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इस गीत के सभी अंतरे “हीर छंद” (६,६,११. आदि गुरु अंत रगण) पर आधारित हैं.

 

 

मानव है, मानव बन, मानव का प्यार ले,

बैर भूल, द्वेष मिटा, जिंदगी सँवार ले ||

  

लोक लाज, भूल गया, कैसा मनु कर्म है,

दौलत ही, देवता व, पैसा ही धर्म है,

पाप कर्म, छोड़ सभी, सत का उपहार ले,

बैर भूल, द्वेष मिटा, जिंदगी सँवार ले ||

 

भेद-भाव, जाति-पाति, कैसी ये रीति है,

घाट-घाट, ऊँच नीच, कैसी ये नीति है,

छोड़ नीति, तोड़ रीति, सबका आभार ले,

बैर भूल, द्वेष मिटा, जिंदगी सँवार ले ||

 

एक बनें, नेक बनें, देश का विकास हो,

प्रेम रहे, शान्ति रहे, ऐसा विश्वास हो,

बंधन ये, प्यार भरे, मानव स्वीकार ले,

बैर भूल, द्वेष मिटा, जिंदगी सँवार ले ||

 

 

मौलिक/अप्रकाशित.

 

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Comment

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Comment by Ashok Kumar Raktale on November 10, 2015 at 7:46pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सादर, आपकी प्रतिक्रिया से मेरे रचना प्रयास को सार्थकता मिली. बहुत-बहुत आभार. सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 10, 2015 at 1:26pm

आदरणीय अशोक रक्ताले सर, बहुत सुन्दर संदेशप्रद गीत हुआ है. इस प्रस्तुति पर आपको हार्दिक बधाई सादर 

Comment by Ashok Kumar Raktale on November 9, 2015 at 10:24pm

प्रस्तुत गीत आपको अच्छा लगा मेरा उत्साहवर्धन हुआ बहुत-बहुत आभार आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी. सादर.

Comment by Shyam Narain Verma on November 9, 2015 at 4:45pm
वाह ! बहुत खूब | सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई

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