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पानी नहीं है , प्यास लगी है 

मुन्ने को देखो प्यास लगी है 

घर के सारे  घड़े खाली पड़े है 

बाहर के नल भी सूखे पड़े है 

मुन्ने को मैं कैसे समझाऊं

प्यास उसकी मैं कैसे बुझाऊं 

गर्मी भी तो बढ़ रही है 

बस्तियां जैसे जैसे गढ़  रहीं है 

वन उपवन हमने काट दिए है 

और जाने कितने विनाश किये है 

अब भुगत रहे मासूम यह बच्चे 

कौन समझें यह तो अक्ल के कच्चे 

अक्ल वाले सब कहाँ गए है 

पढ़े लिखे सब  बेकार हुए है 

कुदरत के चाहक कब खड़े होंगे 

पेड़ पौधे शायद कभी लगे होंगे 

आज तो हर गली है सूखी

हर जगह की मिट्टी है भूखी 

मुन्ना क्या ऐसे ही रहेगा 

उसका रोना क्या कोई सुनेगा 

चिड़ियाँ भी तो देखो ढूंढ रही है 

पानी  को तो वो भी तरस रही है 

पानी लाओ  पानी लाओ 

बादल भैया मेघ बरसाओ 

पेड़ पौधे भी जरुर लगाओ 

सरकार को क्यों दोष देते हो 

पानी को  तुम भी फेंकते हो 

पानी बचाओ जीवन बचाओ 

पानी नहीं तो मर जाओगे 

धूप में तुम भी जल जाओगे 

जल ही अमृत कब समझोगे 

खुद की भूल को कब मानोगे ! 

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 25, 2016 at 8:53pm

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