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मैंने जब तेरी सेज पर पैर रखा था
मैं एक नहीं थी - दो थी
एक समूची ब्याही - और एक समूची कँवारी
तेरे भोग की खातिर
मुझे उस कँवारी को क़त्ल करना था
मैंने क़त्ल किया था
ये क़त्ल जो कानून जायज़ होते हैं
सिर्फ मर्दों की ज़िल्लत क़ानून है
और मैंने उस ज़िल्लत (अपमान) का
ज़हर पीया था
मुझे किसे क़त्ल करना था और किसे क़त्ल कर बैठी !

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Replies to This Discussion

ਬਹੁਤ ਖੂਬ...ਅੰਮ੍ਰਿਤਾ ਜੀ ਦੀ ਹਰ ਗੱਲ ਬੜੀ ਡੂਘੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ....
बहुत खूब...अमृता जी की हर बात बहुत गहरी होती है...

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