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सुख दिए हैं आपने
मन में बड़ा उत्साह है …
उत्साह से उल्लास को कैसे मिटाऊँ
क्या करूँ ?
कैसे तुम्हारा प्रिय बनूँ ?

हर्ष जो उपजा हमारे ह्रदय में ,
मै छिपाऊँ या जताऊँ
किस तरह ?
क्या करूँ ?
कैसे तुम्हारा प्रिय बनूँ ?

शोक में या क्रोध में ,
मै शांत हो जाऊं ,
बताओ किस तरह ?
क्या करूँ ?
कैसे तुम्हारा प्रिय बनूँ ?

शांत मन जो व्यक्ति हैं ,
वे , तुम्हारे सर्वदा ही प्रिय रहे हैं .
मांग कर जो नित्य ही हलके हुए हैं …
प़ा कर सब कुछ भी
वे केवल जी रहे हैं .

मै तुम्हे कुछ आज देना चाहता हूँ .
अपना जो भी है लुटाना चाहता हूँ .
मुझको कब नश्वर जगत से आस है ?
एक तेरा ही अटल विश्वास है .

लो ! सम्हालो ,
सुविधा -दुविधा , हर्ष और ये शोक भी
राग और विराग , सुख -दुःख ,
मिलन और वियोग भी .
और जो भी चाहते हो ..
ये करूँ ….या वो करूँ ,
तो बोल देना , और अब मैं क्या करू?
कैसे तुम्हारा प्रिय बनूँ ?

डॉ . ब्रिजेश कुमार त्रिपाठी

Views: 407

Comment

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Comment by SARA MISRA on November 21, 2010 at 2:19am
speechless !!

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 3, 2010 at 9:46pm
कैसे तुम्हारा प्रिय बनूँ ?
सर जी , यह तो कौन बनेगा करोड़पति का सवाल है, बल्कि उससे कठिन, इसलिये की ४ विकल्प तो है ही नहीं, हा हा हा हा
सुंदर रचना सर जी , बधाई |
Comment by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on November 2, 2010 at 9:37pm
aapke dwara sarahna mera puruskar hai..navin ji aur mai isase khush bhi hoon aapka bahut bahut dhanyawad

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