For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

विरह-हंसिनी हवा के झोंके

श्वेत पंख लहराए रे !

आज हंसिनी निठुर, सयानी

निधड़क उड़ती जाए रे !

 

अब तो हंसिनी, नाम बिकेगा

नाम जो सँग बल खाए रे !

होके बावरी चली अकेली

लाज-शरम ना आए रे !

 

धौराहर चढ़ राज-हंसनी,

किससे नेह लगाए रे !

कोटर आग जले धू-धूकर  

क्यों न उसे बुझाए रे !

 

ओरे ! हंसिनी, रंगमहल से

कहाँ तू नयन उठाए रे !

जिस हंसा के फाँस-फँसी

कोई उसका सच ना पाए रे !

 

सच तो एक ही, सुन रे, बतंगड़ !

तू ही भरम फैलाए रे !

क्षिति, जल, अनल, गगन, पवन

वही एक करत बिखराए रे !

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

-- संतलाल करुण 

Views: 957

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 12, 2015 at 10:16pm

आ. सन्तलाल करुणजी, मेर कहे को मान देने केलिए सादर धन्यवाद

Comment by Santlal Karun on July 12, 2015 at 7:10pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी,

जैसा कि आप ने सुझाया, मैंने रचना को पद-बंध रूप में व्यवस्थित कर दिया है | सुझाव और रचना के प्रति श्लाघात्मक प्रतिक्रिया  के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद ! 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 7, 2015 at 11:36pm

गीत सुन्दर है आदरणीय. निर्गुण की भावाभिव्यक्ति सरस धार में बही है. 

लेकिन इस रचना को शब्द की पंक्तियाँ क्यों दे दिये ? इसे देखिये -

विरह-हंसिनी  हवा के झोंके
श्वेत पंख लहराए रे !

आज हंसिनी निठुर, सयानी
निधड़क उड़ती जाए रे !

अब तो हंसिनी, नाम बिकेगा
नाम जो सँग बल खाए रे !

अब तो हंसिनी नाम बिकेगा
नाम जो सँग बल खाए रे !

होके बावरी चली अकेली
लाज-शरम ना आए रे !

धौराहर चढ़ राज-हंसनी,
किससे नेह लगाए रे !

कोटर आग जले धू-धूकर  
क्यों न उसे बुझाए रे !

ओरे ! हंसिनी, रंगमहल से
कहाँ तू नयन उठाए रे !

जिस हंसा के फाँस-फँसी
कोई  उसका सच ना पाए रे !

सच तो एक ही, सुन रे, बतंगड़ !
तू ही भरम फैलाए रे !

क्षिति, जल, अनल, गगन, पवन
वही एक करत बिखराए रे !

Comment by Santlal Karun on June 25, 2015 at 6:12pm

आदरणीय आदित्य कुमार जी,

श्लाघात्मक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार !

Comment by Santlal Karun on June 25, 2015 at 6:10pm

आदरणीय हरी प्रकाश जी,

रचना की सराहना के लिए हार्दिक आभार !

Comment by Santlal Karun on June 25, 2015 at 6:08pm

आदरणीय कांता मैडम,

रचना की प्रशंसा के लिए सहृदय आभार !

Comment by Santlal Karun on June 25, 2015 at 6:07pm

आदरणीय  डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी.

प्रशंसात्मक उद्गार के प्रति हार्दिक आभार !

Comment by Aditya Kumar on June 24, 2015 at 6:55pm

सुन्दर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय श्री Santlal Karun जी 

Comment by Hari Prakash Dubey on June 24, 2015 at 5:53pm

आदरणीय संतलाल करुण जी 

सच तो एक ही,

सुन रे, बतंगड़ !

तू ही भरम

फैलाए रे !

क्षिति, जल, अनल,

गगन, पवन

वही एक करत

बिखराए रे !...............सुन्दर रचना , बधाई  प्रेषित ! सादर  

Comment by kanta roy on June 24, 2015 at 5:24pm
ओरे ! हंसिनी,
रंगमहल से
कहाँ तू  
नयन उठाए रे !
जिस हंसा के
फाँस-फँसी
कोई  उसका सच
ना पाए रे ............. बहुत सुंदर मनोरम विरह की आग हँसनी किससे नेह लगाए रे .... बधाई इस सुंदर रचना आदरणीय संतलाल जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
20 hours ago
नाथ सोनांचली commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"आद0 सुरेश कल्याण जी सादर अभिवादन। बढ़िया भावभियक्ति हुई है। वाकई में समय बदल रहा है, लेकिन बदलना तो…"
yesterday
नाथ सोनांचली commented on आशीष यादव's blog post जाने तुमको क्या क्या कहता
"आद0 आशीष यादव जी सादर अभिवादन। बढ़िया श्रृंगार की रचना हुई है"
yesterday
नाथ सोनांचली commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post मकर संक्रांति
"बढ़िया है"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

मकर संक्रांति

मकर संक्रांति -----------------प्रकृति में परिवर्तन की शुरुआतसूरज का दक्षिण से उत्तरायण गमनहोता…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

नए साल में - गजल -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

पूछ सुख का पता फिर नए साल में एक निर्धन  चला  फिर नए साल में।१। * फिर वही रोग  संकट  वही दुश्मनी…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"बहुत बहुत आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। दोहों पर मनोहारी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी , सहमत - मौन मधुर झंकार  "
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"इस प्रस्तुति पर  हार्दिक बधाई, आदरणीय सुशील  भाईजी|"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service