For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हिंदी सीखे : वार्ताकार - आचार्य श्री संजीव वर्मा "सलिल"

ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के सम्मानित सदस्यों,
सादर अभिवादन,
मुझे यह बताते हुए ख़ुशी हो रही है कि आदरणीय आचार्य श्री संजीव वर्मा "सलिल" द्वारा हिंदी विषय पर कक्षा प्रारंभ की जा रही है | आप सब से अनुरोध है कि आचार्य श्री संजीव वर्मा "सलिल" जी के अनुभवों से लाभ उठाये,
धन्यवाद |

Views: 3109

Reply to This

Replies to This Discussion

आपकी चौपाइयाँ शिल्प की दृष्टि से ठीक हैं. भाषा की दृष्टि से यत्किंचित परिवर्तन किये हैं. विचार कर जो ठीक लागे उसे रखिए.

 

समाचार यह फैला ऐसे । आग लगी जंगल में जैसे॥ 

विश्वरूप तक बात गई जब । परम सुखी हो आये वे तब॥   गयी (पु. गया, स्त्री. गये, बहुवचन) 

उनकी कन्याएँ थीं सुन्दर । खोज रहे थे कब से वे वर॥

वर सुयोग्य यह बात जानकर । आये देने निज दुहिता कर॥  दुहिता-कर

रिद्धि, सिद्धि कन्याएँ दो थीं । दोनों ही अति रूपवती थीं॥  (सिर्फ रूपवती या गुणवती भी?)

विश्वरूप तब प्रभु से बोले । जय हो महादेव बम भोले॥

पुत्र आपके अति सुयोग्य हैं । कन्याएँ भी परम योग्य हैं॥     मम

रिद्धि के लिए गणपति का कर और सिद्धि को कार्तिकेय वर॥  (लिया, लिये)

देकर प्रभु अब तार दीजिए । मुझ पर यह उपकार कीजिए॥

मैंने यह संकल्प लिया है । दुहिताओं को वचन दिया है॥

तव विवाह शिव-सुत से होगा । वचन नहीं यह मिथ्या होगा॥

बोले प्रभु विचार उत्तम है । पुत्र हमारे दोनों सम हैं॥

कार्तिकेय हैं विश्व भ्रमण पर । लौटेगें वो जल्दी ही पर॥      वह

जैसे ही वो आ जायेंगे । हम विवाह यह कर पायेंगे॥    द्वय विवाह हम कर पायेंगे.

कार्तिकेय अवनी का चक्कर । लौटे कुछ ही दिन में लेकर॥

स्नान किया औ’ बोले आकर जय हो अम्बे जय शिवशंकर॥

शर्त कठिन थी, नहीं असंभव । प्रभु की कृपा करे सब संभव॥

यह सुन बोले महाकाल तब । पुत्र नहीं कुछ हो सकता अब॥

शर्त विजेता गणपति ही हैं । योग्य प्रथम परिणय के भी हैं॥

हम बस सकते हैं इतना कर दोनों सँग-सँग बन जाओ वर॥

पर पहले गणपति के फेरे । उसके बाद तुम्हारे फेरे॥

यह सुन कार्तिकेय थे चिंतित ।  खिन्नमना औ’ थे चंचलचित॥

चूहे ने है मोर हराया । ऐसा संभव क्यों हो पाया?

फिर जब बैठे ध्यान लगाया । सब आँखों के आगे आया॥
बोले महादेव, हे सुत, तब । याद करो मेरी वाणी अब॥

मैंने बोला गुनना सुनकर । तुम भागे जल्दी में आकर॥

बिना गुने तुम दौड़ पड़े थे । गणपति फिर भी यहीं खड़े थे॥

बात गुनी तब यह था जाना । मूषक वाहन उनका माना॥

पर यह मूषक की न परिक्षा । ऐसी नहीं हमारी इच्छा॥       यह वाहन की थी न परीक्षा

है विवाह इक जिम्मेदारी । मूर्ति भोग की ना है नारी॥       (इस कथन का यहाँ कोई प्रासंगिकता नहीं है)

तन से दोनों हुए युवा हैं । मगर बुद्धि से कौन युवा है॥

यही जाँच करनी थी हमको । और सिखाना था यह तुमको॥

तन-मन-बुद्धि और प्राणांतर । से जब तक न युवा नारी-नर॥   के प्राण की भी विविध अवस्थाएं बाल, युवा आदि होती है?

