बह्र- 2122 1122 1122 22(112)
ज़हर पी के मैं तेरे हाथ से मर जाऊँगा
और हँसते हुए दुनिया से गुज़र जाऊँगा [1]
जो सिला मुझ को मिला है यहाँ सच बोलने से
अब तो मैं झूट ही बोलूँगा जिधर जाऊँगा [2]
रात को ख़्वाब में आऊँगा फ़रिश्ते की तरह
और आँखों से तेरी सुब्ह उतर जाऊँगा [3]
ख़ून छन छन के निकलता है कलेजे से मेरे
रोग ऐसा है कि कुछ रोज़ में मर जाऊँगा [4]
सामना होने पे पूछेगा तू , पहचाना मुझे?
गर मैं पहचान भी…
Added by Rupam kumar -'मीत' on October 15, 2020 at 5:30pm — 12 Comments
बह्र- 1212 / 1122 / 1212 / 22 (112)
अज़ाब-ए-हिज्र में सुख-दुख के गीत गाए भी
हम उनकी याद में रोए भी मुस्कुराए भी [1]
ख़ुदा ने ख़ल्क़ किया है चराग़ जैसा हमें
वही जलाए हमें फिर वही बुझाए भी [2]
अजीब साल ये गुज़रा हमारी जिंदगी में
ख़ुदा करे न दुबारा कभी फिर आए भी [3]
हमारे यार का अंदाज़-ए-इश्क़ सबसे जुदा
कभी हँसाए वो हमको कभी रुलाए भी [4]
गुलाब जैसे लबों से वो हमको चूमता है
निशान प्यार के सीने से फिर मिटाए…
Added by Rupam kumar -'मीत' on September 27, 2020 at 1:00am — 17 Comments
बह्र-22/22/22/22/22/2
अब से झूटा इश्क़ नहीं करना जानाँ
और किसी को मत देना धोखा जानाँ [1]
जब आँखों को दरिया करने का मन हो
तब मेरी रूदाद-ए-ग़म सुनना जानाँ [2]
दिन से रात तलक मैं तुमको रोता हूँ
तुम भी मुझको आठ-पहर रोना जानाँ [3]
अपने हाथ के कंगन जा पर रखना तुम
वाँ पर मेरी ग़ज़लें मत रखना जानाँ [4]
तुम रिश्तों में मत ढूँडो ख़ुशियाँ सारी
सीखो ख़ुद से मिलकर ख़ुश होना जानाँ [5]
आज जला दी वो…
ContinueAdded by Rupam kumar -'मीत' on September 16, 2020 at 5:30am — 10 Comments
बह्र- 2122 1122 1122 22(112)
देख तूफ़ाँ की ये रफ़्तार ख़ुदा ख़ैर करे
घर की कमज़ोर हैं दीवार ख़ुदा ख़ैर करे [1]
कर न दें मुफ़लिसों पे वार ख़ुदा ख़ैर करे
चंद पैसों के तलबगार ख़ुदा ख़ैर करे [2]
लौटने का मेरा है ख़ुद में इरादा लेकिन
"ये सफ़र है बड़ा दुश्वार ख़ुदा ख़ैर करे" [3]
नौकरी भी नहीं है हाथ में उस पर मेरा
हर समेस्टर गया बे-कार ख़ुदा ख़ैर करे [4]
मुझको हर सम्त से घेरा हुआ है दुश्मन ने
और गर्दन पे है तलवार…
Added by Rupam kumar -'मीत' on August 27, 2020 at 8:00am — 6 Comments
बह्र- 1222×4
ज़मीं भाती नहीं और आसमाँ अच्छा नहीं लगता
कहाँ ले जाएँ दिल को ये जहाँ अच्छा नहीं लगता[1]
मेरा दम शहर में घुटता है कुछ दुख गाँव में भी हैं
यहाँ अच्छा नहीं लगता वहाँ अच्छा नहीं लगता [2]
वो अपने हाथ से जुगनू नहीं ऊपर उड़ाता तो
सितारों के बिना ये आसमाँ अच्छा नहीं लगता [3]
हमारे घर में भी ख़ुशियाँ सभी मौजूद हैं लेकिन
हमें बरसात में अपना मकाँ अच्छा नहीं लगता [4]
नहीं हो हम-सफ़र जब साथ उस तन्हा…
ContinueAdded by Rupam kumar -'मीत' on August 5, 2020 at 1:00pm — 16 Comments
बह्र-1222/1222/122
समंदर आज तक ठहरा हुआ है
किनारों ने इसे बाँधा हुआ है[1]
जुदा आँचल से मत करना अभी तो
परिंदा छाँव में बैठा हुआ है[2]
मियाँ तक़दीर में बस मुफ़लिसों की
ज़मीन-ओ-आसमाँ लिक्खा हुआ है[3]
हमारे जिस्म की क़ीमत वही जो
हमारे इल्म में ख़र्चा हुआ है[4]
