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छोटा परिवार - सुख का आधार ?

एक समय था जब
घर आया अतिथि
देव तुल्य होता था ..
उसको पेट भर खिला कर
कभी-कभी गृहस्वामी भूखा ही सोता था...

ऐसे गृह स्वामी की झूठन में लोट-पोट
आधा सोने का नेवला
युधिष्ठिर के राजसूय यग्य में भी ...
पूरा सोने का न हो पाया था..
और उसने सम्राट के यग्य के सम्पूर्ण फल को
गृह स्वामी की तुलना में
व्यर्थ ही बताया था..

जी भले ही लोग कहें
छोटा परिवार - सुख का आधार
नयूक्लीअर परिवार –सुखी-परिवार …
पर मैं सोचता हूँ
सुख कहाँ है ?
परिवार के छोटा होने में
या मन के बड़ा
होने में ….

‘एक बेटे का परिवार ’
माँ बाप को क्या देता है …?
जॉब के चक्कर में
बेटा बाप को अकेला मरने को छोड़ देता है

बूढ़े माँ -बाप
बेटे की भेजी गयी रकम से
कितना खुश होते हैं

इसे हम
कैसे बताएं ?
जिसका बेटा परदेस में बस गया हो ,
उस निर्वासित पिता से आप स्वयं
पूंछ आयें …

जी मैं कहाँ कह रहा हूँ
कि आप जनसँख्या बढ़ाएं
अपने घर बच्चो की लाइन लगायें …
लेकिन किसने रोका है
आपको की आप रिश्तेदारों ,अतिथियों और
पड़ोसियों को अपना मित्र न बनायें …?
उनके दुःख में शामिल न हो …
अपने सुख में उन्हें न बुलाएँ ?

किसने रोका है आपको
कि आप प्रकृति में न खो जाएँ ?
हरे -भरे छायादार - फलदार वृक्षों को
अपना बेटा न बनायें …
और अपनी धरती माँ को न सजाएँ …

जी मेरा तो यही आग्रह है
कि आप अपना परिवार बढ़ाएं
एकाकी निर्वासित उदासीन जीवन को त्याग
सामाजिक जीवन अपनाएं …
और देश को खुशहाल बनायें ….
........ब्रिजेश कुमार त्रिपाठी

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Comment by satish mapatpuri on August 12, 2010 at 4:41pm
जी भले ही लोग कहें
छोटा परिवार - सुख का आधार
नयूक्लीअर परिवार –सुखी-परिवार …
पर मैं सोचता हूँ
सुख कहाँ है ?
परिवार के छोटा होने में
या मन के बड़ा
होने में ….
ब्रिजेश जी, आपने बहुत गंभीर बात कह दी है. सच, मन का बड़ा होना सबसे जरुरी है. मेरा साधुवाद स्वीकार करें.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 12, 2010 at 9:10am
मेरा तो यही आग्रह है
कि आप अपना परिवार बढ़ाएं
एकाकी निर्वासित उदासीन जीवन को त्याग
सामाजिक जीवन अपनाएं …
और देश को खुशहाल बनायें ….
बहुत ही खुबसूरत और एक सन्देश देती हुई रचना, सच है पास पड़ोस, दोस्त मित्र ये सब भी तो परिवार के हिस्सा ही है , बहुत खूब , अच्छा भाव, सुंदर अभिव्यक्ति , बधाई स्वीकार करे इस बेहतरीन प्रस्तुति पर ,

कृपया ध्यान दे...

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