भूख और थकावट से चूर दोनों असहाय भाई-बहन एक-दूसरे से लिपट कर लेट गये.
आज सुबह के भूकम्प में अपने मां-पापा को खो देने के बाद से ये छः वर्षीय भाई ही तो उसका सम्बल था.
दो वर्ष छोटी बहन को ऐसा लग रहा था जैसे अपने भाई के सीने पर सर रख देने से ही उसकी सारी समस्याओं का निदान हो गया हो.
अचानक खयाल आया, उसके भाई के लिये आखिर सम्बल कौन है ?
उसके नन्हे हाथ अनायास भाई के गालों पर फैल गये आँसुओं को साफ़ कर उसके धूल भरे बालों को सहलाने लगे.
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मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
//दूसरे, लघुकथा में अचानक खयाल आया, उसके भाई के लिये आखिर सम्बल कौन है ? के भाव को तनिक और व्यावहारिक स्वरूप दिया जा सकता है. संभव है, भाई गणेश जी का आशय यही है.//
जी आदरणीय सौरभ भईया, आप बिलकुल ठीक कह रहे हैं.
//सतत और दीर्घकालिक अभ्यास करते चलें हम. अन्यथा, कोई ’विशिष्ट पाठक’ अपनी असंवेदनशीलता के वशीभूत यह चेंपना नहीं भूलेगा कि ऐसों को कोई सुझाव देना बेकार है, जब उसको मानना ही नहीं है. जबकि बात यह है ही नहीं.//
जी भईया, ’विशिष्ट पाठक’ अपनी असंवेदनशीलता के वशीभूत कुछ भी चेप सकते हैं.
आपदा की स्थितियाँ कितनी निर्मम और कैसी भयावह होती हैं कि उनके तिरोहित होते ही न केवल वातावरण की भौतिक दशा में बल्कि मनस के सहज आयाम एवं वयस-सुलभ भावुक संप्रेषणों तक में आमूलचूल परिवर्तन हो चुका होता है.
बाल मनोविज्ञान के विशेष पहलू को सामने लाती इस लघुकथा के लिए बधाई.
इस प्रस्तुति के माध्यम से मेरे दोनों अनन्य अनुजों में हुई चर्चा रोचक तो है ही, बहुपक्षीय भी है.
सत्य है, चार साल की सामान्य बच्चियाँ या छः साल के औसत बच्चे जिस उन्मुक्त अनुभवहीनता को जीते हैं, वहाँ लघुकथा में वर्णित सोच सहज गले नहीं उतरती. लेकिन आपदाग्रस्त वातावरण कोई सामान्य दशा नहीं हुआ करता, न उस दशा में व्यवहार वयस-सुलभ और सहज ही होता है. अवश्य संभव है, बच्ची के मन में वयस्कों की तरह उच्च भाव न आये हों और न उसके मन में अपने अबोध किन्तु संकेन्द्रित दिखते भाई का सम्बल बन जाने का दम बना होगा. लेकिन परिस्थितियों का दवाब अवश्य औसत सोच के परे चला गया होगा, इसमें कोई शक नहीं है. वह भी उस परिस्थिति में जब दोनों ने अपने माँ-बाप को देखते ही देखते ही खो दिया हो. उसका interpretation कोई रचनाकार अपनी संवेदना के अनुरूप करे तो सहज स्वीकार्य होना चाहिये. उन पलों का व्यवहार बाल-मनोविज्ञान की सामान्य दशा से परिचालित हो ही नहीं सकता.
दूसरे, लघुकथा में अचानक खयाल आया, उसके भाई के लिये आखिर सम्बल कौन है ? के भाव को तनिक और व्यावहारिक स्वरूप दिया जा सकता है. संभव है, भाई गणेश जी का आशय यही है.
सतत और दीर्घकालिक अभ्यास करते चलें हम. अन्यथा, कोई ’विशिष्ट पाठक’ अपनी असंवेदनशीलता के वशीभूत यह चेंपना नहीं भूलेगा कि ऐसों को कोई सुझाव देना बेकार है, जब उसको मानना ही नहीं है. जबकि बात यह है ही नहीं.
कुछ भी हो, आपदा की स्थितियों में बालमन की सोच के आयाम में आये परिवर्तनों को शाब्दिक किये जाने का सुन्दर प्रयास हुआ है.
शुभेच्छाएँ
....//मैं भी बच्चों का मनोविज्ञान खूब समझता हूँ. //
इसके माने क्या, भैया ?.....
माने बताने की जरुरत है क्या ? यदि हाँ तो मेरी उक्त टिप्पणी को शून्य समझे.
//तो फ़िर वो एक्स्ट्रा आर्डिनरी सोच वाली ही है भैया....हा हा हा हा//
ऐसा ! फिर तो वाह वाह, बहुत खूब, क्या बेहतरीन लघुकथा लिखी है, ढेरों बधाईयाँ.
तो फ़िर वो एक्स्ट्रा आर्डिनरी सोच वाली ही है भैया....हा हा हा हा
//मैं भी बच्चों का मनोविज्ञान खूब समझता हूँ. //
इसके माने क्या, भैया ?
//लेकिन किसी असामान्य घटना के बाद लोगों का स्वभाव आश्चर्यजनक रुप से बदल जाता है//
भाई जी अन्य लोगों और एक चार साल की बच्ची में अंतर है, भूकंप के बाद डर के माहौल में एक पौढ़ सोच बिलकुल गले नहीं उतरता, मैं भी बच्चों का मनोविज्ञान खूब समझता हूँ. हां यदि पात्र एक्स्ट्रा आर्डिनरी हो तो कुछ भी संभव है.
मैंने पहले भी एक बात कही है... यह संभव है कि बगैर यह सोचे वो भाई के लिए संबल बन जाय.
आदरणीय गणेश भैया,
एक साधारण परिवेश और वातावरण में बच्ची का इस तरह का सवाल उठाना
//अचानक खयाल आया, उसके भाई के लिये आखिर सम्बल कौन है ?//
कुछ अजीब सा लगता है.और आपका इस तरह की शंका का उठना वाजिब लगता है.
लेकिन किसी असामान्य घटना के बाद लोगों का स्वभाव आश्चर्यजनक रुप से बदल जाता है. एक चार साल की बच्ची का भूकम्प आने के बाद, जब उसके मां बाप की मृत्यु हो गयी हो, इस तरह विचार इसी बात का द्योतक है.
आशा है मेरी कथा के मनोविज्ञान को समझाने का मेरा प्रयास आपकी शंका का समाधान कर दिया होगा
सादर.
//अचानक खयाल आया, उसके भाई के लिये आखिर सम्बल कौन है ?//
महज चार वर्ष की उम्र में इतनी बड़ी बात का ख्याल आना...तनिक अटपटा लगता है शुभ्रांशु भाई. हालाकि यह संभव है कि बगैर यह सोचे वो भाई के लिए संबल बन जाय.
लघुकथा पर सुन्दर प्रयास है, बधाई इस सृजन हेतु.
आदरणीय विरेन्द्र जी,
कथा के साथ अपने आप को जोड़ने के लिये धन्यवाद.
सादर.
आदरणीय पाण्डेय जी ... भाव भीनी और मार्मिक रचना!.
सुन्दर प्रस्तुती के लिए सादर बधाई.!
आदरणीय श्री सुनील जी.
कथा के साथ अपनी भावनाओं को जोड़ने के लिये आभार.
सादर.
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