For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बरसात के दिन , भादो के अन्हरिया घेरले रहे,  बहरी आकाश मे बदरी लागल रहे | रात भर रामधनी  के उन्घाई ना लागल | करवट बदलत कईसहु समय बितवलन, होत भिन्सहरे अपना मेहरारू से पुछलन ' क़ा हो कईसन  मिजाज  ब़ा बबुआ के  कुछ बोखरवा उतरल बुझाता '| काल्हु दुपहरिये मे  जब पढ़  के आइल रहे त  जरहस नियन हो गइल रहे  धनुवा  के ,कईबार उलटी  भी कइलस आ तबे से अबे खटिया  पर परल बा |  नींबू पानी दिहला के बाद गाँव के किराना दोकान पर ले बोखर के दवाई लिया के देले रहलन ,सोचलन बोखार उतर जाइत त काल्ह कही से पइसा रुपिया जोगाड़  कके कवनो बढ़िया डागदर के सहर मे लेजा के देखाइम | इ अईसन  दिन ह जेमा  गरीब मजदुर किसान  के पासे एको पाई हाथ मे ना रही पावेला ,ओही हालात के मारल रामधानी  भी रहलन |दुनो बेकत से उहे एगो लइका  रहे धनुवा  बाकि गरीबी मे भी  ओकरा  पालन पोसन  मे कवनो कमी ना राखस , हरदम ओकरे चिंता लागल रह्त रहे एकही लइका  ब़ा बड हो जाई त बुडौती के लाठी होई | जब से उ खाटी पर परल ब़ा दुनो बेकत के मुह मे एगो अन्न के दाना  नइखे गइल | "ना जी अबे त देहिया जरते बिया ,रात मे बढ़िया से   खईबो ना कइलस  हमार मन बाड़ा घबड़ाता आज केहुतरे  बबुआ  के अस्पताले ले चली" |  "ह हो हमहू इहे सोचत बानी बाकि तू त जानते बाडू  एको पाई ब़ा ना ,असारहे ले खेती मे पइसा लगावत लगावत हाँथ खूंख हो गइल ब़ा  ,इ दिन अइसन ब़ा क़ी घर मे ओतना खर्ची के बाद अनाज  भी नइखे जवना के बेचीं भी सकी अब त दुसरे के असरा ब़ा जा तनी देखतानी
कहि कुछ मिल जाई त आज सान्झो   साँझ चलेके" |
                              दुपहरिया के बारह बजी गइल मोए गाँव घूम देहला रामधनी बाकि कही से कुछ ना मिल पावल | केहुके खाद छीटे के  अकाज ब़ा त केहू भादो के दोहाई देता , दूसरा के दरद केहू बुझेवाला नइखे ,रामधनी पे क़ा बीत रहल ब़ा उ  अब उहे बता सकत बाडन बाकि दूसरा के क़ा आज अष्टमी  ह कृष्ण  जन्मअष्टमी सब ओही मे अझुराइल ब़ा ,मंदिर के सजावल जाता लोग आज उपवास रखले बाडन बाजा बाजी ,भजन होई गाँव मे चंदा मंगा रहल ब़ा  ,लोग कईसहु  दे रहल बाडन  ,भागवान के बात ब़ा  माना नइखे कइल  जा सकत  आज भागवान  जन्म लिहन उ भागवान जवन हर साल ना जाने क बार जन्मेलन ,जेकरा के  केहू कबो देखले नइखे मन्ले ब़ा मानता सायद मानि भी बाकिर ओकर केहू क़ा फिकिर करो ,जेकर जियत जागत लाल काल के गाल मे पडल ब़ा ,भागवान केहू के सहारा होलन बाकिर रामधनी के सहारा त उनकर लइका ब़ा आज उहो उपवास बाडन , बाकिर कवनो बरत बदे ना अपना सहारा बदे अपना लइका बदे | कइसहू हिम्मत कके गाँव के साहु के पासे गइलन हाँथ जोडलन बिनती कइलन अगहन मे पाई -पाई चूका देम ,बाकि ना कवनो फ़ायदा ना " मोए गाँव के हमही ठिका लेले बानी "|
                 बेर गिरे लागल धावल रामधनी  घरे अइलन , लइका  अबे खटिये पर पडल रहे |मेहरारू उनकर कबो पानी गर्म करे ,कबो तेल मले  कबो कुछ कबो कुछ हर तरेह के घरेलु नुख्षा करे बाकि लइका पर ओकर कवनो असर ना पडल रहे ,बोखर बढ़ते जात रहे |आस पड़ोस के कइगो मेहरारू लइका के हाल चल पूछे आ गइल रहे , कई तरह के आदमी कई तरह के बात  "केहू कहे  माता माई हई पइसा  ओइछ द,सब ठीक हो जाई ," "नियादी बोखार धलेले ब़ा बिना हस्पताल ले गइले छोड़ी ना "भूखन के बात सुन के रामधनी के देहि मे चिलिंगा लेस दिहलस | बर- बरसात के दिन ब़ा कई तरह के रोग चलल ब़ा पतों नइखे चलत क़ा भइल तले .....