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मन की बात
करते, कभी जाना
मन की बात

समझौते हैं
समझ का फेर, जो
समझ सको


रिश्ते नाते तो
ज्यों पतंग की डोर
उलझे जाते

मौलिक एवं अप्रकाशित.

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Comment by Neelam Upadhyaya on February 9, 2017 at 11:36am

आदरणीय कबीर जी एवं आदरणीय वामनकर जी, मेरा मनोबल बढ़ाने के लिए आभार व्यक्त करती हूँ .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 8, 2017 at 3:58pm

आदरणीय नीलम उपाध्याय जी,बढ़िया हाइकू लिखे है आपने. इस प्रस्तुति पर बधाई. सादर 

Comment by Samar kabeer on February 6, 2017 at 8:49pm
मोहतरमा नीलम उपाध्याय जी आदाब,बहुत अच्छे लगे आपके हाइकू,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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