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हँसिये मुस्कुराइये --- डॉo विजय शंकर

बीवी ने किचेन के सामान का पर्चा दिया
मात्रा गिनी उन्होंने और खारिज कर दिया ||

बोले बीवी से इसमें वज्न और बढ़ाइये
वो बोलीं पर्स देखिये सामान ले आइये ॥

आटा दाल चावल वजन के हिसाब से लाइए
मसाले हलके पैकेट स्वाद में तेज लाइए ||

बोले काफ़िया नहीं मिल रहा काफ़िया मिलाइये
वो बोलीं काफ़िया छोड़िये आप कॉफी ले आइये ||

मात्रा और काफिये से गृहस्थी नहीं चलती
नून औ तेल से चलती है, उसी से चलाइये ||

गृहस्थी किचेन के कुछ उसूल हुआ करते हैं
शायरी वहां नहीं , ड्राइंगरूम में चलाइये ||

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Shyam Narain Verma on September 15, 2015 at 5:19pm

बहुत खूब ॥ आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

| सादर 

Comment by shree suneel on September 15, 2015 at 9:42am
आदरणीय डॉ विजय शंकर सर जी, इस चुटीली रचना के लिए बधाई आपको. शीर्षक सार्थक रहा. मुस्कुराये बिना रहा हीं नहीं जा सकता. बधाई.. बधाई.

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