तब तक है विवाह अत्यनुचित । नहीं बालक्रीड़ा विवाह नित॥

विश्व भ्रमण कर हो तुम आये । तरह तरह के अनुभव पाये॥

इसीलिए तुम भी सुयोग्य अब । जाने यह अवसर आये कब॥

तैयारी विवाह की कर लो । मन में अपने खुशियाँ भर लो॥

बोले कार्तिकेय तब माता । बात उचित है गणपति भ्राता॥

बुद्धिमान हैं ज्यादा मुझसे । पर मैं भी अग्रज हूँ उनसे॥    लेकिन मैं हूँ अग्रज उनसे, भी का उपयोग भ्रम उपजता है कि कोई अन्य भी अग्रज है.

प्रथम प्राणि वह ग्रहण करेंगे । तो मेरा अपमान करेंगे॥      पाणि = हाथ, प्राणी = जीव

इसीलिए यह लूँगा प्रण मैं । सदा कुमार रहूँगा अब मैं॥    इसीलिये प्राण लेता हूँ मैं.

समाचार जैसे ही पायो । विश्वरूप चिंतित हो आयो॥             पाया / आया

बोल्यो आकर जय शिव-काली । मेरा वचन जा रहा खाली॥       बोले

दुहिताओं को वचन दिया था । मान इन्हें दामाद लिया था॥

अब क्या होगा हे शिव शंकर । सिद्धि मानती शिवसुत को वर॥  दोनों ही चाहें शिव-सुत वर

समाचार यदि उसने पाया । तो मृत्यू को गले लगाया ॥      नहीं अन्य को वरण करेंगी । हो हताश निज प्राण तजेंगी  

कुछ करके हे भोले शंकर । प्राण बचाएँ पुत्री का हर॥        करिए  / प्राण बचें दुहिताओं के हर.

तभी सोचकर क्षण भर भोले । एक रास्ता तो है बोले॥      ध्यानमग्न हो शंकर भोले, है उपाय यह केवल बोले

दोनों का विवाह शिवसुत से । होगा, पर केवल इक सुत से॥   दोनों ही शिव-सुत पाएंगी / गणपति से ब्याही जायेंगी.

गणपति पाणिग्रहण करेंगे । दोनों की ही माँग भरेंगे॥

 

क्या बात है! धन्य हैं सलिल जी, पहले तो आपने अपने बहुमूल्य समय में से समय निकालकर मेरी चौपाइयाँ पढ़ीं इसके लिए अतिशय आभार। हर एक बदलाव आपके अपार अनुभव एवं अद्वितीय विद्वत्ता को दर्शाता है। कितनी आसानी से इतनी सारी त्रुटियाँ दूर कर दीं आपने। मैं बहुत बहुत आभारी हूँ आपका।
सम-सामयिक हिन्दी पद्य के सर्वाधिक प्रचलित काव्य रूपों में से एक 'मुक्तिका'



मुक्तिका वह पद्य रचना है जिसका-

१. हर अंश अन्य अंशों से मुक्त या अपने आपमें स्वतंत्र होता है.