ना ,ना हम अइसे  ना होखे देम केनियो ले पइसा  जुटा के सहर मे ले जाइम  बाकिर अपना लइका  के ना ...,"राघोपुर जा तनी कइगो बाबूसाहेब लोग ब़ा कइसहू सुदो- मुर पर लेके  खेतो धके पइसा  जरुर लियाम तब चलेके बचवा के लेके, "  | रामधनी  मेहरारू से कही के खेत के कागज लेके चल दिहल |बाइके बेग मे हाँफ़त दउडत राघोपुर  ' रामस्वरूप सिंह' के दुआर पर पहुच्लन ,पता चलल उहाँ क़ा अबे पूजा करतानि समय बीतत रहे ,बेर गिरत रहे रामधनी के निक ना लागे | करीब एक घन्टा बइठला  के बाद बाबु सहेब अईल न | रामधनी के हाल सुनी के दुखित भइलन " काकही हो तू त जानते बाड़ पहिले वाली बात नइखे रही गइल जमीदारी ख़त्म भइल ,सब एने के ओने हो गइल एह घरी हाँथ सबकर सकेते रहता , बाकि  दुआरी आइल बाड़  त आ तोहार ओइसन हाल ब़ा ,लइका  बेमार ब़ा  उ हमरो नाती पोता जइसन ब़ा ,दवाई कइल  जरुरी ब़ा, एह से हई पइसा  ल  पांच हजार ब़ा करजा के तौर पर ना, जब मन करी तब दे दिह ,एकरा ले अधिक नईखी कसकत,"|
                 रामधनी पइसा  ले लिहलन चल दिहलन बाकि उनका अधिका के उम्मीद रहे सहर सहरात के बात ब़ा आज काल पांच हजार के क़ा औकात ब़ा, घट जाई त फेर कहा  जोगाड़ होई ,के मदद करी| काहें ना एइजे कही औरि केहे देखनी  'गजाधर सिंह ' ह उ पइसा  वाला हवन्जा ,ओइजा जरुर मिल जाई खेत के कागज बटले ब़ा |इहे बात सोची के रामधनी 'गजाधर सिंह 'के दलान में पहुच गइलन ,चाय सरबत चलत रहे |रामधनी के उदास चेहरा देखते गजाधर सिंह बात समझ गइल रहलन ,चेहरा पर हल्का मुस्कान लावत ओहितरे जइसे  बहेलिया अपना जाल के तरफ शिकार के बढत देख के मुस्काला "काहों रामधनी भाई केने निकलल बाड़ बड़ा ढेर दिन पर हो ,क़ा बात ब़ा चेहरा उदास काहें ब़ा ,"| रामधनी एके साँस मे मोए हाल कही सुन्वलन,| "अच्छा त इ बात ब़ा ,कवनो बात ना काहें खातिर हमनी के बानीजा कागज - ओगज लियाल बाड़ ,"|रामधनी कागज जब दिहलन त जइसे गजाधर सिंह युद्ध  जीतला नियन छाती तन्लन आ बीस हजार  लिया के दिहलन "हई ल बीस हजार ब़ा गीन ल काम चलाव घटी- बड़ी त फेर आ के ले जइह "|
          रामधनी के कामभर पइसा  हो गइल बुझात रहे ,कुल मिलके पचीस हाजर हाली- हाली गोंड बड़ावत  गाँव के ओर चल्ल्न |बेर लरक गइल रहे ,सुरुज  प लाली छा गइल रहे गाँव में पहुचत -पहुचत दीया बरा गइल रहे ,भादो के अन्हरिया चरो ओर घेर लेले रहे |अंगना मे गोंड डालते मेहरारू से पुछलन  "क़ा हो कइसन बाडन" ? मेहरारू उनकर खमिहा मे  खटिया के गोंड तर कपार पर  हाँथ धके बइठल  रहे  दिरेखा पर डिबरी जरत रहे |,"देखिनाजी कबे से त कुछ बोलतो रल ह बाकि अब बोलतो नइखे , खाएक  देनी ह खईबो ना कइलस ह ,देहि कोइला नियन जरता ,रउआ  कुछ करत काहें नईखी ,"| "अरे हम कुछ करते नईखी सबेरे ले धावत- धावत परेशान बानी तोहरा क़ा लागता लइकवा  के तोहरे एगो मोह ब़ा , अरे तू ओकर माई हाउ त हमहू  ओकर बाप हई हो  ,"|जब रामधनी रुधल गला से   कहलन  त उनकर मेहरारू फुट -फुट के रोए लागल | रोआइ नियन मन त रामधनी के भी हो गइल रहे बाकि कईसहु आंखी मे लोर रोकी  के कहलन "अब रोअत  काहें बाडू, पइसा  के व्यवस्था हो गइल ब़ा अब आज एह राती गाड़ी- छकडा मिलिह्सना जाये के कवनो साधन नइखे होत भोरे अन्मुनाहरिये मे निकल चले के "| गाँव के मंदिल पर कृतन -भजन गवाए चालू हो गइल रहे ,बाकि इ दुनो  बेकत दुःख गावत  रहे लोग बाह रे बिधता ! वाह |
