For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

छंद सलिला: तीन बार हो भंग त्रिभंगी संजीव 'सलिल'

छंद सलिला:

तीन बार हो भंग त्रिभंगी 

संजीव 'सलिल'

*

त्रिभंगी 32 मात्राओं का छंद है जिसके हर पद की गति तीन बार भंग होकर चार चरणों (भागों) में विभाजित हो जाती है। प्राकृत पैन्गलम के अनुसार:

पढमं दह रहणं, अट्ठ विरहणं, पुणु वसु रहणं, रस रहणं।

अन्ते गुरु सोहइ, महिअल मोहइ, सिद्ध सराहइ, वर तरुणं।

जइ पलइ पओहर, किमइ मणोहर, हरइ कलेवर, तासु कई।

तिब्भन्गी छंदं, सुक्खाणंदं, भणइ फणिन्दो, विमल मई।   

 (संकेत: अष्ट वसु = 8, रस = 6)      

सारांश: प्रथम यति 10 मात्रा पर, दूसरी 8 मात्रा पर, तीसरी 8 मात्रा पर तथा चौथी 6 मात्रा पर हो। हर पदांत में गुरु हो तथा जगण (ISI लघु गुरु लघु ) कहीं न हो।

केशवदास की छंद माला में वर्णित लक्षण: 

विरमहु दस पर, आठ पर, वसु पर, पुनि रस रेख। 

करहु त्रिभंगी छंद कहँ, जगन हीन इहि वेष।।

(संकेत: अष्ट वसु = 8, रस = 6)

भानुकवि के छंद-प्रभाकर के अनुसार:

दस बसु बसु संगी, जन रसरंगी, छंद त्रिभंगी, गंत भलो।

सब संत सुजाना, जाहि बखाना, सोइ पुराना, पन्थ चलो।

मोहन बनवारी, गिरवरधरी, कुञ्जबिहारी, पग परिये।

सब घट घट वासी मंगल रासी, रासविलासी उर धरिये।

(संकेत: बसु = 8, जन = जगण नहीं, गंत = गुरु से अंत)

सुर काज संवारन, अधम उघारन, दैत्य विदारन, टेक धरे।

प्रगटे गोकुल में, हरि छिन छिन में, नन्द हिये में, मोद भरे।

सूत्र: धिन ताक धिना धिन, ताक धिना धिन, ताक धिना धिन, ताक धिना।

 

नाचत जसुदा को, लखिमनि छाको, तजत न ताको, एक छिना। 

 

उक्त में आभ्यंतर यतियों पर अन्त्यानुप्रास इंगित नहीं है किन्तु जैन कवि राजमल्ल ने 8 चौकल, अंत गुरु, 10-8-8-6 पर विरति, चरण में 3 यमक (तुक) तथा जगण निषेध इंगित कर पूर्ण परिभाषा दी है।

गुजराती छंद शास्त्री दलपत शास्त्री कृत दलपत पिंगल में 10-8-8-6 पर यति, अंत में गुरु, तथा यति पर तुक (जति पर अनुप्रासा, धरिए खासा)का निर्देश दिया है।

सारतः: त्रिभंगी छंद के लक्षण निम्न हैं:

1. त्रिभंगी 32 मात्राओं का (मात्रिक) छंद है।

2. त्रिभंगी समपाद छंद है। 

3. त्रिभंगी के हर चरणान्त (चौथे चरण के अंत) में गुरु आवश्यक है। इसे 2 लघु से बदलना नहीं चाहिए।  

4. त्रिभंगी के प्रत्येक चरण में 10-8-8-6 पर यति (विराम) आवश्यक है। मात्रा बाँट 8 चौकल अर्थात 8 बार चार-चार मात्रा के शब्द प्रावधानित हैं जिन्हें 2+4+4,  4+4, 4+4, 4+2 के अनुसार विभाजित किया जाता है। इस तरह 2 +  7x 4 +  2 = 32 सभी पदों में होती है। 

5. त्रिभंगी के चौकल 7 मानें या 8 जगण का प्रयोग सभी में वर्जित है। 

6. त्रिभंगी के हर पद में पहले दो चरणों के अंत में समान तुक हो किन्तु यह बंधन विविध पदों पर नहीं है।

