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वो आगे जाते रहे, हम पीछे जाते रहे - डॉo विजय शंकर

दुनियाँ में लोग
मन की गति से
अरमान पूरे करते रहे ,
जो चाहा उसे
हासिल करते रहे ,
हम हसरतों को
दबाने , मन मारने ,
के हुनर सिखाते रहे।
जो है उसे पाने में
वो जिंदगी पाते रहे ,
हम उसी को मिथ्या
और भ्रम बताते रहे।
वो गति औ प्रगति गाते रहे
हम सद्गति को गुनगुनाते रहे ,
वो आगे जाते रहे ,
हम पीछे जाते रहे ,
वो देश को सोने
जैसा बनाते रहे ,
हम देश को सोने की
चिड़िया बताते रहे ,
लोग उल्लुओं को
पास आने नहीं देते
हम हर गुलिस्तां
उल्लुओं से सजाते रहे ||

मौलिक एवं अप्रकाशित.
डा० विजय शंकर

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 19, 2015 at 9:09pm

वाह वाह वाह आदरणीय डॉ विजय शंकर सर, क्या खूब लिखा है, दमदार और असरदार व्यंग्य हुआ है. छोटी मगर बेहद असरदार कविता . नमन इस प्रस्तुति पर ...

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 19, 2015 at 9:02pm
आदरणीय श्याम मठपाल जी , आपको कविता अच्छी लगी , अच्छा लगा। आपने सही कहा " हक़ीक़त को समर्पित व्यंग " . आपकी प्रशस्ति एवं बधाई हेतु ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on March 19, 2015 at 9:00pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी , आपको कविता अच्छी लगी , अच्छा लगा। आपकी प्रशस्ति एवं बधाई हेतु ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on March 19, 2015 at 8:57pm
आदरणीय कृष्ण मिश्रा जी , आपकी प्रशस्ति एवं बधाई हेतु ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on March 19, 2015 at 8:56pm
आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी , आपकी शुभ बधाई हेतु ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Shyam Mathpal on March 19, 2015 at 7:50pm

 आ. डा० विजय शंकर  जी,

व्यंग संदेश  हकीकत को समर्पित सुंदर रचना. हार्दिक बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 19, 2015 at 6:59pm

बहुत सुन्दर कविता की रचना की है , आदरणीय विजय भाई , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 19, 2015 at 3:50pm

वो गति औ प्रगति गाते रहे
हम सद्गति को गुनगुनाते रहे

एक और उम्दा कविता पर ढेरों बधाईयां आदरणीय vijai shanker जी!!

Comment by Shyam Narain Verma on March 19, 2015 at 11:05am
इस सुंदर प्रस्तुति के लिए तहे दिल बधाई सादर

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