2122 2122 2122 22/112
शाम लिख ले सुबह लिख ले ज़िंदगानी लिख ले
नाम अपने हुस्न के मेरी जवानी लिख ले।
कब्ल तोहमत बेवफ़ाई की लगाने से सुन
नाम मेरा है वफा की तर्जुमानी लिख ले ।
जो बनाना चाहता है खुशनुमा संसार को
अपने होंठो पे मसर्रत की कहानी लिख ले।
मंहगाई बढ़ रही है रात औ दिन चौगुनी
वादे अच्छे दिन के निकले लंतरानी लिख ले।
लाल होगी यह जमी गर इन्सानो के खूँ से
रह न जाएगा अंबर भी आसमानी लिख ले ।
रात का सागर अगर है गहरा तो यह तय है
कल किनारों पर न होगी सरगरानी लिख ले।
होके इंसां रह नहीं सकते इन्सानो के संग
उसके घर पर रहते हैं संग आग पानी लिख ले।
आसमां में घूमने वाले जरा देख नीचे
कम नहीं है कुछ यहाँ भी शादमानी लिख ले ।
और अंत में :
कर गया जो फेल दसवीं की परीक्षा पप्पू
अब करेगा गाँव की अपने प्रधानी लिख ले ।
..... नीरज कुमार नीर/ मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सौरभ सर, इस मिसरे को नीरज जी ने सुधार कर //लाल होगी यह जमी गर इन्सानो के खूँ से // के स्थान पर //लाल होगी यह जमी गर आदमी के खूँ से //किया है
सादर
आदरणीय मिथिलेशजी, इस मिसरे को भी देखिये - लाल होगी यह जमी गर इन्सानो के खूँ से
आदरणीय सौरभ सर, आजकल दफ्तरी व्यस्तता के कारण अधिक सक्रीय नहीं हूँ, इसलिए मंच पर सहभागिता कम हुई है. सादर
मंहगाई 2122
गा अंबर भी 2122
आदरणीय नीरज जी, इन पर पुनर्विचार निवेदित है. सादर
आदरणीय मिथिलेश जी आपका हार्दिक आभार कि आपने मेरे कहने पर इस पोस्ट तक आने का कष्ट किया एवं इसपर अपने अमूल्य सुझाव दिये ....... मैं इसकी बहर नहीं बदल सकता मान्यवर ... उसी बहर में एक बार पुनः प्रयास किया है , कृपया देखें ।
आदरणीय सौरभ जी आपके कहे अनुसार मैंने तक्ती के उपरांत कुछ सुधार किया और तक्ती को साथ में लिख दिया है ..... एक बार पुनः इसे देखें और अपना कीमती सुझाव देना ...
2122/ 2122/ 2122/ 22
शाम लिख ले (2122) सुबह लिख ले (2122) ज़िंदगानी (2122) लिख ले (22)
नाम अपने (2122) हुस्न के मे (2122) री जवानी (2122) लिख ले ( 22)
कब्ल तुहमत 2122 बेवफ़ाई 2122 की लगाने 2122 से सुन 22
नाम मेरा 2122 है वफा की 2122 तर्जुमानी 2122 लिख ले 22
जो बनाना 2122 चाहता है 2122 खुशनुमा दुन 2122 या को 22
अपने होंठो 2122 पे मसर्रत 2122 की कहानी 2122 लिख ले। 22
मंहगाई 2122 बढ़ रही है 2122 रात औ दिन 2122 साहब 22
वादे अच्छे 2122 दिन के निकले 2122 लंतरानी 2122 लिख ले 22
लाल होगी 2122 यह जमी गर 2122 आदमी के 2122 खूँ से 22
रह न जाए 2122 गा अंबर भी 2122 आसमानी 2122 लिख ले 22
रात का सा 2122 गर अगर है 2122 गहरा तो यह 2122 तय है 22
कल किनारों 2122 पर न होगी 2122 सरगरानी 2122 लिख ले 22
रह नहीं सक2122 ते यहाँ तुम 2122 संग इन्सा 2122 नो के 22
संग उसके 2122 घर पे रहते 2122 आग पानी 2122 लिख ले 22
और अंत में :
कर गया जो 2122 फेल दसवीं 2122 की परीक्षा 2122 पप्पू 22
अब करेगा 2122 गाँव की अप 2122 ने प्रधानी 2122 लिख ले 22
मेरा नेट कल से फिर बन्द हो गया है. कम्प्लेण्ट कर दिया हूँ. डोंगल से नेट डेड-स्लो चल रहा है. ऐसा कि पेज तक क़ायदे से लोड ही नहीं हो रहे हैं. मोबाइल की सीमा में बहुत कुछ संभव नहीं है.
