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कुम्हार की लक्ष्मी के भी 
देखे मैंने हाथ सने 
चढ़ी चाक पर मिटटी फिर से 
फिर से दीप बने 
 
रम्भा रहे थे गधे भी 
कैसे मूक बने 
आज समय उल्लूजी का 
देशाटन को -
लक्ष्मी वाहन वही बने 
 
लक्ष्मी हुई ओझल
उल्लूजी बैठे मिले
भेंट करने आये-
वह थे नेताजी के साले,
कर में थी वरमाला 
गलमाला उल्लूजी के  डाले 
 
मिटटी ने आकार लिया 
दीपक बन हरने तम को,
दीप जले से पहले ही
उल्लूजी देखे तुमको । 
सूंघ सुगंध सोंधी मिटटी का 
उल्लू लावे माँ लक्ष्मी को, 
करो नमन इस- 
भारत भू की सोंधी मिटटी को 
माँ लक्ष्मी तब वर दे तुमको ।
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला,जयपुर

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 17, 2012 at 6:22pm

रचना के भाव पसंद कर सराहना करने हेतु हार्दिक आभार आपका आदरणीया  राजेश कुमारी जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 17, 2012 at 10:27am

मिटटी ने आकार लिया 

दीपक बन हरने तम को,
दीप जले से पहले ही
उल्लूजी देखे तुमको । 
सूंघ सुगंध सोंधी मिटटी का 
उल्लू लावे माँ लक्ष्मी को, 
करो नमन इस- 
भारत भू की सोंधी मिटटी को 
माँ लक्ष्मी तब वर दे तुमको ।----बहुत सुन्दर भाव एवं बिम्ब के माध्यम से कटाक्ष करती सामयिक रचना बहुत बढ़िया बधाई आपको 
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 15, 2012 at 11:23pm

रचना विशेष बन सकी, आपकी टिपण्णी से इस आभास से मुझे प्रसन्नता हुई, 

इस विशेषण के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 15, 2012 at 11:08pm

अपने विशेष बिम्बों के कारण आपकी रचना विशेष बन गयी है, आदरणीय लक्ष्मणजी.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 15, 2012 at 9:25am

रचना के भावों की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, रंभाते गधों को गौपाष्ट्मी तक मौन रहने पर माँ लक्ष्मी के वाहन ने मजबूर कर दिया है, इससे गाय माता को अवश्य रहत मिलेगी। और गौमाता में निवास कर रहे सारे देवी देवता भी खुश होंगे    रचना पर टिपण्णी कर लिखने की प्रेरणा देने के लिए पुनः आभार मित्र श्री अशोक रक्ताले जी 

Comment by Ashok Kumar Raktale on November 15, 2012 at 8:25am

आदरणीय लड़ीवाला जी 

                        सादर, दीपों के जन्म से तम हरने तक कि सुन्दर कथा प्रस्तुत करती रचना पर बधाई स्वीकारें. सिर्फ गधों के रम्भाने से गायों कि मुसीबत बढ़ गयी है. 

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