बहुत कुछ सार्थक कहा गया है.

रचना की पहली तीन पंक्तियाँ ही प्रकृति के अत्यंत जटिल व्यवहार को हठात् नंगा कर देती हैं. भावनाओं की सूक्ष्मता उन्माद के स्थूल व्यवहार के ह्त्थे चढ़ती कितनी निरीह होती जीती रही है !

एक व्यथित संवेदना को शब्दों में साकार करने की चेष्टा के लिए अतिशय बधाइयाँ.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 3, 2013 at 9:08pm

आ0 अरून श्री जी, ’’तुम्हारे पंख सजावट का सामान नहीं हैं !
थोपी गई स्मृतियाँ नकार दी जानी चाहिए !’’ अतिसुन्दर रचना। बधाई स्वीकारें। सादर,

Comment by coontee mukerji on May 3, 2013 at 8:54pm

भैया ,जहाँ स्त्री पक्ष की बातें होती है वहाँ स्वतः ही कोमलता पनपने लगती खासकर कविता में......

सुनो स्त्री !

पुरुष स्पर्श की भाषा सुनो !

और तुम देखोगी आत्मा को देह बनते !...........जैसे पत्थर पर पत्थर के फूल उगाने की कोशिश की जा रही हो......खैर  अपनी अपनी

मान्यता ./ सादर / कुंती .

Comment by Arun Sri on May 3, 2013 at 8:51pm

हार्दिक धन्यवाद प्रदीप कुशवाहा सर ! सादर !

Comment by anwar suhail on May 3, 2013 at 7:40pm

बहुत दिनों बाद एक अच्छी कविता पढ़ी...बधाई भाई

Comment by विजय मिश्र on May 3, 2013 at 6:39pm
बहुत सुंदर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम. . . . रोटी
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। रोटी पर अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"आदाब।‌ हार्दिक धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' साहिब। आपकी उपस्थिति और…"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं , हार्दिक बधाई।"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया छंद
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रेरणादायी छंद हुआ है। हार्दिक बधाई।"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"आ. भाई शेख सहजाद जी, सादर अभिवादन।सुंदर और प्रेरणादायक कथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
12 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"अहसास (लघुकथा): कन्नू अपनी छोटी बहन कनिका के साथ बालकनी में रखे एक गमले में चल रही गतिविधियों को…"
yesterday
pratibha pande replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"सफल आयोजन की हार्दिक बधाई ओबीओ भोपाल की टीम को। "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आदरणीय श्याम जी, हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Thursday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service