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आदरणीय साथियो,

ओबीओ द्वारा  "चित्र से काव्य तक" अंक-२ का आयोजन दिनांक १६ मई  से २० मई तक श्री अम्बरीश श्रीवास्तव जी के संचालन में किया गया ! ५ दिन तक चले इस आयोजन में शहर के एक हरे भरे उद्यान में अकेले खड़े एक मोर की तस्वीर देकर रचनाकर्मियों को उस पर लिखने के लिए कहा गया था ! रचनाधर्मियों ने प्रतियोगिता के लिए तथा "प्रतियोगिता से अलग" रह कर अपनी अपनी कृतियाँ प्रस्तुत कीं ! मुझे कहते हुए बहुत हर्ष महसूस हो रहा है  है कि इस बार इस आयोजन को पिछली बार की तुलना में कई गुणा ज्यादा सफलता मिली ! इस बार भी काव्य की बहुत सी विधाओं को लेकर साहित्य सृजन किया गया ! खुली कविता, ग़ज़ल, कुंडली, घनाक्षरी, गीत, हाइकू, रुबाई, मुक्तक औ यहाँ तक कि एक लुप्तप्राय:विधा "कह-मुकरी" को भी रचनाकर्मियों ने अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया ! दिए गए चित्र को सभी ने अपने अपने ढंग से परिभाषित करने का प्रयास किया ! जहाँ एक तरफ मोर की सुन्दरता का बखान किया गया वहीँ दूसरी ओर अंधाधुंध शहरीकरण, प्रदूषण, ख़त्म होते जंगल, तथा लुप्त हो रहे राष्ट्रीय पक्षी को अधिकतर कवियों ने अपना विषय बनाया ! कुछ बानगियाँ आपके समक्ष पेश कर रहा हूँ जो प्रतियोगिता के विभिन्न रंगों का प्रतिनिधित्व करती हैं : :

//चिलचिलाती धूप को, करने विदा, आने को है
कह रहा है मोर, अब, काली घटा छाने को है।

एक, हरियाली भरा, टुकड़ा दिखा जो शह्र में
देखते ही देखते, दिल का पता पाने को है।//

(श्री तिलक राज कपूर जी)


//उमड़ घुमड कर मेघा बरसे,
बिजुरी चमके,  दामिनी दरसे, 
मयूरा झूम झूम के गाये
पीयू पीयू पीयू कह मन बहलाए //
(श्रीमती शारदा मोंगा जी//

//आंचल में मीठा पानी लाने को,
तुम कब तक देखोगे राह पावस की 
वो आएगा तो भी आ नहीं पायेगा//
(श्री शील कुमार जी)

//धरती हुई है धानी बरसात का ये मौसम.
कुदरत हुई सुहानी जज्बात का ये मौसम.
खिड़की से झांक लो जी मन मोर नाचने को-
दिखते सभी भगत हैं कुछ बात का ये मौसम..//
(श्री अम्बरीश श्रीवास्तव जी)


//
हरियाली ही हर सके, मन का खेद-विषाद.
मानव क्यों कर रहा है, इसे नष्ट-बर्बाद?//
(आचार्य  संजीव सलिल जी)
 
//मयूर जहां-तहां दौड़ लगते,
मिल जाये कहीं अब ठंडी पवन  
मनोहर ऋतु सदा रहे अगर,
"रत्ती" खिला रहे सबका मन   //
(श्री सुरिंदर रत्ती जी)

//पावस के आने का ज़ोर,शहर किनारे खडा मोर,
ढूँढ रहा चँहुदिस शीतल समीर का कोई कोर !