7. त्रिभंगी के तीसरे चरण के अंत में लघु या गुरु कोई भी मात्रा हो सकती है किन्तु कुशल कवियों ने सभी पदों के तीसरे चरण की मात्रा एक सी रखी है। 

8. त्रिभंगी के किसी भी मात्रिक गण में विषमकला नहीं है। सम कला के मात्रिक गण होने से मात्रिक मैत्री का नियम पालनीय है। 

9. त्रिभंगी के प्रथम दो पदों के चौथे चरणों के अंत में समान तुक हो। इसी तरह अंतिम दो पदों के चौथे चरणों के अंत में सामान तुक हो। चारों पदों के अंत में समान तुक होने या न होने का उल्लेख कहीं नहीं मिला।  

उदाहरण:

1. महाकवि तुलसीदास रचित इस उदाहरण में तीसरे चरण की 8 मात्राएँ अगले शब्द के प्रथम अक्षर पर पूर्ण होती हैं, यह आदर्श स्थिति नहीं है किन्तु मान्य है।

धीरज मन कीन्हा, प्रभु मन चीन्हा, रघुपति कृपा भगति पाई।

पदकमल परागा, रस अनुरागा, मम मन मधुप करै पाना।

सोई पद पंकज, जेहि पूजत अज, मम सिर धरेउ कृपाल हरी।

जो अति मन भावा, सो बरु पावा, गै पतिलोक अनन्द भरी। 

 

2. तुलसी की ही निम्न पंक्तियों में हर पद का हर चरण आपने में पूर्ण है।

परसत  पद पावन, सोक नसावन, प्रगट भई तप, पुंज सही। 

देखत रघुनायक, जन सुख दायक, सनमुख हुइ कर, जोरि रही। 

अति प्रेम अधीरा, पुलक सरीरा, मुख नहिं आवै, वचन कही। 

अतिशय बड़भागी, चरनन लागी, जुगल नयन जल, धार बही।

यहाँ पहले 2 पदों में तीसरे चरण के अंत में 'प' तथा 'र' लघु (समान) हैं किन्तु अंतिम 2 पदों में तीसरे चरण के अंत में क्रमशः गुरु तथा लघु हैं।

 

3.महाकवि केशवदास की राम चन्द्रिका से एक त्रिभंगी छंद का आनंद लें:

सम सब घर सोभैं, मुनिमन लोभैं, रिपुगण छोभैं, देखि सबै।

बहु दुंदुभि बाजैं, जनु घन गाजैं, दिग्गज लाजैं, सुनत जबैं। 

जहँ तहँ श्रुति पढ़हीं, बिघन न बढ़हीं, जै जस मढ़हीं, सकल दिसा।

सबही सब विधि छम, बसत यथाक्रम, देव पुरी सम, दिवस निसा।

यहाँ पहले 2 पदों में तीसरे चरण के अंत में 'भैं' तथा 'जैं' गुरु (समान) हैं किन्तु अंतिम 2 पदों में तीसरे चरण के अंत में क्रमशः गुरु तथा लघु हैं। 

4. श्री गंगाप्रसाद बरसैंया कृत छंद क्षीरधि से तुलसी रचित त्रिभंगी छंद उद्धृत है:

रसराज रसायन, तुलसी गायन, श्री रामायण, मंजु लसी।

शारद शुचि सेवक, हंस बने बक, जन कर मन हुलसी हुलसी।

रघुवर रस सागर, भर लघु गागर, पाप सनी मति, गइ धुल सी।

कुंजी रामायण, के पारायण, से गइ मुक्ति राह खुल सी।

टीप: चौथे पद में तीसरे-चौथे चरण की मात्राएँ 14 हैं किन्तु उन्हें पृथक नहीं किया जा सकता चूंकि 'राह' को 'र'+'आह' नहीं लिखा जा सकता। यह आदर्श स्थिति  नहीं है। इससे बचा जाना चाहिए। इसी तरह 'गई' को 'गइ' लिखना अवधी में सही है किन्तु हिंदी में दोष माना जाएगा। 

 

***

Views: 2164

Replies to This Discussion

आदरणीय गुरुदेव को सादर प्रणाम,

उपरोक्त आलेख हम सभी के लिए दिशा निर्देशक व अत्यंत उपयोगी है ! इसे विस्तार से साझा करने के लिए हार्दिक आभार आदरणीय | साद्र्र |

 

सही, सटीक प्रस्तुति, आदरणीय आचार्यजी.