उसे तोहफे में देना आइना जो
ग़ुरूर-ए-हुस्न में डूबा हुआ है[5]
हमें लगता था तारे हम-क़दम हैं
निगाहों को बड़ा धोखा हुआ…
Added by Rupam kumar -'मीत' on July 18, 2020 at 6:30am — 4 Comments
बह्र-221/2121/1221/212
वो शह्र-ए-दिल सदा के लिए छोड़ क्या गया
आँखों से मेरी प्यार का मौसम चला गया [1]
उस को ख़बर थी ख़ौफ़ मुझे तीरगी से है
जलते हुए चराग़ तभी तो बुझा गया [2]
आँखों में था मलाल वो रुख़सत हुआ था जब
मुड़ मुड़ के दूर तक वो मुझे देखता गया [3]
अपने बदन से उस को रिहा करने के लिए
खंज़र से हाथों की नसों को चीरता गया [4]
हम रो रहे हैं और उन्हें कोई ग़म नहीं
अल्लाह हमारे प्यार…
Added by Rupam kumar -'मीत' on July 10, 2020 at 10:00am — 12 Comments
2122/1212/22 (112)
रोज़ देता हूँ बद-दुआ तुमको
ग़म-ज़दा ही रखे ख़ुदा तुमको[1]
जान-ए-जाँ मौसम-ए-ख़िज़ाँ में भी
हमने रक्खा हरा भरा तुमको[2]
बे-तरह चीख़ कर लिखा हमने
अपनी ग़ज़लों में बे-वफ़ा तुमको[3]
सुर्ख़ आँखें गवाही देती है
कल की शब भी थी रत-जगा तुमको[4]
हिज्र ने हमको बे-क़रार किया
मिल गया फ़ासलों से क्या तुमको[5]
बीच दरिया में हाथ छोड़ दिया
डूब जाऊँगा इल्म था तुमको[6]
अपनी मंज़िल…
ContinueAdded by Rupam kumar -'मीत' on June 27, 2020 at 11:00am — 7 Comments
2122 1212 22
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ग़म-ज़दा होंट मुस्कुराते हैं
तेरा जब नाम गुनगुनाते हैं[1]
नींद वो दर है जिसके खुलने से
ख़्वाब आँखों में जगमगाते हैैं[2]
अब उदासी में है परिंदे क्यूँ?
लोग पेड़ों से घर बनाते हैं[3]
तेरे गालों पे बिखरी वो ख़ुशबू
अपने होंटों से हम चुराते हैं
अब तो होता है अपना यूँ मिलना
अब्र सावन में जैसे आते हैंं[5]
तेरी सूरत पे लिक्खा…
ContinueAdded by Rupam kumar -'मीत' on June 7, 2020 at 10:30am — 21 Comments
१२२२/१२२२/१२२
ये ग़म ताज़ा नहीं करना है मुझको
वफ़ा का नाम अब डसता है मुझको[१]
मुझे वो बा-वफ़ा लगता नहीं है
मगर वो बे-वफ़ा कहता है मुझको[२]
मेरे पीछे जो तूने गुल खिलाए
तेरे चेहरे पे सब दिखता है मुझको[३]
नहीं है ग़मज़दा वो फिर भी उसने
भरम में आज तक रक्खा है मुझको[४]
मोहब्बत को उड़ाकर ख़ाक़ में वो,
सितमगर, बे-झिझक कहता है मुझको[५]
कलेजा चाक करके ख़ूँ किया है,
भला किश्तों में क्यूँ…
ContinueAdded by Rupam kumar -'मीत' on June 1, 2020 at 5:00pm — 4 Comments
Added by Rupam kumar -'मीत' on May 29, 2020 at 8:30am — 13 Comments
Added by Rupam kumar -'मीत' on May 28, 2020 at 12:30pm — 8 Comments
122/122/122/122
चराग़ों की यारी हवा से हुई है
जहाँ तीरगी थी वहीं रौशनी है
इबादत में होना असर लाज़िमी है
वो नाज़ुक कली जो दुआ कर रही है
बिछावन मेरा क्यूँ सजाए गुलों से
मेरी आँख में नींद की अब कमी है
है सर्दी के मौसम में गर्मी का आलम
लिपट के वो मुझसे पिघलने लगी है
मैं आ तो गया हूँ फ़लक से वो लेकर
जो माँगी थी तुमने वही चाँदनी है
महब्बत के साये में बैठा हूँ थक कर
खुला आसमाँ है तुम्हारी कमी…
Added by Rupam kumar -'मीत' on May 27, 2020 at 3:00pm — 5 Comments
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