For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कैसे होगा सुप्रीम कोर्ट का फैसला समाज को हजम ?

जी हम बात कर रहे है ,सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का जिसमे -शादी से पहले किसी को भी साथ रहने की छुट दी गयी है.
सुप्रीम कोर्ट ने तो फैसला सुना दिया ,;लेकिन क्या यह लागु हो पायेगा हमारे समाज में !एक तरफ जहा उचे सोसाइटी वाले लोगो को रहत मिली ,वही दूसरी तरफ भारत के सभ्य संस्कृति को झुकने पर मजबूर कर दिया गया है .
चलिए मान लेते है की यह फैसला सही है.लेकिन सही है तो फिर क्या जरुरत है किसी को शादी के बंधन में बंधने की.?
सुप्रीम कोर्ट ने विवाहपूर्व यौन सम्बंधों और सहजीवन की वकालत करने वाले लोगों के माफिक व्यवस्था देते हुए मंगलवार को कहा कि किसी महिला और पुरुष के बगैर शादी किये एक साथ रहने को अपराध नहीं माना जा सकता"--------चलिए ये भी ठीक है ,लेकिन वही महिला कुछ दीन बाद -अपने शोसन का मामला लेकर कोर्ट का दरवाजा खटखटाए तो फिर क्या होगा ?
क्या इस फैसले से समाज में सुधर होगा या और अश्लीलता बढ़ेगी .
जहा तक मेरा मानना है की -सुप्रीम कोर्ट अपराध के उस नब्ज को दबाने की कोसिस कर रही है ,जिस से की जनता को रहत मिले ! लेकिन अफ़सोस की उस नब्ज के बदले वह नब्ज पकड़ लेती है जिस से की भारत की संस्कृति के साथ साथ ,समाज का भी दम घुटने लगता है
प्रस्तुति-रत्नेश रमण पाठक (यांत्रिक अभियंत्रण ,छात्र )

Views: 1648

Reply to This

Replies to This Discussion

सुप्रीम कोर्ट ने तो फैसला सुना दिया, लेकिन क्या यह लागू हो पायेगा हमारे समाज में | एक तरफ जहा ऊँचे सोसाइटी वाले लोगो को राहत मिली, वही दूसरी तरफ भारत के सभ्य संस्कृति को झुकने पर मजबूर कर दिया गया है .

रत्नेश भाई आप की चिंता वाजिब है, अभी भी हम लोगों का समाज कई वर्गों मे बटा है, आज भारत के अधिकतर परिवार जहा अपने जाति मे ही शादी विवाह करना पसंद करते है, वही बिना शादी के एक साथ एक मरद और एक औरत को रहना हमारा समाज कितना स्वीकार कर पायेगा ये कहना बहुत ही मुश्किल है, कुछ धनाड्य और मुट्ठी भर लोग जो ऐसे रिश्तो के पक्ष मे दलील देते है उनको इस क़ानून से कोई ज्यादा फरक नहीं पड़ता है क्योकि वो पहले भी ऐसे रिश्तो को निभाते रहे है बल्कि ये कहे कि वो बिना शादी किये एयासी करते रहे है,पर हमारा समाज तो ऐसे रिश्तो को रखैल की ही संज्ञा देता है,
सुप्रीम कोर्ट अपराध के उस नब्ज को दबाने की कोसिस कर रही है ,जिस से की जनता को रहत मिले ! लेकिन अफ़सोस की उस नब्ज के बदले वह नब्ज पकड़ लेती है जिस से की भारत की संस्कृति के साथ साथ ,समाज का भी दम घुटने लगता है

आप बिलकुल सही कह रहे है रत्नेश भाई , समाज मे सदियों से दोहरी मानसिकता रहा है और रहेगा , आज सुप्रीम
कोर्ट यह ब्यवस्था दे रहा है कि "बिन फेरे हम तेरे" रहने मे कोई दिक्कत नहीं है, पर केवल ब्यवस्था दे देने भर से समस्या का समाधान नहीं निकल जाता, उस बच्चे का क्या होगा जो ऐसे संबंधो के फलस्वरूप जन्म लेंगे , जवानी ख़त्म होने के बाद मर्द द्वारा ठुकराई गई उस औरत का क्या होगा, क्या होगा उस समाज का जो ऐसे रिश्तों को रखैल की संज्ञा देते है, समाज मे एक दुसरे को देख कर नवजवानों को बिगड़ने से कैसे रोकेंगे | सवाल बहुत सारे उठ रहे है, जिसका जबाब देना इतना आसान नहीं है, पर माननीय न्यालय की इज्जत हम सभी को करनी है | आगे आगे देखिये होता है क्या ?
Jara sa aaj key Hindustan/patna/Hindi mey chapa es news par bhi dhyan dijiyey....

