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दुख देने को आये जो हालात, सुनो-- (ग़ज़ल) -- मिथिलेश वामनकर

22---22---22---22---22---2

 

दुख देने को आये जो हालात, सुनो

अपना दिल भी पहले से तैनात सुनो

 

दे देना फिर तुम भी उत्तर, सुन लूँगा

लेकिन बेटा पहले पूरी बात सुनो

 

बाबुल के आँगन से आँसू कहते है

किस कारण से लौटी है बारात सुनो

 

एक सदी भी यारां कम पड़ जायेगी

चाहे तो तुम मेरे दुख दिन रात सुनो

 

फिर तो वो भी सारी बातें सुन लेंगे

उनसे अपनी पहले तो औकात सुनो

 

आज उजाले सूरज ने ही बेचे है

करते हैं सरगोशी ये जुल्मात, सुनो

 

नाहक ही न पत्थर है हर मुट्ठी में

शीशें वाले घर में थे वजूहात सुनो

 

सोचो तो ये कितना मुश्किल लगता है

खुद के सीने पर सिर रख जज्बात सुनो

 

 

 

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(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
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Comment by gumnaam pithoragarhi on November 24, 2015 at 7:45pm

एक सदी भी यारां कम पड़ जायेगी

चाहे तो तुम मेरे दुख दिन रात सुनो

 

आज उजाले सूरज ने ही बेचे है

करते हैं सरगोशी ये जुल्मात, सुनो

वाह खूब ग़ज़ल हुई है बधाई वाह

Comment by Shyam Narain Verma on November 24, 2015 at 1:28pm
बहुत ही शानदार ग़ज़ल , हार्दिक बधाई । सादर

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