For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

JAGDISH PRASAD JEND PANKAJ's Blog (6)

थपथपाये हैं हवा ने द्वार मेरे

मित्रों के अवलोकनार्थ एवं अभिमत के लिए प्रस्तुत एक ताज़ा नवगीत

"मौलिक व अप्रकाशित"  -जगदीश पंकज

थपथपाये हैं हवा ने द्वार मेरे

क्या किसी बदलाव के

संकेत हैं ये

फुसफुसाहट,

खिड़कियों के कान में भी

क्या कोई षड़यंत्र

पलता जा रहा है

या हमारी

शुद्ध निजता के हनन को

फिर नियोजित तंत्र

ढलता जा रहा है

मैं चकित गुमसुम गगन की बेबसी से

क्या किसी ठहराव के …

Continue

Added by JAGDISH PRASAD JEND PANKAJ on August 7, 2015 at 5:30pm — 9 Comments

रंगों के पर्व होली पर

रंगों के पर्व होली पर सभी मित्रों को हार्दिक शुभकामनायें -जगदीश पंकज

उड़ने लगा गुलाल,

अबीर हवाओं में

रंगों का त्यौहार

रंगीली होली है

मस्त हवा के

झोंकों ने अंगड़ाई ले

अंगों पर कैसी

मदिरा बरसाई है

मौसम की रंगीन

फुहारों से खिलकर

बजी बावरे मन में

अब शहनाई है

लगा नाचने रोम-रोम

तरुणाई का

मौसम ने मस्ती की

गठरी खोली है

रंगों की बौछारों ने

संकेत किया

रिश्तों की अनुकूल

चुहल अंगनाई में

जीजा-साली ,कहीं…

Continue

Added by JAGDISH PRASAD JEND PANKAJ on March 5, 2015 at 11:20pm — 5 Comments

धूमिल सपने हुए हमारे

धूमिल सपने हुए हमारे

रंगहीन सी

प्रत्याशाएँ

सोये-जागे सन्दर्भों की

फैली हैं

मन पर शाखाएँ

 

शंकायें तो रक्तबीज सी

समाधान पर भी

संशय है

अपने पैरों की आहट में

छिपा हुआ अन्जाना

भय है

 

किस-किसका अभिनन्दन कर लें

किस-किसका हम

शोक मनाएँ

 

सांस-सांस में दर्प निहित है

कुछ होने कुछ

अनहोने का

कुछ पाने की उग्र लालसा

लेकिन भय

सब कुछ खोने का

 

अनगिन…

Continue

Added by JAGDISH PRASAD JEND PANKAJ on February 12, 2015 at 8:30pm — 10 Comments

चीखकर ऊँचे स्वरों में कह रहा हूँ --जगदीश पंकज

चीखकर ऊँचे स्वरों में

कह रहा हूँ

क्या मेरी आवाज

तुम तक आ रही है ?

 

जीतकर भी

हार जाते हम सदा ही

यह तुम्हारे खेल का

कैसा नियम है

चिर -बहिष्कृत हम

रहें प्रतियोगिता से ,

रोकता हमको

तुम्हारा हर कदम है

 

क्यों व्यवस्था

अनसुना करते हुए यों

एकलव्यों को

नहीं अपना रही है ?

 

मानते हैं हम ,

नहीं सम्भ्रांत ,ना सम्पन्न,

साधनहीन हैं,

अस्तित्व तो है

पर हमारे पास…

Continue

Added by JAGDISH PRASAD JEND PANKAJ on July 10, 2014 at 6:00am — 13 Comments

एक ताज़ा नवगीत -----जगदीश पंकज---मैं स्वयं निःशब्द हूँ,



एक ताज़ा नवगीत -----जगदीश पंकज

मैं स्वयं निःशब्द हूँ,

निर्वाक् हूँ

भौंचक्क ,विस्मित

क्यों असंगत हूँ

सभी के साथ में

चलते हुए भी

खुरदरापन ही भरा

जब जिंदगी की

हर सतह पर

फिर कहाँ से खोज

चेहरे पर सजे

लालित्य मेरे

जब अभावों के

तनावों के मिलें

अनगिन थपेड़े

तब किसी अवसाद

के ही चिन्ह

चिपकें नित्य मेरे

मुस्कराते फूल

हंसती ओस

किरणों की चमक से …

Continue

Added by JAGDISH PRASAD JEND PANKAJ on June 19, 2014 at 7:30pm — 34 Comments

एक नया नवगीत -जगदीश पंकज

एक नया नवगीत -जगदीश पंकज

नोंच कर पंख, फिर 

नभ में उछाला

जोर से जिसको

परिंदा तैर पायेगा

हवा में

किस तरह से अब

बिछाकर जाल

फैलाकर कहीं पर

लोभ के दाने

शिकारी हैं खड़े

हर ओर अपनी

दृष्टियाँ ताने

पकड़कर कैद

पिंजरे में किया

फिर भी कहा गाओ

क्रूर अहसास ही

छलता रहा है

हर सतह से अब

कांपते पैर जब

अपने, करें विश्वास

फिर किस पर

छलावों से घिरे

हैं हम ,छिपा है

आहटों में…

Continue

Added by JAGDISH PRASAD JEND PANKAJ on April 24, 2014 at 8:57am — 7 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .राजनीति
"हार्दिक आभार आदरणीय"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .राजनीति
"आ. भाई सशील जी, शब्दों को मान देने के लिए आभार। संशोधन के बाद दोहा निखर भी गया है । सादर..."
4 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .राजनीति

दोहा पंचक. . . राजनीतिराजनीति के जाल में, जनता है  बेहाल । मतदाता पर लोभ का, नेता डालें जाल…See More
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post बेटी दिवस पर दोहा ग़ज़ल. . . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।  अबला बेटी करने से वाक्य रचना…"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on KALPANA BHATT ('रौनक़')'s blog post डर के आगे (लघुकथा)
"आ. कल्पना बहन, सादर अभिवादन। अच्छी कथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शिवजी जैसा किसने माथे साधा होगा चाँद -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
yesterday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शिवजी जैसा किसने माथे साधा होगा चाँद -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"वाह आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत ही खूबसूरत सृजन हुआ है सर । हार्दिक बधाई"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .राजनीति
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।सहमत देखता हूँ"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' left a comment for Radheshyam Sahu 'Sham'
"आ. भाई राधेश्याम जी, आपका ओबीओ परिवार में हार्दिक स्वागत है।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शिवजी जैसा किसने माथे साधा होगा चाँद -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२२२ २२२२ २२२२ २**पर्वत पीछे गाँव पहाड़ी निकला होगा चाँद हमें न पा यूँ कितने दुख से गुजरा होगा…See More
yesterday
Radheshyam Sahu 'Sham' is now a member of Open Books Online
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दो चार रंग छाँव के हमने बचा लिए - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई आशीष जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति व स्नेह के लिए आभार।"
yesterday

© 2023   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service