For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रिय मित्रो,

बहुत व्यथित होता है मन जब युवा पीढ़ी को बिना सोचे समझे एक ऐसे रास्ते को चुनते देखता है, जिस पर बिछे काँटों वो स्वयं देख कर भी अनदेखा करते हैं.

ये सच है कि अपना जीवन साथी स्वयं चुनने का अधिकार सभी युवाओं को है, पर जीवन साथी चुनना एक बहुत बड़ा फैसला है, जिसे सिर्फ भावावेश में नहीं लेना चाहिए. विवाह के लिए सही साथी का चयन एक ऐसा कदम है जिसे बहुत ही सोच समझ कर लिया जाना चाहिए.

प्रेम विवाह में आगे जाने का रास्ता जितना स्वप्निल प्रतीत होता है, असल में उतना ही चुनौतियों भरा होता है, क्योंकि जिसे युवा प्रेम की पराकाष्ठा समझ कर कसमें खाते हैं, भविष्य के स्वप्न बुनते हैं, असल में वो उनकी ही कमजोरियों को मिला क्षणिक सहारा होता है, जिससे उन्हें क्षणिक राहत मिलती है, जिसे वो प्रेम समझ बैठते हैं.

ये सच है कि ज़िंदगी बहुत खूबसूरत है, और हमें हर कदम पर बहुत अच्छे लोग भी मिलते हैं, जो हमारे मन को गहराई से छू जाते हैं, पर यह प्यार तो नहीं कि किसी ने हमारे साथ दो-चार बार अच्छा किया तो हम अपनी ज़िंदगी उसके नाम कर दें, ख़ास तौर पर लडकियां ऐसी ही भावुक होती हैं, जो सामान्य अच्छाइयों को भी अपने कोमल मन में प्यार का नाम देने की गलती करती हैं. फिर साथ घूमना, छोटी-छोटी बातों को आपस में बांटना, और अपनी सोच को इतना ज्यादा प्रेम केन्द्रित कर देना कि प्रिय की हर बड़ी से बड़ी अस्वीकार्य बात को भी बिलकुल छोटा सा  समझने लगना और प्रिय का एक हद तक अन्धानुकरण और अंधविश्वास करने लगना. फिर ऐसे ही भावनाओं के आवेश में आकर जाति, धर्म, रीति रिवाज, रहन-सहन के फासलों, भाषाई विलगताओं, जीवन स्तर, मानसिक सोच की समानता, सबको दर किनार कर आपस में विवाह का फैसला ले वचनबद्ध हो जाते है. यह सब कितना स्वप्निल और प्यारा लगता है उन्हें.....

लेकिन जब विवाह संस्था में कदम रखने की बात आती है तो सामने होते हैं दो पूरे परिवार. जहां माता पिता, हितचिन्तक साफ़ साफ़ देख पाते हैं काँटों भरा रास्ता...... ऐसे में माता पिता भी दुश्मन नज़र आते हैं, कुछ उदाहरण देती हूँ:

१.      एक मलयालम भाषी दक्षिण भारतीय निम्नवर्गीय सांवला मांसाहारी ईसाई लड़का और एक उत्तर-भारतीय उच्चवर्गीय बहुत गोरी शाकाहारी हिंदु लडकी यदि एक दूसरे से शादी का वायदा करें  तो कैसे उनके माता पिता उन्हें खुशी खुशी इजाज़त दे दें..? कैसा होगा भविष्य ?

२.      एक बहुत पढी-लिखी, उच्चवर्गीय, समाज भीरु, मर्यादित परिवार की ब्राह्मण लड़की यदि अपने से ५ वर्ष छोटी आयु के विजातीय निम्नवर्गीय, कम पड़े लिखे लड़के से , जो किसी भी रूप में उसकी प्रतिभाओं के सामने कहीं खडा नहीं होता, और न ही कोई अच्छी नौकरी करता है... कैसे उनके माता पिता उनके विवाह को स्वीकृति दे दें.

ऐसे में न तो युगल, एक दूसरे को अपने परिवार वालों के सामने लाने की हिम्मत कर पाते है, और ना ही वो एक दूसरे को धोखा देना चाहते है. मन ही मन उनके मन में हीन भावना होती है, वो जानते हैं कि ये चयन गलत है, उनके माता पिता कभी स्वीकृति नहीं देंगे, पर वो सच को अनदेखा करते हैं, एक अंतर्द्वंद से गुज़रते हैं..... माता पिता के द्वारा जब विवाह के लिए अच्छे-अच्छे रिश्ते आते हैं तो वो उन्हें ठुकराते जाते हैं, टालते जाते हैं.