त्रिभंगी ही नहीं किसी छंद की आदर्श स्थिति का होना, न होना अलग, इसकी विशद स्वीकार्यता उक्त छंद को विशिष्ट और अनुकरणीय बनाता है. तभी यह उक्ति सामने आती है, कि तुलसीदास रचित इस उदाहरण में तीसरे चरण की 8 मात्राएँ अगले शब्द के प्रथम अक्षर पर पूर्ण होती हैं, यह आदर्श स्थिति नहीं है किन्तु मान्य है.   तभी, आदरणीय, हमने निवेदन किया था और अबभी कायम हूँ, कि आलेख प्रस्तुतिकरण के क्रम में दायित्व-बोध अवश्य ही संयत और शोधपरक होने की अपेक्षा करता है. हम किसी पुस्तक-विशेष पर या किसी मान्यता-विशेष पर अतिनिर्भर होकर तार्किक न हों. 

आपकी विशद प्रस्तुति से बहुत कुछ स्पष्ट हुआ है. इस सफल प्रयास से नव-हस्ताक्षरों और गंभीर रचनाकर्मियों के लिए बेहतर वातावरण उपलब्ध हुआ है, सुलभ मार्ग प्रशस्त हुआ है.  आपकी सोदाहरण प्रस्तुति सूत्रात्मकता पर समृद्ध कारिका तरह समक्ष है

सादर

आदरणीय संजीव जी , 

त्रिभंगी छंद पर विस्तृत व सम्यक जानकारी उपलब्ध कराने के लिए ह्रदय से आभार स्वीकारिये.

कल से त्रिभंगी छंद पर एक रचना लिखने का प्रयास कर रही हूँ, पर इसके नियम बहुत क्लिष्ट हैं, सच में आसान नहीं है, सब कुछ साध सकी, पर कहीं न कहीं जगण आ ही जाता था, इसलिए अपनी  रचना को त्रुटिपूर्ण ही मान कर मैनें पुनः आपका यह आलेख पड़ा, समझा, यति, मात्रा गणना भी देखीं, विस्तार से....

इस आलेख में उद्धृत छंदों में भी जगण का प्रयोग हुआ है.

इससे मेरा संशय और ज्यादा बढ़ गया है... क्या इन नियमों में छूट भी ली जा सकती है, यदि हाँ तो कब व कैसे, कृपया इस बिंदु पर थोड़ा सा प्रकाश डालें. 

सादर.

ऊपर दिए गए उदाहरणों में जगण का प्रयोग .....

पढमं दह रहणं, अट्ठ विरहणं, पुणु वसु रहणं, रस रहणं।........................यहाँ जगण है 

अन्ते गुरु सोहइ, महिअल मोहइ, सिद्ध सराहइ, वर तरुणं।......................यहाँ जगण है 

जइ पलइ पओहर, किमइ मणोहर, हरइ कलेवर, तासु कई।......................यहाँ जगण है 

तिब्भन्गी छंदं, सुक्खाणंदं, भणइ फणिन्दो, विमल मई।   

 (संकेत: अष्ट वसु = 8, रस = 6)      

सारांश: प्रथम यति 10 मात्रा पर, दूसरी 8 मात्रा पर, तीसरी 8 मात्रा पर तथा चौथी 6 मात्रा पर हो। हर पदांत में गुरु हो तथा जगण (ISI लघु गुरु लघु ) कहीं न हो।

भानुकवि के छंद-प्रभाकर के अनुसार:

दस बसु बसु संगी, जन रसरंगी, छंद त्रिभंगी, गंत भलो।

ब संत सुजाना, जाहि बखाना, सोइ पुराना, पन्थ चलो।.............यहाँ जगण है 

मोहन बनवारी, गिरवरधरी, कुञ्जबिहारी, पग परिये।

सब घट घट वासी मंगल रासी, रासविलासी उर धरिये।

(संकेत: बसु = 8, जन = जगण नहीं, गंत = गुरु से अंत)

सुर काज संवारन, अधम उघारन, दैत्य विदारन, टेक धरे।..........................यहाँ जगण है 

प्रगटे गोकुल में, हरि छिन छिन में, नन्द हिये में, मोद भरे।

सूत्र: धिन ताक धिना धिन, ताक धिना धिन, ताक धिना धिन, ताक धिना।

 

प्राची जी
वन्दे मातरम.
आपकी रूचि तथा जिज्ञासु वृत्ति को नमन.
जगण से आशय लघु गुरु लघु मात्राओं के स्वतंत्र शब्द से है जो आप द्वारा इंगित पंक्तियों में नहीं है. कहीं आ जाए तो उसे अपवाद मानें किन्तु स्वयं जगण का प्रयोग न करें.