मोटर,कारों फ़ैक्ट्रीयों की धुँआ उगलती चिमनियाँ,
भुला रही रितु आमन्त्रण का चिर-परिचित शोर!!//

(श्री बोधिसत्व कस्तूरिया जी)


//हम परिंदों की जुबां सिलने लगीं ,
आप सबकी हस्तियाँ खिलने लगीं |
बाग़ और वन दिन ब दिन कटते रहे ,
हर कदम कुछ बस्तियां मिलने लगीं |
ज़िक्र तुमने मोर बगुले का किया ,
वृक्ष की सब पत्तियाँ हिलने लगीं |//
(श्री अरुण कुमार पाण्डेय "अभिनव"
)

 

//चारों ओर बसे हरियाली और बागों में मोर,
हो निर्दोष पवन जल धरती रुके हानिकर शोर,
निर्भय कलरव करें विहग तब जनगण मन हर्षाये,
भारत विकसित राष्ट्र बने तब विश्व शांति की ओर|//

(श्री अलोक सीतापुरी जी)


 इसी दौरान आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी एवं आचार्य संजीव सलिल जी की कालजयी रचनाओं से भी हमारा साक्षात्कार हुआ ! उनकी प्रशंसा के लिए मेरे पास शब्द कम पड़ जाते हैं ! जहाँ अन्य रचनाकारों के चित्र के अनुरूप लिखने का प्रयास किया, इन दोनों अग्रजों ने चित्र की आत्मा तक में पहुँच कर काव्य रचा है ! किसी दिए गए चित्र पर कैसे लिखा जाए - यह बात इनसे सीखनी चाहिए ! इन दोनों रचनाकरों ने इस प्रतियोगिता को एक नई बुलंदी बक्शी है ! मैं इन दोनी की लेखनी को शत शत प्रणाम कहता हूँ !  

पूरे आयोजन के दौरान श्रीमती शारदा मोंगा जी लगातार अपनी रचनायें साझा करती रही ! उनकी इसी सक्रियता ने इस आयोजन की गति को कभी मद्धम नहीं पड़ने दिया, इसके लिए वे बधाई की पात्र हैं ! अगर यह कहा जाए की यह प्रतियोगिता उनके ही नाम रही तो कोई अतिश्योक्ति ना होगी !  

इस आयोजन के दौरान जो एक और बात बहुत ही विशेष रही वह थी रचनाकारों का लगातार आपसी संवाद ! रचनाओं पर टिप्पणियों के अतिरिक्त अन्य कई महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर हमेशा बातचीत जारी रही जिसका श्रेय आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी को जाता है ! आपने पूरे पांच दिन एक एक रचना पर न केवल टिप्पणी ही दी बल्कि जहाँ जहाँ सुधार की गुंजायश थी वहाँ अपनी सालाह भी दी ! आपकी मौजूदगी से इस आयोजन और पूरे ओबीओ परिवार ने एक नई ऊर्जा का संचार महसूस किया !
मैं दिल से धन्यवाद देना चाहूँगा उन सभी रचनाकर्मियों को जिन्होंने इस महायज्ञ में आहुतियाँ डाल इसको सफल बनाया !

श्री धर्मेन्द्र शर्मा जी ओबीओ से प्रेरणा पाकर पहली बार एक रचनाधर्मी के रूप में इस प्रतियोगिता में शामिल हुए, जोकि मेरी दृष्टि में ओबीओ परिवार की एक और उपलब्धि रही ! उन्होंने तो ओबीओ को एक नया नाम भी दे डाला - "जुगनुओं का घर" ! इसी तरह भाई संजय राजेन्द्रप्रसाद यादव की लेखनी में उल्लेखनीय सुधार भी इस आयोजन में देखने को मिला, जोकि बहुत संतोष व प्रसन्नता की बात है ! इसके अतिरिक्त ओबीओ से प्रेरणा पाकर जहाँ भाई अम्बरीश जी ने पहली बार हाइकू लिखे हैं, वहीँ इस खादिम ने भी पहली बार भाई अम्बरीश जी से प्रेरणा व मार्गदर्शन पाकर घनाक्षरी छंद लिखने  का प्रयास किया है ! यह सब बातें आश्वस्त करती हैं की ओबीओ लगातार अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ रहा है !         
 
