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कट गए कितने ही वन

कम हो गए कितने उपवन
खुली हवा हो गयी है कम
कैसे रहेंगे तुम और हम !

बंध खिड़की को खोलो तुम
वरना घुट जाएगा दम
हवा के झोंके जो न आये
कैसे रहेंगे तुम और हम !

एक पौधा तुम भी लगाओ
अपना आँगन तुम ही सजाओ
न रहेंगे जब पेड़ और पौधे
कैसे रहेंगे तुम और हम !

यह चमन तुम्हारा है
यह आँगन तुम्हारा है
महकेंगे जब यह फूल उपवन
जी उठेंगे फिर तुम और हम !

.

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Replies to This Discussion

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ... सादर बधाई

आदरणीय कल्पना जी,पर्यावरण और प्रकृति को लेकर सुंदर और सारगर्भित रचना!हार्दिक बधाई!

धन्यवाद आदरणीय ।
धन्यवाद आदरणीय ।
पर्यावरण के प्रति जागरूक करती प्रेरक कथा के लिये बधाई आद०कल्पना भट्ट जी ।
धन्यवाद आदरणीया नीता दी ।

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