               अबे दुनो जाना भूखन पियासन उदास बैठाल रहे ,तले धनुवा हाथ -गोंड पित के दू हाली माई माई कके चुपा गइल देहि अबे जरते रहे ,रामधनी के समझ मे ना आवे  क़ा करस | एगो आजे के दिन रहे जब ' वशुदेव जी 'आपन लइका कृष्ण जी के बचावे खातिर एहि भादो के अन्हरिया रात मे जमुना पार कइले  रहलन , क़ा ओइसन काम रामधनी नइखन क सकत ? क सकत बाडन करिहन काहें ना करिहन ? उहे त उनकर एगो लालबा भला लइका  खातिर आदमी कासे क़ा ना करेलन |बाकि क़ा करस ? कहाँ  लेके जास ? के ब़ा सुने वाला ? केबा कुछ क्हेवालाकुछ बतावेवाला ?अरे वशुदेव जी प़र त साक्षात् भागवान सहु रहलन बाकिर रामधनी के  सहारा देबे वाला के  ब़ा |बाकि ना रामधनी के मन ना मानल , हम कुछ  करम बगल के गाँव मे एगो झोरा छाप डागदर रहेला ओकरे केहें जाइम , आई त रात भर मे कुछ त सम्हाली |भागवान हवन अइसन अन्याय ना करिहन एह गरीब संगे कहल गइल ब़ा दूसरा के सहारा छीनल ना जला दिहल जाला ,ओहू मे आज भागवान के जनम होता उ हमरा सहारा के नइखन छीन सकत | अन्हरिया रात के दस बजी गइल रहे लाठी उठा के चल देहलन ,जल्दी जयेखातिर खेत के दडार धके कूदत - फानत डागदर केहे पहुचलन |अइसन समय मे  डागदर आवे के तैयार ना रहे बाकि गोंड हाँथ जोडला, रोयाल गीडगीडइला  के बाद चले प़र तैयार भईल |
                  एने लइका एकदन सुस्त होखल जात रहे ,खटिया के सिरहाना बैठ के रामधनी बो धनु के जांघि मुड़ी धके कपार दबावत रहली  | बबुवा   के शरीर  ठंडा परेलागल  "क़ा हो गइल हमरा हिरा के , काहे नइखे हिलत - डोलत ? हे भगवान  हे , काली माई बचाव  हमरा लाल के ," कई तरह के मनवती माने लगली ," | चन्द्रमा  लउके लगलन अंजोरिया उगेलाग्ल , बाकि एने रामधनी  के कुल के  दीपक बुता गइल रहे |मंदिर प़र जैकारी बोलाए लागल भागवान  के जनम हो गइल रहे , आहे प़र ख़ुशी मे पागल लोग खीराके  पंलना मे धके झुलाव्ल  रहे , बाकि इ केकरा चिंता ब़ा कि केहुके हंसत खेलत गोद खाली  हो गइल ब़ा ना  केहुकेना , सब  लोग ' मुरली मनोहर ' कि जय बोलेमे लागल रहलन ,बाकि उ जैकारा एगो माई के चीख से ज्यादा नइखे हो सकत ,धनुवा  के माई के अदम्य, असहाय विलाप के आंगे जैकारी दब गइल चरो ओर सुन्न  होगइल , क़ा भइल गाँव मे  ,एह ख़ुशी के मौका प़र के रोवे लागल ,"रमधनिया के लइका  बेमार रल ह ", पहुचल लोग रमधनिया के घरे बाकिर अब क़ा खेला खतम हो गइल रहे |रामधनी बो बेहोश होगैली दाँत प़र  दाँत लागत रहे केहू उनके धरे चलल , डागदर लिहले रामधनी अईलन घर हालत देखि के चक्कर खाके गिर गइलन केहू उनके सहारा देबे लागल |
सबकर मुड़ी गड़ाइल  रहे ,केहू भागवान के लीला ,त केहू प्रभु  के माया कहें, त केहू विधी के विधान कहें ,केहू सरकार आ समाज के दोष देके आपन रामधनी के प्रति  लगाव देखावे के कोशिस करे  |
                      सुबेरे भागवान के ड़ोल धराये वाला रहे बाकि ओह्दीन उठल अर्थी केहू के सपना के सहारा के अरमान के, केहुके जियत -जागत दुनिया के , धनु के  | वाह रे दुनिया ! वाह रे भागवान ! वाह रे प्रभु के लीला ! वाह रे विधी के विधान !
                                            ****************