एक बार फिर से मैं इस पुराने गड़े हुए मुर्दे को उखाड़ रहा हु ,ताकि जो सदस्य इस मुर्दे से परिचित नहीं है वो परिचय कर ले और अपनी राय ,विचार, अपने कीबोर्ड से निकाल ले.
रत्नेश जी, माननीय सर्वोच्च न्यायालय की व्याख्या सर आँखों पर....न्यायालय कोई सामाजिक व्यव्स्थावों का निर्धारण नन्ही करती...ना ही वो सामाजिक दायरे परिभाषित करती हैं..वो तो संवैधानिक व्यवस्थाओं की व्याख्या भर करती हैं, और उनकी सीमाओं की परिधि में ही रहकर कोई निर्णय सुनाती हैं...शायद जब क़ानून की किताबें लिखी गयी होंगी तो इसकी किसी ने कल्पना भी नन्ही की होगी....Live -in -relationship को कानूनी जामा पहनाने से आपको क्या लगता है की सामाजिक मान्यताएं परिवर्तित हो जायेंगी...कत्तई नन्ही...माना आज समाज का तेजी से वैश्वीकरण हो रहा है...लेकिन यकीन मानिए आज जो भी भारतीय पश्चीमी देशों में रह रहे हैं..शायद वो हमसे ज्यादा भारतीय संस्कृति और परम्परा में विश्वास रखते हैं...कुछेक परम्पराओं को यदि छोड़ दिया जाए तो अधिकांशतः भारतीय परम्पराएं, सामाजिक सुरक्षा को ध्यान में रख कर बनायी गयी हैं....भारत सदियों तक गुलाम रहा..दर्जनों आक्रमण झेले...ना ही सिर्फ राजनीतिक सीमाओं पर बल्कि सामाजिक चौहद्दियों पर भी.. फिर भी आज भी हमारी मान्यताएं और परम्पराएं जीवित हैं..तो शायद ऐसी कोई बात है जो इसे जीवित रखने में मददगार है....

मेरे विचार में सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से आम जन जीवन पर कोई ख़ास असर नन्ही पड़ेगा...हां चाँद मुठी भर लोग जो छुप छुपा के ऐसा करते थे उनको वैधता जरूर मिल जायेगी....
सर्वोच्च न्यायालय अब गुजारा भत्ता भी देगा लिव इन रिलेसन शिप में रहने वाले महिलाओ को --------नया बखेड़ा एक नजर !


सुप्रीम कोर्ट ने लिव इन संबंधों के बारे में गुरुवार को दिए गए एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि ऐसे रिश्ते को निभा रही महिला साथी कुछ मापदंडों को पूरा करने की स्थिति में ही गुजारा भत्ते की हकदार हो सकती है और केवल सप्ताहांत एक दूसरे के साथ बिताने या रात भर किसी के साथ गुजारने से इसे घरेलू संबंध नहीं कहा जा सकता।

ये हैं शर्तें

1. युवक-युवती को समाज के समक्ष खुद को पति पत्नी की तरह पेश करना होगा।
2. दोनों की उम्र कानून के अनुसार शादी के लायक हो।
3. उम्र के अलावा भी वे शादी करने योग्य हों जिनमें अविवाहित होना भी शामिल है।
4. वे स्वेच्छा से एक दूसरे के साथ रह रहे हों और दुनिया के सामने खुद को एक खास अवधि के लिए जीवनसाथी के रूप में दिखाएं।

न्यायाधीश मार्कन्डेय काटजू और टीएस ठाकुर की पीठ ने कहा कि गुजारा भत्ता पाने के लिए किसी महिला को चार शर्ते पूरी करनी होंगी, भले ही वह अविवाहित हो। इनमें युवक-युवती को समाज के समक्ष खुद को पति पत्नी की तरह पेश करना होगा, दूसरा: दोनों की उम्र कानून के अनुसार शादी के लायक हो, तीसरा: उम्र के अलावा भी वे शादी करने योग्य हों जिनमें अविवाहित होना भी शामिल है तथा चौथा वे स्वेच्छा से एक दूसरे के साथ रह रहे हों और दुनिया के सामने खुद को एक खास अवधि के लिए जीवनसाथी के रूप में दिखाएं।

पीठ ने कहा कि हमारी राय में, घरेलू हिंसा से महिलाओं की रक्षा संबंधी अधिनियम के लाभ पाने के लिए सभी सहजीवन (लिव इन) संबंधों को वैवाहिक संबन्धों जैसी श्रेणी में नहीं माना जाएगा। इस लाभ को पाने के लिए हमने जो उपरोक्त शर्ते बतायी हैं उन्हें पूरा करना होगा और इसे सबूत के जरिए साबित भी करना होगा।

शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि किसी व्यक्ति की कोई रखैल है जिसकी वह वित्तीय जिम्मेदारी उठाता है और उसका इस्तेमाल मुख्य रूप से सैक्स की संतुष्टि के लिए करता है या बतौर नौकरानी के रखता है तो हमारी नजर में यह ऐसा संबंध नहीं होगा जिसे वैवाहिक संबन्धों जैसा माना जा सके।

