कल रात फिर यही हुआ बादलों और दामिनी ने कहर ढाया मूसलाधार पानी बरसा घर के पीछे की दीवार से लगा पेड़ जिस पर परिंदों का बसेरा था चरमरा कर टूट गया अचानक बहुत दिन पहले लिखी ये कविता जो मेरी कविता संग्रह ह्रदय के उद्द्गार मे भी प्रकाशित हुई ,याद आ गई आदरणीय admin जी की अनुमति हो तो कृपया पोस्ट करदें आपकी आभारी|
बादलों ने कहर बरपाया
दामिनी ने उपद्रव मचाया
टहनी चटकी पात पात
नभचर रोये सारी रात
दरख्त का कन्धा टूट गया
अपना घरोंदा छूट गया
माँ कैसे अब भरण बसर होगा ?
.....पुनः जतन करना होगा |
तेरी कोमल कम्पित काया
पंख मेरे अब तेरी छाया
इनमे छुपाकर रख लूं तुझको
निज तन की ऊष्मा देदू तुझको
माँ तेरा तन कैसे गरम होगा ?
.....पुनः जतन करना होगा |
माँ मैं तेरी कोख का जाया
मैं समझूं हर तेरी माया
दाना दुनका नहीं मांगूंगा मैं
बिन चुगे अब रह लूँगा मैं
तुझे करना न कोई अब श्रम होगा
.....मेरे नन्हे पुनः जतन करना होगा |
देखो माँ सूरज उग आया
आलोक से तेरा भाल गर्माया
मैं भी बाहर जाऊँगा
तेरा हाथ बटाऊँगा
तेरा गम सब हरना होगा
माँ मुझको अब उड़ना होगा|
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Comment
प्रिय किरण आर्य जी बहुत बहुत हार्दिक आभार रचना पसंद करने के लिए
तेरा गम सब हरना होगा
माँ मुझको अब उड़ना होगा|........
राजेश जी इसके बाद कुछ नहीं रह गया कहने को शेष हमारे लिए शब्द नहीं है कुछ कहने को..............:))
सतीश अग्निहोत्री जी हार्दिक आभार रचना पसंद आई आपको
गणेश बागी जी आपकी प्रतिक्रिया से प्रोत्साहन मिला हार्दिक आभार
हृदयस्पर्शी रचना के लिए ..आपको ढेर सारी बधाई .........
//तेरा गम सब हरना होगा
माँ मुझको अब उड़ना होगा|//
प्राकृतिक आपदा और उससे लड़ने का जज्बा, वाह वाह, बहुत ही प्यारी रचना, बधाई आदरणीया राजेश कुमारी जी |
हार्दिक आभार सीमा अग्रवाल जी आप रचना के मर्म तक पंहुची आपकी प्रतिक्रिया ने उत्साह वर्धन किया
हार्दिक आभार रेखा जोशी जी आपको कविता पसंद आई
.....पुनः जतन करना होगा |...पूरी रचना का सार इस सकारात्मक पंक्ति में निहित है
बहुत अच्छी रचना राजेश जी बधाई
मैं भी बाहर जाऊँगा
तेरा हाथ बटाऊँगा
तेरा गम सब हरना होगा
माँ मुझको अब उड़ना होगा|,अति सुंदर भाव आदरणीया राजेश जी ,हार्दिक बधाई
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