महाकवि तुलसीदास रचित दो उदाहरण देखें.
प्रथम उदहारण में पहले, दूसरे व चौथे पद में तीसरे चरण की 8 मात्राएँ अगले शब्द के प्रथम अक्षर पर पूर्ण होती हैं तथा तीसरे पद के अंतिम चरण में ६ के स्थान पर ७ मात्राएँ हैं। यह आदर्श स्थिति नहीं है। रचनाकार ऐसी त्रुटियों से बचें तो बेहतर है।

धीरज मन कीन्हा, प्रभु मन चीन्हा, रघुपति कृपा भगति पाई।

पदकमल परागा, रस अनुरागा, मम मन मधुप करै पाना।

सोई पद पंकज, जेहि पूजत अज, मम सिर धरेउ कृपाल हरी।

जो अति मन भावा, सो बरु पावा, गै पतिलोक अनन्द भरी।

2. तुलसी की ही निम्न पंक्तियों में हर पद का हर चरण आपने में पूर्ण है।

परसत  पद पावन, सोक नसावन, प्रगट भई तप, पुंज सही।

देखत रघुनायक, जन सुख दायक, सनमुख हुइ कर, जोरि रही।

अति प्रेम अधीरा, पुलक सरीरा, मुख नहिं आवै, वचन कही।

अतिशय बड़भागी, चरनन लागी, जुगल नयन जल, धार बही।

यहाँ पहले 2 पदों में तीसरे चरण के अंत में 'प' तथा 'र' लघु (समान) हैं किन्तु अंतिम 2 पदों में तीसरे चरण के अंत में क्रमशः गुरु तथा लघु हैं।

निर्णय आपको लेना है की आप निर्दोष छंद रचना करे या किसी महान कवि का नाम लेकर दोषों को उचित ठहराएँ. निवेदन मात्र यह किसूर्य के दागों की अनदेखी होती है किन्तु चन्द्र को दाग के कारण कलंकी कह दिया जाता है. शेष आप समझदार हैं.  

आदरणीय सजीव जी,

सादर प्रणाम!

मेरे संशय को  धैर्यपूर्वक, इतनी गहनता से समझा कर निराकरण करने के लिए मैं आपकी आभारी हूँ.

सादर.

अत्यधिक कठिन छंद है...कई बार पढ़ना पड़ेगा..किन्तु जिस तरह का विशद वर्णन प्रस्तुत लेख में है..उससे बहुत कुछ प्राप्त किया जा सकता है..ऐसा मेरा मत है...कोटिशः आभार आदरणीय 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक स्वागत आपका और आपकी इस प्रेरक रचना का आदरणीय सुशील सरना जी। बहुत दिनों बाद आप गोष्ठी में…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह जी। रचना पर कोई टिप्पणी नहीं की। मार्गदर्शन प्रदान कीजिएगा न।"
Nov 30
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 30
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"सीख ...... "पापा ! फिर क्या हुआ" ।  सुशील ने रात को सोने से पहले पापा  की…"
Nov 30
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आभार आदरणीय तेजवीर जी।"
Nov 30
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।बेहतर शीर्षक के बारे में मैं भी सोचता हूं। हां,पुर्जा लिखते हैं।"
Nov 30
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।"
Nov 30
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक आभार आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
Nov 30
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। चेताती हुई बढ़िया रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब। लगता है कि इस बार तात्कालिक…"
Nov 30
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
" लापरवाही ' आपने कैसी रिपोर्ट निकाली है?डॉक्टर बहुत नाराज हैं।'  ' क्या…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। उम्दा विषय, कथानक व कथ्य पर उम्दा रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब। बस आरंभ…"
Nov 29

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service