विकास - लघुकथा -
"शक़ूर भाई, चलो भी अब, चार बज गये। नेताजी के आने का समय हो गया।"
"मुन्ना जी, हमारे देश के नेता कभी समय से आते हैं क्या? अगर ये लोग इतने ही समय के पाबंद होते तो आज देश की ये हालत नहीं होती।"
"वह सब तो ठीक है पर अपने को इन सब बातों से क्या लेना देना।अपने को तो अपनी दिहाड़ी से मतलब|"
"अरे यार मुझे तो इसका भाषण भी सुनने को मन नहीं करता। अपने ऑटोवालों की यूनियन लीडर से भी घटिया भाषा प्रयोग करता है।"
"भाई जी, हम उसके संस्कार तो बदल नहीं सकते। वैसे भी इस उम्र में वह अब क्या सुधरेगा?"
"कुछ भी हो भाई, इस आदमी ने इस पार्टी को तो आसमान में पहुंचा दिया।"
"हाँ भाई, इसमें तो कोई दो राय नहीं है।"
"पर भाई, लोग इसको इतनी गालियाँ क्यों देते हैं। क्या सच में यह बेईमान है?"
"हो भी सकता है?"
"तुम यह कैसे कह सकते हो?"
"यार तुम खुद सोचो, पिछले चुनाव में, इसी नेता के भाषण सुनने के लिये इसकी पार्टी ने फ़ंड जुटाने के लिये पांच पांच रुपये की टिकट लगायी थी।और अब इसके भाषण सुनने के लिये लोगों को पांच पांच सौ रुपये देकर बुलाया जा रहा है।"
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
आद0 शेख शहज़ाद उस्मानी सादर अभिवादन। सत्य बात की ओर इशारा करती अच्छी लघुकथा लिखी आपने, बधाई स्वीकार कीजिये
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