ऐसे में माता-पिता भी एक अवर्णनीय पीड़ा से गुज़रते है.... बेचारे वो तो ये भी समझ नहीं पाते, कि बच्चे अचानक ऐसा बर्ताव क्यों कर रहे हैं, आखिर क्यों नहीं खुल कर बात हो पाती. बच्चे चिल्लाने लगते हैं, कुछ जान दे देने की धमकी देते हैं, कुछ घर छोड़ देंगे ऐसा कहते हैं, कुछ कभी शादी न करने की धमकी देते हैं, माता पिता टूट जाते हैं, रोते हैं , बिलखते हैं, पर बच्चे नहीं समझ पाते.... और पूरा परिवार अवर्णनीय तनाव के लम्बे दौर से गुज़रता है..... धैर्य का अंत हो जाता है, वाक् बाण चलते हैं, जो बच्चों के भी और माता पिता के भी सीनों को चीर जाते हैं, कई बंदिशें लगती हैं, यहाँ तक की हाथ भी उठ जाते हैं...... कोई हल नज़र नहीं आता, न तो युवाओं को और न ही माता पिता को.

प्रेम विवाह गलत नहीं हैं, कट्टर ररूढ़िवादिता के चलते यदि माता-पिता भी अपने बच्चों की बात को सिरे से नजरअंदाज कर दें, तो यह सही नहीं है. बदलते समय के अनुसार उन्हें भी अपने सोच के दायरों को विस्तार देना चाहिए. और युवाओं को यह बात पूर्णता से समझ कर गाँठ बाँध लेनी चाहिए की माता-पिता से बढ़ कर उनका कोई हितैषी नहीं हो सकता. आखिर कैसे कोई भी माता-पिता जो अपने बच्चों की राहों में बिछाने के लिए हाथों में फूल लिए बैठे हों, वो संयत हो कर सब देखते बूझते हुए भी अपने बच्चों को काँटों के रास्ते पर चलने की इजाज़त दें दें....

जहां तक मुझे लगता है, ऐसे बेमेल प्यार का कोइ सुखद भविष्य नहीं होता, क्योंकि वैवाहिक ज़िंदगी सिर्फ स्वप्निल प्यार नहीं होती, बल्कि प्रेमपूर्वक सारी जिम्मेदारियों का आपसी समझ के साथ निर्वहन होती है... विभिन्नताएं और विषमताएं जितनी ज्यादा होती हैं रिश्तों को निभाना उतना ही मुश्किल होता जाता है.

और विवाह जैसा महत्वपूर्ण निर्णय कभी भी एक भावप्रवाह में लिया गया भावुक निर्णय ना होकर एक सोचा समझा सुलझा हुआ निर्णय ही होना चाहिए. जिसे युवाओं द्वारा एक पूर्णतः स्वस्थ मनःस्थिति में लिया जाना चाहिए.

 

 

............इस विषय पर कहने के लिए बहुत कुछ है, पर अभी इतना ही.

सादर.

कल एक माता पिता की व्यथा और उनकी आँखों के आंसुओं, साथ ही उनकी युवा संतान की ऐसी ही जिद नें, इस पारदर्शी सोच को इस आलेख मे शब्दबद्ध कर आप सबके साथ सांझा करने को बाध्य किया. 

Views: 1635

Replies to This Discussion

...मै आपके विचारों से सहमत हूँ डॉ.प्राची सिंह!...आँखें बंद करके प्रेम के नाम पर अंधी दौड लगा कर कुँए में छलांग लगाना अकलमंदी नहीं है!...ऐसे प्रेम में जाहिर है कि लड़कियों को ही विपत्तियों का सामना करना पड़ता है!आखें खुली रख कर भी प्रेम किया जा सकता है!...शिक्षा प्रद लेख!...हार्दिक आभार!

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- गाँठ
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी उपस्थिति से प्रसन्नता हुई। हार्दिक आभार। विस्तार से दोष…"
19 hours ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- गाँठ
"भाई, सुन्दर दोहे रचे आपने ! हाँ, किन्तु कहीं- कहीं व्याकरण की अशुद्धियाँ भी हैं, जैसे: ( 1 ) पहला…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी जी "
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"सादर नमस्कार आदरणीय।  रचनाओं पर आपकी टिप्पणियों की भी प्रतीक्षा है।"
Mar 1
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।नमन।।"
Feb 28
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी।नमन।।"
Feb 28
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"बहुत ही भावपूर्ण रचना। शृद्धा के मेले में अबोध की लीला और वृद्धजन की पीड़ा। मेले में अवसरवादी…"
Feb 28
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"कुंभ मेला - लघुकथा - “दादाजी, मैं थक गया। अब मेरे से नहीं चला जा रहा। थोड़ी देर कहीं बैठ लो।…"
Feb 28
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आदरणीय मनन कुमार सिंह जी, हार्दिक बधाई । उच्च पद से सेवा निवृत एक वरिष्ठ नागरिक की शेष जिंदगी की…"
Feb 28
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"बढ़िया शीर्षक सहित बढ़िया रचना विषयांतर्गत। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।…"
Feb 28
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"रचना पटल पर उपस्थिति और विस्तृत समीक्षात्मक मार्गदर्शक टिप्पणी हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीय तेजवीर…"
Feb 28

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service