२. प्रथम, द्वितीय तथा उसके बाद हर सम या दूसरा पद पदांत तथा तुकांत युक्त होता है. इसका साम्य कुछ-कुछ उर्दू ग़ज़ल के काफिया-रदीफ़ से होने पर भी यह इस मायने में भिन्न है कि इसमें
काफिया मिलाने के नियमों का पालन न किया जाकर हिन्दी व्याकरण के नियमों का
ध्यान रखा जाता है.
२. हर पद का पदभार हिंदी मात्रा गणना के अनुसार समान होता है. यह मात्रिक छन्द में निबद्ध पद्य रचना है. इसमें लघु को गुरु या गुरु को लघु पढ़ने की छूट नहीं होती.
३. मुक्तिका का कोई एक या कुछ निश्चित छंद नहीं हैं. इसे जिस छंद में रचा जाता है उसके शैल्पिक नियमों का पालन किया जाता है.
४.हाइकु मुक्तिका में हाइकु के सामान्यतः प्रचलित ५-७-५ मात्राओं के शिल्प का पालन किया जाता है, दोहा मुक्तिका में दोहा (१३-११), सोरठा मुक्तिका में सोरठा (११-१३), रोला
मुक्तिका में रोला छंदों के नियमों का पालन किया जाता है.
५. मुक्तिका का प्रधान लक्षण यह है कि उसकी हर द्विपदी अलग-भाव-भूमि या विषय से सम्बद्ध होती है अर्थात अपने आपमें मुक्त होती है. एक द्विपदी का अन्य
द्विपदीयों से सामान्यतः कोई सम्बन्ध नहीं होता.
६. किसी विषय विशेष पर केन्द्रित मुक्तिका की द्विपदियाँ केन्द्रीय विषय के आस-पास होने पर भी आपस में असम्बद्ध होती हैं.
७. मुक्तिका को अनुगीत, तेवरी, गीतिका, हिन्दी ग़ज़ल आदि भी कहा गया है.
गीतिका हिन्दी का एक छंद विशेष है अतः, गीत के निकट होने पर भी इसे गीतिका कहना उचित नहीं है.
तेवरी शोषण और विद्रूपताओं के विरोध में विद्रोह और परिवर्तन की भाव -भूमि पर रची जाती है. ग़ज़ल का शिल्प होने पर भी तेवरी के अपनी स्वतंत्र पहचान है.
हिन्दी ग़ज़ल के विविध रूपों में से एक मुक्तिका है. मुक्तिका उर्दू गजल की किसी बहर पर भी आधारित हो सकती है किन्तु यह उर्दू ग़ज़ल की तरह चंद लय-खंडों
(बहरों) तक सीमित नहीं है.
इसमें मात्रा या शब्द गिराने अथवा लघु को गुरु या गुरु को लघु पढने की छूट नहीं होती.
उदाहरण :

१. बासंती दोहा मुक्तिका


आचार्य संजीव वर्मा ’सलिल’
*

स्वागत में ऋतुराज के, पुष्पित हैं कचनार.

किंशुक कुसुम विहँस रहे या दहके अंगार..
*
पर्ण-पर्ण पर छा गया, मादक रूप निखार.

पवन खो रहा होश है, लख वनश्री श्रृंगार..
*
महुआ महका देखकर, बहका-चहका प्यार.

मधुशाला में बिन पिये सर पर नशा सवार..
*
नहीं निशाना चूकती, पञ्च शरों की मार.

पनघट-पनघट हो रहा, इंगित का व्यापार..
*
नैन मिले लड़ झुक उठे, करने को इंकार.

देख नैन में बिम्ब निज, कर बैठे इकरार..
*
मैं तुम यह वह ही नहीं, बौराया संसार.

ऋतु बसंत में मन करे, मिल में गले, खुमार..
*
ढोलक टिमकी मँजीरा, करें ठुमक इसरार.

तकरारों को भूलकर, नाचो-गाओ यार..
*
घर आँगन तन धो लिया, सचमुच रूप निखार.

अपने मन का मैल भी, हँसकर 'सलिल' बुहार..
*
बासंती दोहा ग़ज़ल, मन्मथ की मनुहार.

सूरत-सीरत रख 'सलिल', निर्मल-विमल सँवार..