चार दर्जन से ज्यादा रचनायों को मिलकर कुल १०२५ कमेंट्स का होना इस बात का प्रमाण है कि आयोजन हर मायने में सफल रहा ! इस प्रतियोगिता में प्रथम अथवा द्वितीय स्थान का निर्णय तो अभी होना बाकी है, लेकिन मेरी दृष्टि में इसके असली नायक भाई अम्बरीश श्रीवास्तव जी ही हैं ! इस पतियोगिता की कोई भी रचना ऐसी नहीं जो उनकी नज़र से न गुजरी हो या जिस पर उन्होंने अपनी बहुमूल्य टिप्पणी न दी हो ! कई जगह तो उन्होंने रचनाओं को तराशने में रचनाकारों की खुले दिल से मदद भी की ! ग़ज़ल के एक एक शेअर को विश्लेषित करने कि प्रथा इस खादिम ने शुरू की थी, मुझे देखकर बहुत प्रसन्नता हुई कि भाई अम्बरीश जी ने न उसको आगे ही बढाया बल्कि ग़ज़ल के इलावा अन्य विधाओं पर भी लागू किया ! इस लिए मेरी बधाई के दूसरे किन्तु सबसे बड़े अधिकारी हैं !     

अंत में मैं धन्यवाद और बधाई देना चाहता हूँ "ओबीओआधीश" श्री गणेश जी "बागी" और भाई प्रीतम तिवारी "प्रीत" को जिहोने लगातार पांचो दिन अपनी बहुमूल्य टिप्पणियों से सब रचनाकारों का उत्साहवर्धन किया ! भाई रवि कुमार "गुरु" भी जिस तरह लगातार सबका हौसला बढ़ाते रहे उसने भी आयोजन को सदैव गतिमान रखा ! मैं आशा करता हूँ कि भविष्य में भी सब साथियों का आशीर्वाद व सहयोग हमें यूँ ही मिलता रहेगा ! जय ओबीओ !
सादर !

योगराज प्रभाकर
(प्रधान सम्पादक)  
ओपन बुक्स ऑनलाइन
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Replies to This Discussion

इस त्वरित सम्पादकीय रपट के लिए बहुत बहुत धन्यबाद योगी भैया.....इन प्रतियोगिता के माध्यम से हम जैसे नए बच्चो को बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है जिसका सारा श्रेय खासकर आपको और पुरे ओ बी ओ परिवार को जाता है......

और अंत में ये कहूँगा की जय ओ बी ओ.............
आदरणीय प्रधान संपादक जी, आयोजन की समाप्ति के पश्चात् हम लोग आपके रपट का बेसब्री से इन्तजार करते है, आपके द्वारा प्रस्तुत रपट एक तरह से पुरे आयोजन का निचोड़ होता है या यह कहे कि आखों देखा हाल तो अतिश्योक्ति न होगी, इस सफल आयोजन में अन्य साथियों के साथ साथ आप का भी सराहनीय योगदान रहा है, जिस सक्रियता से आपने पुरे आयोजन काल में अपनी सम्पादकीय निगाह से एक एक रचना और एक एक टिप्पणी को देखा है वह काबिले तारीफ़ है | आप सभी को इस आयोजन की सफलता हेतु धन्यवाद और उम्मीद करते है कि आगे भी आप सभी का योगदान और समर्पण ओ बी ओ परिवार के साथ ऐसे ही बना रहेगा |

इस बार गये हम हज़ार के पार,

ओ बी ओ करेगा हर बार चमत्कार,

जय हो !

सर्वप्रथम मेरा सादर प्रणाम.

जिसका हमें था इंतज़ार.. जिसके लिये दिल था बेक़रार.. वो रपट आगयी-आगयी.

उपरोक्त पंक्ति को चाहे जिस स्तर का समझा जाय, इस पंक्ति में केवल मेरी ही नहीं मुझ जैसे कई-कई पाठकों/रचनाधर्मियों की हार्दिक भावनाओं की अनुगूँज सुनायी देगी. गणेशभाई ने सही कहा है कि आदरणीय योगराजभाई की रपट संपूर्ण प्रक्रिया का सत्त (निचोड़) उपलब्ध करा देती है. सांगोपांग वर्णन का अत्युत्तम उदाहरण. आपकी रपट पर टिप्पणी करना या प्रतिक्रिया व्यक्त करना किसीभी टिप्पणीकार के लिये गर्वानुभूति है. 

