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हम २८ तारीख के बाहर सुतल रहनी, कुछ देर के बाद खूब चटकार अंजोरिया निकलल, पाहिले त मन बड़ा खुश भईल लेकिन उ ख़ुशी थोड़े देर में गायब हो गईल. हम सोचे लगलीं की का जरुरत बा ए महिना में एह अंजोरिया के, बरखा होते ना बा. कईसे होई रोपनी. कईसे मिली खाए खातिर. अन्जोरियो क त एगो समय होला जब उ ठीक लागेले, ई बैसाख ना बा न. कुछ लिखे के पडल. आज प्रस्तुत करत बानी.


रात निकलल अंजोरिया अंजोर हो गईल ,

कुल सिवनिया काहे करिया से गोर हो गईल .



हहरे करेज़वा कईसे पूछा मत किसान के ,

रतिया के तरई जईसे ले लेई परान के .

एह सावन में किसान के मन थोर हो गईल ,

रात निकलल अंजोरिया अंजोर हो गईल ,

कुल सिवनिया काहे करिया से गोर हो गईल .



तनी मनी छिरकत छरकत गुजरल असढ़वा,

धरती पियासल बाते सुखल बा कियरवा .

एह बारिश से ढेर किसानन के लोर हो गईल .

रात निकलल अंजोरिया अंजोर हो गईल ,

कुल सिवनिया काहे करिया से गोर हो गईल .



काहो भोले बाबा तू नाराज़ काहे भईला ,

बिना रे बदरवा के बिजुरी गिरवाला .

कवन हमनी से जुलुम बड़ा घोर हो गईल .

रात निकलल अंजोरिया अंजोर हो गईल ,

कुल सिवनिया काहे करिया से गोर हो गईल .

आशीष यादव " राजा रुपर्शुखम "

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Replies to This Discussion

हहरे करेज़वा कईसे पूछा मत किसान के ,
रतिया के तरई जईसे ले लेई परान के .
एह सावन में किसान के मन थोर हो गईल ,
रात निकलल अंजोरिया अंजोर हो गईल ,
बहुत ही नीमन अंदाज बा राउर , किसान लोगन के चिंता के बयान करत बहुत बरियार रचना बा ,
agar fir se kehu epar dhiyaan de t hamke bada khushi hoi.

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