For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

*माटी का गुरूर* राहिला (लघुकथा)

"अब क्या करें? वैध जी तो दूसरे गाँव गये हुए है, कल तक लौटेगें | इतने दूर वापस भी नहीं जा सकते ।शाम होने को है, इतने छोटे गाँव में कहाँ रुकेंगे?"कहते हुए महिला के माथे पर चिंता की लकीरें खींच गयी।
"फ़िक्र ना कर, बलवीर सर इसी गाँव का तो हैं जिन्होंने मुझे इस वैध के बारे में बताया था। उन्हीं के घर रूक जाते हैं|" पति ने उसे आश्वासन दिया|
नाम सुनते ही उसे याद हो आया वह दिन ,जब फौजी पति पहली बार उसे अपने साथ ले गये थे और वहाँ वह पति के सीनियर इन्हीं बलवीर के यहाँ भोजन पर आमंत्रित हुई थी। न चाहते हुए भी उसे वहाँ जाना पड़ा था।लेकिन उसने भी बड़ी चतुराई से उपवास का बहाना बनाकर , उनके घर का खाना तो क्या ,पानी तक नहीं छुआ । हमेशा से ऊँच -नीच ,जात-पात को मानने वाली वह, अचानक खुद को वहाँ के चलन अनुसार तैयार नहीं कर पायी थी।
और आज उन्हीं के घर..वह भी रुकने के वास्ते..। वह अब बड़े धर्म संकट में थी।
"अरे भाईसाहब !आप?" दरवाजे पर उन्हें देख बलवीर की पत्नी चौकीं।
"नमस्कार भाभीजी!अरे आप तो हमें देखकर चौंक गयीं। भई ,आप सब की याद आई तो मिलने चले आये ।वह खुशमिजाज अंदाज में बोला। सर कहाँ है?"
"जी..,वह तो ड्यूटी पर ही हैं ।"
"अरे...!जब मेरी बात हुयी थी तब तो आने का हो रहा था !शायद छुट्टी की प्रॉब्लम हो गयी होगी।"
फिर बातों ही बातों में ,आने की असल वजह पता चलने पर बलवीर की पत्नि ने मर्यादावश मेहमान नवाज़ी तो की ,लेकिन उस दिन असर उसके व्यवहार में खूब नजर आया|।नपे तुले संवाद, सादा भोजन और चुभती निगाह।जिसे उन दोनों ने खूब महसूस किया।
रात काफी हो चुकी थी ,लेकिन नींद आँखों से कोसों दूर थी।वह बराबर करवटें बदल रही थी ।
"क्या हुआ नींद नहीं आ रही क्या ?"पति ने पूछा ।
"अरे ..! आप अब तक सोये नहीं?" जबाब के बदले उसने प्रतिप्रश्न किया।
"फ़ौजी हूँ, जरा सी आहट चौकन्ना कर देती है | यहाँ तो तेरी करवट के कारण पूरी खाट चरमरा रही है।"
"हाँ, नींद नहीं आ रही।" उसने छत की तरफ देखते हुए कहा |
"मैं जानता हूँ, तू क्या सोच रही है ? मैंने तो तुझे हमेशा से समझाया, व्यवहार में आर पार की स्थिति रखना कभी भी ठीक नहीं होता।संबंधों में हमेशा संतुलन रख ।लेकिन तेरी निकट दर्शिता ने तुझे कभी भान ही नहीं होने दिया कि आड़ा वक़्त किसी पर भी, कभी भी आ सकता है।"
"हूँ ..!।उसने ठंडी आह भरते हुए कहा। देखो आज भाग्य ने कहाँ का अन्न पानी ग्रहण करा दिया जहाँ का मैं कभी...!"पति के समझाइश को पूरी तरह दरकिनार करके जैसे ही उसने अफ़सोस जाहिर किया तो ...
"शर्म कर अपनी सोच पर ,किस ऊँचे कुल के गुरूर में मरी जा रही है !,भगवान ने सब को सामान बनाया और तू अन्न ,पानी का रोना रो रही है । जबकि अन्न ,पानी की कोई जात नहीं होती।बहुत देखे तेरी जैसी सोच के जिन्हें नियति ने एक झटके में जात पात से ऊपर उठा कर इंसान बना दिया ।उसने बाड़ और भूकंप ग्रस्त लोगों का उदाहरण देते हुए कहा।तुझे अभी भी इंतेजार है?"
मौलिक एवं अप्रकाशित।

Views: 960

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mohammed Arif on April 5, 2017 at 9:39am
आदरणीया राहिला जी आदाब, ऊँच-नीच जाति के भेदभाव को रेखांकित कथा के लिए हार्दिक बधाई । कथा का कलेवर थोड़ा छोटा और कसावट वाला होता तो कथा में रोचकता आ जाती । थोड़ा बोझिलपन आ गया ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on April 4, 2017 at 8:13pm
आखरी पैरा विवरण जैसा प्रतीत हुआ । कथा वैसे बहुत बढ़िया हुई है ।हार्दिक बधाई आ राहिला जी ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . रोटी
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . विविध
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर "
Thursday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . विरह
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Thursday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
Thursday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर ।  नव वर्ष की हार्दिक…"
Thursday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .शीत शृंगार
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी । नववर्ष की…"
Thursday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . दिन चार
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।नववर्ष की हार्दिक बधाई…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . दिन चार
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .शीत शृंगार
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।।"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-117
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब। लेखन के विपरित वातावरण में इतना और ऐसा ही लिख सका।…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service