इस पोस्ट पर मेरे आने के पहले कतिपय ग़ज़लकारों का ध्यान पड़ चुका था. दुःख की बात है कि किसी ग़ज़लकार ने नीरज भाई को उनकी इस ग़ज़ल के सापेक्ष सार्थक कुछ नहीं कहा है. आदरणीय नीरज नीर भाई इस मंच के नये सदस्य नहीं हैं कि वे काव्यकर्म की आवश्यकताएँ और महीनी न समझ सकें और उनसे सटीक बातें करने में किसी को कोई झिझक हो, जैसा कि अमूमन नये सदस्यों के साथ कुछ कहने के क्रम में होता है. फिर भी ग़ज़लकारों ने फेसबुकिया (सोशल साइट की) अंदाज़ में चलताऊ टिप्पणी की. इस बात का हार्दिक दुःख है. यह ओबीओ के उद्येश्य और माहौल के सर्वथा भिन्न व्यवहार है. ऐसी टिप्पणियाँ उद्येश्यहीन ही हैं.
आज शाम इस ग़ज़ल को लेकर आ. नीरज ’नीर’ जी का फोन आया था. मैंने उनको इस ग़ज़ल के मिसरों की तक्तीह करने का सुझाव दिया ताकि सचेत और अभ्यासी सदस्य इस ग़ज़ल पर अपनी बातें कह सकें. मुझे विश्वास था कि आ. नीरज नीर जी के तक्तीह करते ही उपयुक्त और सटीक सुझाव आयेंगे जो कई कारणों से नहीं आ पाये हैं. और आ. नीरज नीर जी के तौर पर एक ग़ज़लकार के जनमने की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाये.
आदरणीय मिथिलेश जी का हार्दिक धन्यवाद कि आपने ओबीओ की परिपटी को समझा है और सहृदयता के साथ आपने सुझाव दिये हैं.
शुभेच्छाएँ
आदरणीय नीरज जी, मैं //जो बनाना चाहता है खुशनुमा संसार को // इस मिसरे के आधार पर तनिक बह्र बदल कर अपनी बात साझा कर रहा हूँ-
2122-- 2122-- 2122-- 212
शाम लिख ले, सुबह लिख ले, ज़िंदगानी लिख ज़रा
नाम अपने हुस्न के.......... मेरी जवानी लिख ज़रा
आज तोहमत बेवफ़ाई की लगा ले तू मगर
नाम मेरा है वफा की तर्जुमानी, लिख ज़रा ।
जो बनाना चाहता है खुशनुमा संसार को
अपने होंठो पे मसर्रत की कहानी लिख ज़रा।
लाल होगी यह जमी गर आदमी के खून से
रह न पाएगा गगन भी आसमानी लिख ज़रा ।
रात का सागर अगर गहरा तो यह भी तय समझ
कल किनारों पर न होगी सरगरानी, लिख ज़रा।
साथ में इंसान के इंसान रह सकता नहीं
उसके घर में संग रहते, आग पानी लिख जरा।
आसमां में घूमने वाले जमीं को देख तो
कम नहीं है कुछ यहाँ भी शादमानी, लिख ज़रा।
सादर
अदरणीय सौरभ जी इसका और क्या कारण हो सकता है सिवा इसके कि गजल में मेरा हाथ थोड़ा तंग है ...... =D , वैसे अगर आप स्पष्ट इशारा कर दें तो कृपा होगी और मैं सुधारने का प्रयत्न करूंगा ....
कई मिसरे बेबहर लग रहे हैं, आदरणीय नीरज नीर जी. ऐसा कैसे या क्यों लग रहा है ?
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