For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अजनबी लाशें..

पाठशाला में  पढाती  
आँंखें खोल कर,
सृ-िष्ट की सबसे सुन्दर कृति
नारी का हृदयंगम पाठ
अक्षर-अक्षर निर्वस्त्र, लिजलिजा भाव
भाषा नि:शब्द!
पर, संवेदना के पहाड़े याद नहीं होते।
पानी, ........पानी-पानी
आँंखें सूख कर पथरा गयीं
गया, गया,... गया, .......हृदय भर आया

पर, गया!
फिर कभी नहीं आया।
शोध ! तो बस,
पन्नियों की विविधता पर
गिरते जल स्तर पर,
किन्तु, जीवन का अ-िस्थत्व
मूल्यांकन से कोसों दूर
एक मई को मजदूर दिवस
दो जून की रोटियॉं
शापित
सूरज और चॉंद निस्तारित हैं

...तालाब में
अतिथि गृहों के नीचे।
उदासीन तंत्र में बिखरती जिन्दगी
विकासवाद की।।

के0.पी.सत्यम/ मौलिक व अप्रकाशित

Views: 380

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 13, 2015 at 11:12pm

इंगितों को आपने तनिक बिखेर दिया है भाईजी.. इन्हें समेटते हुए पारपम्यता देना था. अन्यथा बिम्बों का कोलाज लगती है यह कविता.
वैए आपके विचारों में गठन है. इसके लिए हृदयतलसे बधाई.
शुभ-शुभ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 6, 2015 at 10:51am

आदरणीय केवल भाई,  बढिया कविता रची है , सच है जिस ज़िन्दगी के लिये इतनी दौड़ भाग है वही ज़िन्दगी शोध से बाहर है । बधाई आपको ।

Comment by kanta roy on July 4, 2015 at 11:25pm
बेहद मार्मिक भाव लिये अति संवेदनशील रचना आदरणीय केवल प्रसाद जी .....बहुत ही सुंदर गंभीर रचना हुई है ..... बधाई
Comment by Pari M Shlok on July 4, 2015 at 10:07am
बहुत गहरे भाव उम्दा प्रस्तुति

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
21 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post रोला छंद. . . .
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
21 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।"
21 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आदरणीय जी सृजन पर आपके मार्गदर्शन का दिल से आभार । सर आपसे अनुरोध है कि जिन भरती शब्दों का आपने…"
21 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को मान देने एवं समीक्षा का दिल से आभार । मार्गदर्शन का दिल से…"
21 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
21 hours ago
Admin posted discussions
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"बंधुवर सुशील सरना, नमस्कार! 'श्याम' के दोहराव से बचा सकता था, शेष कहूँ तो भाव-प्रकाशन की…"
Monday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"बंधुवर, नमस्कार ! क्षमा करें, आप ओ बी ओ पर वरिष्ठ रचनाकार हैं, किंतु मेरी व्यक्तिगत रूप से आपसे…"
Monday
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post लघुकविता
"बंधु, लघु कविता सूक्ष्म काव्य विवरण नहीं, सूत्र काव्य होता है, उदाहरण दूँ तो कह सकता हूँ, रचनाकार…"
Monday
Chetan Prakash commented on Dharmendra Kumar Yadav's blog post ममता का मर्म
"बंधु, नमस्कार, रचना का स्वरूप जान कर ही काव्य का मूल्यांकन , भाव-शिल्प की दृष्टिकोण से सम्भव है,…"
Monday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"अच्छे दोहे हुए हैं, आदरणीय सरना साहब, बधाई ! किन्तु दोहा-छंद मात्र कलों ( त्रिकल द्विकल आदि का…"
Monday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service