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एक ग़ज़ल - चाँद सूरज गुलाब रक्खा है !!

एक ग़ज़ल - चाँद सूरज गुलाब रक्खा है !!
(२१२२ १२१२ २२/११२)

चाँद सूरज गुलाब रक्खा है |
ख़त में ख़त का जवाब रक्खा है ||

सिसकियों में कटी जो रात उसका
कागज़ों पर हिसाब रक्खा है ||

शामियाना तेरी मुहब्बत का
एक ऐसा भी ख़्वाब रक्खा है ||

लफ़्ज करते नहीं शिकायत क्या
खामुशी का नकाब रक्खा है ||

याद करना तुम्हें ख़ुदा की तरह
आदतों को ख़राब रक्खा है ||

ओढ़ रक्खी हैं झुर्रियाँ मैंने
और तुमने शबाब रक्खा है ||

सींचना चाहता हूँ रिश्तों को
खुद को प्यासा, जनाब रक्खा है ||

-- आशीष नैथानी 'सलिल'
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on October 7, 2013 at 9:12pm

तहेदिल से शुक्रिया आदरणीया Savitri Rathore जी  !!

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on October 7, 2013 at 9:11pm

बहुत-बहुत शुक्रिया भाई संदीप जी  !

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on October 7, 2013 at 9:11pm

इस हौसला-अफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया Meena Pathak जी,  आदरणीया Dr.Prachi Singh जी, आदरणीया y MAHIMA SHREE जी !!

 

Comment by Savitri Rathore on October 6, 2013 at 10:49pm

सादा -सरल और प्यारी -सी ग़ज़ल ! बधाई हो।

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 6, 2013 at 8:32pm

वाह वाह आशीष भाई शानदार ग़ज़ल कही है आपने सादर बधाई स्वीकारें

और इस शेर पर विशेष दाद

ओढ़ रक्खी हैं झुर्रियाँ मैंने
और तुमने शबाब रक्खा है ||

Comment by MAHIMA SHREE on October 6, 2013 at 6:46pm

 वाह ....बहुत ही .. मधुर और प्र्यारी गज़ल हर्दिक बधाई आशीष जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 6, 2013 at 5:08pm

सुन्दर कोमल सी ग़ज़ल 

हार्दिक बधाई 

Comment by Meena Pathak on October 6, 2013 at 3:55pm

क्या बात है .. बहुत खूब | बधाई कुबूल कीजिये आदरणीय आशीष जी 

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on October 6, 2013 at 3:05pm

बहुत-बहुत शुक्रिया भाई अरुन शर्मा 'अनन्त' जी !!

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on October 6, 2013 at 3:01pm

शुक्रिया भाई  Baidya Nath 'सारथी'  जी !
आगे से कोशिश रहेगी कि पूरी तैयारी के साथ ग़ज़ल पेश करूँ |

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