*******
२. निमाड़ी दोहा मुक्तिका:

धरs माया पs हात तू, होवे बड़ा पार.
हात थाम कदि साथ दे, सरग लगे संसार..
*
सोन्ना को अंबर लगs, काली माटी म्हांर.
नेह नरमदा हिय मंs, रेवा की जयकार..
*
वउ -बेटी गणगौर छे, संझा-भोर तिवार.
हर मइमां भगवान छे, दिल को खुलो किवार..
*
'सलिल' अगाड़ी दुखों मंs, मन मं धीरज धार.
और पिछाड़ी सुखों मंs, मनख रहां मन मार..
*
सिंगा की सरकार छे, ममता को दरबार.
'सलिल' नित्य उच्चार ले, जय-जय-जय ओंकार..
*
लीम-बबुल को छावलो, सिंगा को दरबार.
शरत चाँदनी कपासी, खेतों को सिंगार..
*
मतवाला किरसाण ने, मेहनत मन्त्र उचार.
सरग बनाया धरा को, किस्मत घणी सँवार..
*
नाग जिरोती रंगोली, 'सलिल' निमाड़ी प्यार.
घट्टी ऑटो पीसती, गीत गूंजा भमसार..
*
रयणो खाणों नाचणो, हँसणो वार-तिवार.
गीत निमाड़ी गावणो, चूड़ी री झंकार..
*
कथा-कवाड़ा वाsर्ता, भरसा रस की धार.
हिंदी-निम्माड़ी 'सलिल', बहिनें करें जगार..

******************************

३.  (अभिनव प्रयोग)

दोहा मुक्तिका

'सलिल'
*
तुमको मालूम ही नहीं शोलों की तासीर।
तुम क्या जानो ख्वाब की कैसे हो ताबीर?

बहरे मिलकर सुन रहे गूँगों की तक़रीर।
बिलख रही जम्हूरियत, सिसक रही है पीर।

दहशतगर्दों की हुई है जबसे तक्सीर
वतनपरस्ती हो गयी खतरनाक तक्सीर।

फेंक द्रौपदी खुद रही फाड़-फाड़ निज चीर।
भीष्म द्रोण कूर कृष्ण संग, घूरें पांडव वीर।

हिम्मत मत हारें- करें, सब मिलकर तदबीर।
प्यार-मुहब्बत ही रहे मजहब की तफसीर।

सपनों को साकार कर, धरकर मन में धीर।
हर बाधा-संकट बने, पानी की प्राचीर।

हिंद और हिंदी करे दुनिया को तन्वीर।
बेहतर से बेहतर बने इन्सां की तस्वीर।

हाय! सियासत रह गयी, सिर्फ स्वार्थ-तज़्वीर।
खिदमत भूली, कर रही बातों की तब्ज़ीर।

तरस रहा मन 'सलिल' दे वक़्त एक तब्शीर।
शब्दों के आगे झुके, जालिम की शमशीर।

*********************************
तासीर = असर/ प्रभाव, ताबीर = कहना, तक़रीर = बात/भाषण, जम्हूरियत =
लोकतंत्र, दहशतगर्दों = आतंकवादियों, तकसीर = बहुतायत, वतनपरस्ती =
देशभक्ति, तकसीर = दोष/अपराध, तदबीर = उपाय, तफसीर = व्याख्या, तनवीर =
प्रकाशित, तस्वीर = चित्र/छवि, ताज्वीर = कपट, खिदमत = सेवा, कौम = समाज,
तब्जीर = अपव्यय, तब्शीर = शुभ-सन्देश, ज़ालिम = अत्याचारी, शमशीर = तलवार..

४. गीतिका

आदमी ही भला मेरा गर करेंगे.
बदी करने से तारे भी डरेंगे.

बिना मतलब मदद कर दे किसी की
दुआ के फूल तुझ पर तब झरेंगे.

