For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हर मजहब के दुःख -दर्द एक सामान होते हैं
फिर क्यूँ पराई पीर से हम अनजान होते हैं

क्यूँ फेंकते पत्थरों को हम उनके घरों पर
जब खुद के भी तो शीशों के मकान होते हैं

उन लोगों की कम सोच का क्या करियेगा
जिनकी वजह से रिश्ते कुछ बेजान होते हैं

बन जाते हैं वो सफ़र में मुसीबतों के सबब
कई दफह जब रास्ते बेहद सुनसान होते हैं

मत छूना कभी जो लावारिस पड़े हैं राह में
मुमकिन हैं छुपे मौत का वो सामान होते हैं

मिलके गले वो घोंप दे खंजर ये क्या पता
हिज़ाब -ए- दोस्ती की आड़ में शैतान होते हैं

बड़े ही खौफनाक होते हैं वो चेहरे खूबसूरत
जिनकी सूरत में छुपे बदसूरत इंसान होते हैं
*****

Views: 633

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 5, 2012 at 5:43pm

hardik dhanyavaad ganesh ji aapne sher ke beech me gap de diya.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 5, 2012 at 5:42pm

bahut bahut aabhar Ganesh ji meri ghazal ko saarthakta mil gai. par post karte vaqt har sher me gap diya tha pata nahi publish ek saath kaise ho gai.ghazal me sher alag alag achche lagte hain.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 5, 2012 at 5:30pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी , कथ्य बहुत ही बढ़िया है, काफिया रदीफ़ का निर्वहन भी आपने बढ़िया से किया है, बधाई स्वीकार करे |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 5, 2012 at 5:14pm

dear Prachi thanks a lot .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 5, 2012 at 5:13pm

Pradeep Kumar ji aapko meri ghazal pasand aai iske liye shukria.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 5, 2012 at 4:45pm

फिर क्यूँ पराई पीर से हम अनजान होते हैं 

क्यूँ फेंकते पत्थरों को  हम उनके घरों पर  
जब खुद के भी तो शीशों के मकान होते हैं
उन लोगों की कम सोच का क्या करियेगा  
जिनकी वजह से रिश्ते कुछ बेजान होते हैं
aadarniya mahodaya , sadar abhivadan. ab kya kahoon..? bahut khoob jab aapne hi kah diya. badhai.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"अभिवादन सादर।"
27 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रदत्त विषय को सार्थक करतीब हुत बढ़िया दोहावली की प्रस्तुति। इस…"
30 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आपने पर्यावरण के विभिन्न आयामों को सम्मिलित करते हुए एक बढ़िया प्रस्तुति दी…"
33 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रदत्त विषय पर बढ़िया कुंडलिया छंद हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
37 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी, प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है। इस प्रस्तुति…"
40 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"धुंध गहरी और खाई दिख रही है  अब तरक्की में तबाही दिख रही है। बोझ से घायल हुआ सीना जमीं…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"सहर्ष सदर अभिवादन "
13 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, पर्यावरण विषय पर सुंदर सारगर्भित ग़ज़ल के लिए बधाई।"
16 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कुमार जी, प्रदत्त विषय पर सुंदर सारगर्भित कुण्डलिया छंद के लिए बहुत बहुत बधाई।"
16 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय मिथलेश जी, सुंदर सारगर्भित रचना के लिए बहुत बहुत बधाई।"
16 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
16 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service