किन्तु, मैं एक सादर शिकायत के साथ अपनी बातें रख रहा हूँ. मैं वस्तुतः एक विद्यार्थी हूँ. एक विद्यार्थी का उसकी अपेक्षा से ज्यादा चर्चा उस विद्यार्थी के भटक जाने का कारण हो सकता है. मुझे आपसभी के सानिध्य में अभी बहुत कुछ सीखना है. इसी क्रम में एक बात और.. कि, इस दौरान पाठकों को मात्र दो नव-हस्ताक्षरों से परिचय नहीं हुआ, जैसाकि, भाई योगराजजी ने कहा है, बल्कि तीन-तीन हस्ताक्षरों से ओबीओ का संसार परिचित हुआ है. भाई अम्बरीषजी ने हाइकू को अपना माध्यम बनाया तो आदरणीय योगराजभाई ने पहली बार घनाक्षरी पर अपने हाथ आजमाये. इसी क्रम में मैं अदना भी कुण्डलियों की मात्राओं के लिहाज से पहली-पहली बार ही कुछ कहने की धृष्टता किया था. यह सीखने-सिखाने की प्रक्रिया को ही तो स्थापित करता है. 

पुनः, इस पूरे प्रयास के लिये भाई योगराजजी को मेरा सादर नमस्कार..  और इस अभिनव मंच के लिये भाई अम्बरीषजी और सभी मित्रों को मरी अनेकानेक शुभकामनाएँ.

अल्पज्ञों को आदर और सम्मान देकर आपने हमारे उत्साह को नया आयाम दिया है
मै एक  सकोच के साथ इस प्रतियोगिता में आया था,पर आपकी टिपण्णी से मन तो 
अघा ही गया,फिर से कुछ करने की आश्वस्ति भी पैदा हुई .....आपको अनंत साधुवाद 
एवं आदर ......
श्रद्धेय प्रभाकर जी,

सम्पादकीय रपट पढ़कर एक बार फिर सारा वातावरण चित्रमय हो गया. लगा जैसे हम सभी एक दूसरे के साथ बैठे हैं और अपने योगदान की समीक्षा कर रहे हैं. बहुत ही अच्छा विश्लेषण किया है आपने. आपने एक भी योगदानकर्ता के कृत्य को नहीं छोड़ा अपने विवरण में. यही होती है एक अच्छे नायक की पहचान. आशा है आपका मार्गदर्शन इसी प्रकार हम सभी को मिलता रहेगा और इस परिवार में और भी बहुत से जुगनू जुड़ेंगे और OBO को रौशन करेंगे. सभी की और से साधुवाद स्वीकार करें.

आपका,
धर्मेन्द्र
आदरणीय प्रमुख संपादक जी,
सुप्रभात!
आप द्वारा प्रस्तुत की गयी त्वरित रिपोर्ट को पढ़कर आनंद आ गया! चंद शब्दों में आपने तो उस आयोजन का सारा का सारा निचोड़ ही प्रस्तुत कर दिया है ऐसा लगा कि वह सुनहरे पाँच दिन पुनः जीवंत हो उठें हैं | भाई बागी जी व भाई सौरभ जी नें सच कहा है .....इन पाँच दिनों में आपके अमूल्य योगदान की जितनी भी सराहना की जाय, कम ही होगी उस अवधि में आपकी प्रतिक्रिया पाकर हम सभी का जोश दोगुना हो जाता था और आपकी मुकरियों व मुक्तकों के क्या कहने ! उन मुक्तकों को तो मैं आज तक गुनगुनाता रहा हूँ | इस त्वरित रिपोर्ट के लिए बहुत-बहुत बधाई आपको .......:))
आदरणीय सम्पादक जी,
सादर नमस्कार.
'चित्र से काव्य तक' सहित 'ओ बी ओ' में आज तक शरीक ना होना पाने का अफ़सोस ही रहेगा.प्रयास कर रहा हूँ कि लेखन में थोड़ी पकड़ मजबूत करके ही 'ओ बी ओ' के मंच पर जाने का साहस जुटाऊं.'ओ बी ओ' नित नयी उंचाईयां छुए,इन्ही शुभकामनाओं के साथ--
सादर,
-- अशोक पुनमिया
ओ.बी.ओ. के अंक में पहली बार शामिल हुआ था...प्रथम अनुभव बहुत अच्छा तो था ही
इसने लिखते रहने की प्रेरणा भी दी है..अच्छे सञ्चालन की ढेर सारी बधाई ....

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