कलम थामे, न जो कहते हकीकत
समय से पहले ही बेबस मरेंगे।

नरमदा नेह की जो नहाते हैं
बिना तारे किसी के खुद तरेंगे।

न रुकते जो 'सलिल' सम सतत बहते
सुनिश्चित मानिये वे जय वरेंगे।
*********************************

५. मुक्तिका

तितलियाँ
*

यादों की बारात तितलियाँ.
कुदरत की सौगात तितलियाँ..

बिरले जिनके कद्रदान हैं.
दर्द भरे नग्मात तितलियाँ..

नाच रहीं हैं ये बिटियों सी
शोख-जवां ज़ज्बात तितलियाँ..

बद से बदतर होते जाते.
जो, हैं वे हालात तितलियाँ..

कली-कली का रस लेती पर
करें न धोखा-घात तितलियाँ..

हिल-मिल रहतीं नहीं जानतीं
क्या हैं शाह औ' मात तितलियाँ..

'सलिल' भरोसा कर ले इन पर
हुईं न आदम-जात तितलियाँ..
*********************************

७. जनक छंदी मुक्तिका:
सत-शिव-सुन्दर सृजन कर
*

सत-शिव-सुन्दर सृजन कर,
नयन मूँद कर भजन कर-
आज न कल, मन जनम भर.
               
                   कौन यहाँ अक्षर-अजर?
                   कौन कभी होता अमर?
                   कोई नहीं, तो क्यों समर?

किन्तु परन्तु अगर-मगर,
लेकिन यदि- संकल्प कर
भुला चला चल डगर पर.

                   तुझ पर किसका क्या असर?
                   तेरी किस पर क्यों नज़र?
                   अलग-अलग जब रहगुज़र.

किसकी नहीं यहाँ गुजर?
कौन न कर पाता बसर?
वह! लेता सबकी खबर.

                    अपनी-अपनी है डगर.
                    एक न दूजे सा बशर.
                    छोड़ न कोशिश में कसर.

बात न करना तू लचर.
पाना है मंजिल अगर.
आस न तजना उम्र भर.

                     प्रति पल बन-मिटती लहर.
                     ज्यों का त्यों रहता गव्हर.
                     देख कि किसका क्या असर?

कहे सुने बिन हो सहर.
तनिक न टलता है प्रहर.
फ़िक्र न कर खुद हो कहर.

                       शब्दाक्षर का रच शहर.
                       बहे भाव की नित नहर.
                       ग़ज़ल न कहना बिन बहर.

'सलिल' समय की सुन बजर.
साथ अमन के है ग़दर.
तनिक न हो विचलित शजर.

**************************
Acharya Sanjiv Salil

वाह आचार्य जी, इस ज्ञान की नर्मदा में डुबकी मारकर तन मन पावन हो गया। अब अगला पड़ाव मुक्तक पर लें तो मजा आ जाए।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय मंच संचालक जी , मेरी रचना  में जो गलतियाँ इंगित की गईं थीं उन्हे सुधारने का प्रयास किया…"
4 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 178 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
11 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत छंदों की सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार.…"
12 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, प्रस्तुत रोला छंदों पर उत्साहवर्धन हेतु आपका…"
12 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"    आदरणीय गिरिराज जी सादर, प्रस्तुत छंदों की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार. सादर "
12 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी छंदों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिये हार्दिक आभार "
13 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय गिरिराज जी छंदों पर उपस्थित और प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार "
13 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक जी छंदों की  प्रशंसा और उत्साहवर्धन के लिये हार्दिक आभार "
13 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीय मयंक कुमार जी"
13 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
" छंदों की प्रशंसा के लिये हार्दिक आभार आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी"
13 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"    गाँवों का यह दृश्य, आम है बिलकुल इतना। आज  शहर  बिन भीड़, लगे है सूना…"
13 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी,आपकी टिप्पणी और प्रतिक्रिया उत्साह वर्धक है, मेरा प्रयास सफल हुआ। हार्दिक धन्यवाद…"
14 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service