पीठ ने कहा कि इस बात में कोई शक नहीं है कि जो कदम हम उठा रहे हैं उससे बहुत सी महिलाएं अधिनियम 2005 (घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम) के लाभों से वंचित रह जाएंगी, लेकिन कानून में संशोधन करना इस अदालत का काम नहीं है। संसद ने संबंध का विवाह की प्रकृति में इस्तेमाल किया है, लिव इन रिलेशन के संबंध में नहीं। व्याख्या की आड़ में अदालत कानून की भाषा को नहीं बदल सकती।

शीर्ष अदालत ने वैवाहिक मामलों की एक अदालत तथा मद्रास हाई कोर्ट द्वारा जारी किए गए आदेशों को दरकिनार करते हुए यह फैसला दिया। दोनों अदालतों ने डी पत्तचियामल को पांच सौ रुपए का गुजारा भत्ता दिए जाने का आदेश दिया था जिसने दावा किया था कि वह अपीलकर्ता डी वेलुसामी की ब्याहता है।

वेलुसामी ने इस आधार पर दोनों अदालतों के आदेश को चुनौती दी थी कि वह पहले से ही लक्ष्मी नामक महिला से शादीशुदा है और पत्तचियामल से उसकी शादी नहीं हुई थी। हालांकि वह कुछ समय उसके साथ रहा था।

गुजारे भत्ते के संबंध में अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 125 की व्याख्या करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि कानूनन ब्याहता पत्नी के अलावा, निर्भर माता पिता तथा बच्चों ही केवल किसी व्यक्ति से गुजारा भत्ता पाने के हकदार हैं।

लेकिन घरेलू हिंसा अधिनियम घरेलू संबंध शब्द का इस्तेमाल कर गुजारा भत्ते का दायरा बढ़ा देता है जिसमें न केवल वैवाहिक संबंध शामिल हैं बल्कि विवाह की प्रकृति का संबंध भी शामिल है। पीठ ने कहा कि दुर्भाग्य से इस संबंध की अधिनियम में व्याख्या नहीं की गयी है। चूंकि इस संबंध की व्याख्या पर अदालत ने सीधे कोई विचार विमर्श नहीं किया है, इसलिए हम समझते हैं कि इसकी व्याख्या जरूरी है क्योंकि इस बारे में हमारे देश में बड़ी संख्या में मामले अदालतों में आएंगे और इसी वजह से ठोस फैसला जरूरी है।

शीर्ष अदालत के अनुसार लिव इन संबंधों के रूप में देश में उभरते एक नए सामाजिक चलन के मद्देनजर यह कानून लागू किया गया है। पीठ ने कहा कि सामंती समाज में, एक पुरुष और एक महिला के बीच विवाहेत्तर यौन संबंध पूरी तरह प्रतिबंधित हैं और ऐसे संबंधों को गलत और भयानक समझा जाता है, जैसा कि लेव तोलस्तोय के उपन्यास अन्ना कुरनिकोवा, गुस्ताव फ्लुबार्त के उपन्यास मादाम बोबेरी तथा महान बंगाली लेखक शरत चंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यासों में दर्शाया गया है।

पीठ ने कहा कि लेकिन भारतीय समाज बदल रहा है और यह बदलाव परिलक्षित हो रहा है तथा संसद ने संबंधित कानून बनाकर इसे मान्यता भी दी है। सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में अमेरिकी अदालतों द्वारा समय-समय पर दिए गए फैसलों पर भी विचार किया जिनमें लिव इन संबंधों में शामिल रही महिलाओं को गुजारा भत्ता दिए जाने के संबंध में विभिन्न प्रकार के विचार व्यक्त किए गए थे।

पीठ ने कैलिफोर्निया की शीर्ष अदालत द्वारा मार्विन बनाम मार्विन (1976) के संबंध में दिए गए फैसले का भी जिक्र किया जिसमें ऐसे संबंध में शामिल रही महिला को गुजारा भत्ता दिया गया था।

यह मामला प्रख्यात अभिनेता ली मार्विन से ताल्लुक रखता था जिसके साथ मिशेल नाम की एक महिला बिना ब्याह किए बरसों तक रहती रही और बाद में संबंध समाप्त होने पर उसने गुजारा भत्ते की मांग की।

refrence:-livehindustan.com

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Shyam Narain Verma replied to Saurabh Pandey's discussion गजल : निभत बा दरद से // सौरभ in the group भोजपुरी साहित्य
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर भोजपुरी ग़ज़ल की प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

गजल : निभत बा दरद से // सौरभ

जवन घाव पाकी उहे दी दवाईनिभत बा दरद से निभे दीं मिताई  बजर लीं भले खून माथा चढ़ावत कइलका कहाई अलाई…See More
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday
Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service