For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog – August 2014 Archive (7)

राह देखी सूर्य की भर रात हमने - ( गजल ) - लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

2122     2122     2122

*************************

सिंधु  मथते  कर पड़ा  छाला हमारे

हाथ  आया  विष  भरा प्याला हमारे

***

धूर्तता  अपनी  छिपाने  के लिए क्यों

देवताओं    दोष    मढ़   डाला  हमारे

***

भाग्य सुख को ले चला जाने कहाँ फिर

डाल  कर  यूँ  द्वार  पर  ताला  हमारे

***

हर  तरफ  फैले हुए हैं दुख के बंजर

खेत  सुख  के  पड़ गया पाला हमारे

***

राह  देखी  सूर्य  की  भर   रात हमने

इसलिए  तन  पर  लगा काला…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 27, 2014 at 11:14am — 10 Comments

अदाओं से उसका लुभाना गया - ग़ज़ल ( लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’ )

2122    1221     2212

************************

नीर पनघट  से  भरना, बहाना गया

चाहतों का वो दिलकश जमाना गया

***

दूरियाँ  तो  पटी  यार  तकनीक  से

पर अदाओं से उसका लुभाना गया

***

पेड़  आँगन  से  जब  दूर  होते गये

सावनों  का  वो मौसम सुहाना गया

***

आ  गये  क्यों  लटों  को बिखेरे हुए

आँसुओं  का  हमारे  ठिकाना  गया

***

नाम  उससे  हमारा  गली  गाँव  में

साथ  जिसके हमारा  जमाना  गया

***

गंद शहरी जो गिरने…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 23, 2014 at 10:00am — 25 Comments

बेगानों की महफिल में तो - ग़ज़ल ( लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’ )

2222    2222    2222    222

*******************************

देता  है  आवाजें  रूक-रूक  क्यों मेरी खामोशी को

थोड़ा तो मौका दे मुझको गम से हम आगोशी को

***

कब  मागे  मयखाने  साकी  अधरों ने उपहारों में

नयनों के दो प्याले काफी जीवन भर मदहोशी को

***

देखेगी  तो  कर  देगी  फिर  बदनामी  वो तारों तक

अपना आँचल रख दे मुख पर दुनियाँ से रूपोशी को

***

बेगानों  की  महफिल  में  तो चुप रहना मजबूरी थी

अपनों  की  महफिल  में  कैसे अपना लूँ बेहोशी…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 20, 2014 at 11:21am — 24 Comments

ये मिट्टी भी हमारी ही महक देती खलाओं तक - ग़ज़ल ( लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’ )

1222    1222    1222     1222

*********************************

जहन  की  हर  उदासी  से  उबरते तो सही पहले

जरा तुम नेह के पथ से गुजरते  तो सहीे पहले

**

हमारी  चाहतों  की  माप  लेते  खुद ही गहराई

जिगर  की  खोह में थोड़ा उतरते तो सही पहले

**

ये मिट्टी भी हमारी ही महक देती खलाओं तक

हमारे  नाम  पर  थोड़ा  सॅवरते तो सही पहले

**

तुम्हें भी धूप सूरज की बहुत मिलती दुआओं सी

घरों  से  आँगनों  में  तुम  उतरते तो सही पहले

**

गलत फहमी…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 17, 2014 at 9:30am — 18 Comments

बोलने से कौन करता है मना - (ग़ज़ल) - लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

2122    2122    212

**********************

जन्म  से  ही   यार  जो  बेशर्म  है

पाप क्या उसके लिए, क्या धर्म है

**

छेड़ मत तू बात किस्मत की यहाँ

साथ  मेरे  शेष  अब  तो  कर्म  है

**

बोलने  से  कौन  करता है मना

सोच पर ये शब्द का क्या मर्म है

**

चाँद  आये  तो  बिछाऊँ  मैं उसे

 एक  चादर  आँसुओं  की नर्म है

**

शीत का मौसम सुना है आ गया

पर चमन की  ये हवा क्यों गर्म है

**

( रचना - 30 जुलाई 2014 )



मौलिक…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 11, 2014 at 11:00am — 15 Comments

घर जलाना भी हमारा व्यर्थ अब - लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

2122    2122    212

**

मयकदे को अब शिवाले बिक गये

रहजनों  के  हाथ  ताले बिक गये

**

घर  जलाना भी  हमारा व्यर्थ अब

रात  के  हाथों  उजाले  बिक  गये

**

जो खबर थी अनछपी ही रह गयी

चुटकले  बनकर मशाले बिक गये

**

न्याय फिर बैसाखियों पर आ गया

जांच  के  जब  यार आले बिक गये

**

दुश्मनों की अब जरूरत क्या रही

दोस्ती के फिर से पाले बिक गये

**

सोचते  थे नींव जिनको गाँव की

वो शहर में बनके माले बिक गये

**



मौलिक और…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 8, 2014 at 10:39am — 15 Comments

‘रेप’ को जोकर सरीखों ने कहा जब बचपना - ग़ज़ल

2122    2122    2122    212

*******************************

एक   सरकस   सी   हमारी   आज  संसद  हो गयी

लोक हित की इक नदी जम आज हिमनद हो गयी

**

जुगनुओं से  खो  गये  लीडर  न  जाने फिर कहाँ

मसखरों  की आज  इसमें  खूब  आमद  हो गयी

**

‘रेप’ को  जोकर  सरीखों ने  कहा  जब  बचपना

जुल्म  की  जननी खुशी से  और गदगद हो गयी

**

दे  रहे  ऐसे  बयाँ,  जो   जुल्म   की   तारीफ  है

क्योंकि  सुर्खी  लीडरों का आज मकसद हो गयी

**

जुल्म  की  सरहद…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 3, 2014 at 9:00am — 26 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 165 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह बहुत सुन्दर, चित्र जीवंत हो गया..हार्दिक बधाई आदरणीय अशोक जी"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 165 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक जी उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिये हार्दिक आभार "
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 165 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, सत्य कहा है आपने जागते का स्वप्न सफलता की ओर अग्रसर करता…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 165 in the group चित्र से काव्य तक
" प्रयास पर आपके मार्गदर्शन के लिये हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 165 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रस्तुत घनाक्षरी छंद आपको सुन्दर लगा मेरा रचना कर्म सफल…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 165 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत घनाक्षरी छंद पर उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार.…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 165 in the group चित्र से काव्य तक
" आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, मेरा यह प्रयास सफल रहा इसकी मुझे प्रसन्नता है. छंद पर निरंतर…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 165 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रदत्त चित्र को बहुत सुन्दरता से परिभाषित किया है. सच है जग में…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 165 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   एक  बैग  आज  हाथ, जो  लिया  तो  साथ साथ, आँख…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 165 in the group चित्र से काव्य तक
"मुन्नू अभी पाठशाला जाइए .. बहुत खूब सुझाव शाब्दिक हुआ है.  लेकिन, मुश्किलों को दिखा धता,…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 165 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीय अखिलेश जी"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 165 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक जी बहुत सुन्दर सारगर्भित छंद रचना हार्दिक बधाई "
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service