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प्यार करते हैं बेइन्तहा इम्तहां चाहे ले ले जहाँ।
हम ना होंगे जुदा जाने जाँ, हम हैं दो जिस्म और एक जां।।

चाँदनी चाँद में ज्यों बसी, फूल में है ज्यों मीठी हँसी।
त्योंही उर में बसी उर्वसी छोड़कर तुम ये सारा जहां।।

सुन हकीकत ऐ हुस्ने परी, मैं हूँ शायर हो तुम शायरी।
चश्मो दिल में हो कब से मेरी, कह नहीं सकती है ये जुबां।।

बिन पिये भी नहीं होश है क्या नशीला ये आगोश है।
जामे लब  में भरा जोश है, हैं मिलाये जमीं आसमां।।

मय मयस्सर हुई ही नहीं, हमको दुनियां में ऐसी कहीं।
जैसी तुमने पिलाई हसीं, उम्र भर के लिए मेहरबाँ।।

गुल बदन का बदन बनछुआ, एक भँवरे ने जब आ छुआ।
बदहवासी में ऐ साकिया मिट गये सरहदों के निशां।।

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Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 27, 2011 at 9:19am
संदीप जी सुंदर भाव को समेटे एक अच्छी रचना, बधाई स्वीकारे |

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