For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

“पापा, मुझे ज्वाइंट और न्युक्लियर फ़ैमिली के मेरिट्स-डिमेरिट्स के बारे में पढ़ना है.”  राजू ने अपने पापा से कहा.

फिर, चहकते हुये पूछा, "पापा, ज्वाइंट फ़ैमिली में बडा मजा आता होगा न.. सब एक साथ रहते होंगे. खेलने को बाहर भी नहीं जाना पड़ता होगा”, 
“हाँ, बेटा मजा तो बहुत आता था. तेरे दादा-दादी, चाचा-चाची, हमसभी एक साथ रहते थे.. हरतरह से सुख-दुःख में एक साथ.. पर तेरे जन्म के बाद से हम भी न्युक्लियर फ़ैमिली हो गये.”
तभी किचेन से राजू की माँ का चीखता हुआ स्वर गूँजा, “राजूऽऽ.. " 
वो एकदम से पापा और राजू के बीच आ गयीं, "जब देखो टाइम पास करते रहते हो. सोशल-स्टडी के बाद मैथ्स भी देखना है..”  
फिर लगीं धाराप्रवाह ज्वाइंट फ़ैमिली के डिमेरिट्स बताने. राजू को उनके कई प्वाइंट आउट आफ़ सिलेबस लग रहे थे. 
उधर पापा अपने स्मार्टफ़ोन पर पुराने एल्बम के स्कैन्ड फैमिली फोटो को एक-एक कर उँगलियों से चलाते हुए देखते जा रहे थे, मानों ’आउट आफ़ सिलेबस’ लगते डिमेरिट्स को एक बार फिर से समझने की कोशिश कर रहे हों.
==========
शुभ्रांशु 
(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 848

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Shubhranshu Pandey on May 27, 2015 at 10:25am

आदरणीय गणेश भैया,

कथा पर अपने बहुमूल्य विचार देने के लिये आभार.

सादर.

Comment by Shubhranshu Pandey on May 27, 2015 at 10:22am

आदरणीय सौरभ भैया,

इस मंच ने हम जैसे कई लोगों को इस लायक बना दिया है कि अपनी बातों को हम स्पष्ट हो कर रख सकें. विचारों का आना एक बात है लेकिन उसे कागज/ नेट पर उतारना अलग बात है. सलाह और प्रोत्साहन पा कर अलग अलग विधाओं से अपनी बात रखना इसी मंच की देन है. 

आपको मेरी कथा पस्ंद आयी इसके लिये आभार.

सादर.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 26, 2015 at 5:57pm

बहुत सुन्दर, आधुनिकता के इस दौर में मुलभुत और बेसिक तथ्यों का आउट आफ सिलेबस होना अचंभित नहीं करता किन्तु यही तथ्य नींव है जिसके कारण हमारा होना सार्थक हो पाता है, अच्छी लघुकथा शुभ्रांशु भाई, बहुत बहुत बधाई.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 21, 2015 at 7:08pm

इस लघुकथा के विषय, इसकी कहन, इसके विन्यास में जिस तरह की गहनता है, वह समझने लायक भी है. बहुत ही संयत ढंग से प्रस्तुति का निर्वहन हुआ है. आपकी लघुकथाओं में मनोवैज्ञानिक भाव-भंगिमाओं को जिस महीनी से बुना जाता है वही इनकी श्रेणी बनाता है. हृदय से बधाई इस लघुकथा के लिए, शुभ्रांशु..

शुभेच्छाएँ

Comment by Shubhranshu Pandey on May 19, 2015 at 10:53pm

आदरणीय श्री सुनील जी, 

कथा पर अपने विचार देने के लिये घन्यवाद.

सादर.

Comment by Shubhranshu Pandey on May 19, 2015 at 10:52pm

आदरणीया कान्ता जी, 

कथा के विषय को समर्थन देने के लिये आभार. आत्मकेन्दित होने में स्व की भावना बहुत प्रबल हो जाती है. व्यक्ति अपने से इतर हर वस्तु या कारण को पराया समझ कर एक दिवार खडी़ कर लेता है और फ़िर उसी दिवार में कैद हो कर अन्य को पराया बनाने का आरोप लगाने लगता है और भूल जाता हैकि दिवार उसी ने कह्डी़ की है...

सादर.

Comment by shree suneel on May 17, 2015 at 11:17am
"सोशल-स्टडी के बाद मैथ्स भी देखना है..”
इसी मैथ्स ने तो...
बहरहाल, इस सार्थक लघु-कथा के लिए बधाईयां आदरणीय शुभ्रांशु जी.
Comment by Shubhranshu Pandey on May 16, 2015 at 2:19pm

आदरणीय कृष्ण मिश्रा जी, कथा पर विचार देने के लिये धन्यवाद.

Comment by Shubhranshu Pandey on May 16, 2015 at 2:16pm

आदरणीय जितेन्द्र जी,

कथा पर दुबारा आ कर विस्तृत विश्लेषण देना मन को छू गया. उत्साहित करने के लिये धन्यवाद. 

सादर.

Comment by Shubhranshu Pandey on May 16, 2015 at 2:14pm

आदरणीय विनय जी, रचना की तारीफ़ उत्साहित करती है. विचार रखने के लिये धन्यवाद.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   वाह ! प्रदत्त चित्र के माध्यम से आपने बारिश के मौसम में हर एक के लिए उपयोगी छाते पर…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत कुण्डलिया छंदों की सराहना हेतु आपका हार्दिक…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, कुण्डलिया छंद पर आपका अच्छा प्रयास हुआ है किन्तु  दोहे वाले…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया छंद रचा…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आती उसकी बात, जिसे है हरदम परखा। वही गर्म कप चाय, अधूरी जिस बिन बरखा// वाह चाय के बिना तो बारिश की…"
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीया "
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"बारिश का भय त्याग, साथ प्रियतम के जाओ। वाहन का सुख छोड़, एक छतरी में आओ॥//..बहुत सुन्दर..हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"चित्र पर आपके सभी छंद बहुत मोहक और चित्रानुरूप हैॅ। हार्दिक बधाई आदरणीय सुरेश कल्याण जी।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आयोजन में आपकी उपस्थिति और आपकी प्रस्तुति का स्वागत…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आप तो बिलासपुर जा कर वापस धमतरी आएँगे ही आएँगे. लेकिन मैं आभी विस्थापन के दौर से गुजर रहा…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service