Views: 1864

Replies to This Discussion

 "सुबेरे भागवान के ड़ोल धराये वाला रहे बाकि ओह्दीन उठल अर्थी केहू के सपना के सहारा के अरमान के, केहुके जियत -जागत दुनिया के , धनु के  | वाह रे दुनिया ! वाह रे भागवान ! वाह रे प्रभु के लीला ! वाह रे विधी के विधान !"


बहुते मार्मिक कहानी  - पढ़ के गला रुँधा कइल । एकरा से अधिका कुछ लिख सके के स्थिति में नइखीं रह गइल ।

नीलिमा जी, घटे वाली घटना  पर केहुके बस नइखे |
कहानी के  पढनी ,पसंद कईनी एह खाती ,धन्यवाद ब़ा |

समाज के सवार्थी लोगन के खोखङ हमदर्दी आ दुर्व्यवहार के अच्छा चित्रण कईले बानी रउवा आखियाँ त हमरो लोरा गईलक जी, एह रचना प कुछ कहे भा लिखे के मतलब सुरुज आ दिया वाला कहानी हो जाई रउवा बधाई के पात्र बानी अपना कलमियां के अउरी चलाई आ हमनी के जिन्दगी के कुछ अइसने फोटऊवा अउरी देखाई I

 

 
धन्यवाद

ब्रिज भूषण चौबे जी , बहुत ही दर्दनाक कहानी लिखले बानी रौआ, एक दम फिलिम नियर लौकत बा, गाँव देहात के हालत में अबो कवनो ढेर सुधार नईखे भईल, उधारों लोग वोकरे के देवल चाहे ला जेकरा पर पाहिले से लक्ष्मी मेहरबान रहेली , देवे वाला के लागेला की वोकर पईसा मिल जाई , साच कही ता हियरा में बेधे लागल इ कहानी पढ़ के |

अब अगर बात कईल जाव कथ्य शिल्प के त बहुते सुनर पकड़ बा राउर, कथानक , चरित्र चित्रण ,भाषा शैली, सब के सब बेजोड़ लागल , भोजपुरी के ठेठ शब्दन के प्रयोग कथा के जिवंत बनावत बा |

कुल मिलाके राउर कथा बहुत ही सुंदर बा , बधाई कबुल करी |

बागी जी  प्रणाम, कहानी रउवा सभे पसन् करतानी ,बड़ा ख़ुशी होता ,कहानी के सराहे आ हौसला बढावे खाटी धन्यवाद ब़ा ,कोशिश रही आगे  भी कुछ एह से भी बेहतर करके कुछ सुघर रचना प्रस्तुत करके , रउवा  सभे के स्नेह आ आशीर्वाद चाही |
                                                                                                                                  धन्यवाद ,

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय रामबली जी बहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति हुई है । हार्दिक बधाई सर"
15 hours ago
Admin posted discussions
18 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"रिश्तों की महत्ता और उनकी मुलामियत पर सुन्दर दोहे प्रस्तुत हुए हैं, आदरणीय सुशील सरना…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक - गुण
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, बहुत खूब, बहुत खूब ! सार्थक दोहे हुए हैं, जिनका शाब्दिक विन्यास दोहों के…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय सुशील सरना जी, प्रस्तुति पर आने और मेरा उत्साहवर्द्धन करने के लिए आपका आभारी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय भाई रामबली गुप्ता जी, आपसे दूरभाष के माध्यम से हुई बातचीत से मन बहुत प्रसन्न हुआ था।…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय समर साहेब,  इन कुछेक वर्षों में बहुत कुछ बदल गया है। प्रत्येक शरीर की अपनी सीमाएँ होती…"
yesterday
Samar kabeer commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"भाई रामबली गुप्ता जी आदाब, बहुत अच्छे कुण्डलिया छंद लिखे आपने, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।"
yesterday
AMAN SINHA posted blog posts
Wednesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . विविध

दोहा पंचक. . . विविधदेख उजाला भोर का, डर कर भागी रात । कहीं उजागर रात की, हो ना जाए बात ।।गुलदानों…See More
Wednesday
रामबली गुप्ता posted a blog post

कुंडलिया छंद

सामाजिक संदर्भ हों, कुछ हों लोकाचार। लेखन को इनके बिना, मिले नहीं आधार।। मिले नहीं आधार, सत्य के…See More
Tuesday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service