For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ये मेरी वाली है (लघुकथा) // --शुभ्रांशु पाण्डेय

 जैऽऽ…….दुर्गामइया की जैऽऽऽ……

नाव के एकबारगी हिचकोले खाने के साथ ही दुर्गा एवं संलग्न प्रतिमाओं का विसर्जन हो गया. माता, माता के शृंगार, शेर के अयाल, महिष के सींग, असुर की फैली भुजायें, सबकुछ एक साथ जल में समाने लगे.  

मूर्ति के साथ साथ मनुआ भी पानी में कूदा. उसे न तो दानव का कोई डर था, न उसे माता के आशीर्वाद चाहिये थे.

“अबे.. ये मेरी वाली है..”, कहता हुआ वो डूबती हुई प्रतिमाओं की ओर तैर चला.

उसे उनके पास बाकियों से पहले पहुँचना था, ताकि आने वाली ठंड में अम्मा-बाबूजी को तापने के लिये लकड़ी के पटरों और खपच्चियों का इंतजाम हो सके.

(मौलिक और अप्रकाशित)

****************************

Views: 712

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 27, 2015 at 2:57pm

//अपनी बात कहना और समझाना कब से इस मंच पर पाठक की तौहीन की तरह देखा जाने लगा//

मैंने कब कहाँ कि यह पाठक की तौहीन है ? पाठक तो अपना मंतव्य ही देगा, उससे सहमत या असहमत होना लेखक का अधिकार है.

आपका कहना बिलकुल सही है, सभी लोग अलग अलग सोचते हैं.

Comment by Shubhranshu Pandey on May 27, 2015 at 2:49pm

आदरणीय गणेश भैया,

//आपकी लघुकथा है यदि आप शीर्षक से संतुष्ट है तो एक पाठक को ठीक लगने ना लगने से क्या फर्क पड़ता है.//

अपनी बात कहना और समझाना कब से इस मंच पर पाठक की तौहीन की तरह देखा जाने लगा, आपने भी कहा है कि

//यदि मैं लिखता तो इसका शीर्षक होता ...जरुरत //

इसका अर्थ ये है कि आपने भी कुछ सोचा फ़िर ये बात कही. अगर सभी एक फ़ार्मेट मे सोचने लगे तो साहित्य साफ़्ट्वेयर प्रोग्रामिंग हो जायेगा. फ़ीड करो और रिजल्ट लो.

इसी बात को  आदरणीय योगराज जी ने भी कहा है लेकिन जैसा मुझे उस समय लगा था वो मैने लिखा था. अब आगे मैं इस दिशा में ज्यादा ध्यान दूंगा. 

सादर.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 27, 2015 at 2:20pm

आपकी लघुकथा है यदि आप शीर्षक से संतुष्ट है तो एक पाठक को ठीक लगने ना लगने से क्या फर्क पड़ता है.

सादर. 

Comment by Shubhranshu Pandey on May 27, 2015 at 2:08pm

आदरणीय गणेश भैया,

जरुरत तो सबकी थी.

लेकिन यहां बात उस जरुरत को पूरा करने के लिये मची होड़ से है. जहां देवी की प्रतिमा पर भी अधिकार जताना पड़ रहा है और बताना पड़्ता है कि..... ये मेरी वाली है.

सादर.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 26, 2015 at 6:06pm

कथा अच्छी हुई है, शीर्षक बिलकुल ठीक नहीं लग रहा. यदि मैं लिखता तो इसका शीर्षक होता ...जरुरत 

बधाई इस प्रस्तुति पर.

Comment by Shubhranshu Pandey on October 9, 2014 at 9:59pm

आदरणीय जितेन्द्र जी कथा के मर्म को समझ कर विचार देने के लिये घन्यवाद.

Comment by Shubhranshu Pandey on October 9, 2014 at 9:58pm

आदरणीया वेदिका जी. विचार रखने के लिये धन्यवाद.

Comment by Shubhranshu Pandey on October 9, 2014 at 9:57pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी,

इस तरह के नजारे आपको हर जगह देखने को मिल जायेंगे...कथा को समर्थन दे कर विचार देने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद. सादर.

Comment by Shubhranshu Pandey on October 9, 2014 at 9:56pm

आदरणीय योगराज सर,

कुछ धमाकेदार शीर्षक सोच रहा था और मेरी नजर पात्र द्वारा कहे गये लाइन पर गयी जो मुझे मुफ़ीद लगी इसी से मैने उसका शीर्षक दे दिया. वैसे अगर बुरा ना माने तो आप इस मामले में मेरी सहायता कर सकते हैं...ये मेरे लिये भी सीखने का सबब होगा...

मुझे हौसला देने के लिये घन्यवाद.

सादर

Comment by Shubhranshu Pandey on October 9, 2014 at 9:48pm

आदरणीय विनय कुमारजी, कथा पर विचार देने के लिये धन्यवाद.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
7 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
7 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
8 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र ji कृपया देखिएगा सादर  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे मुहब्बत का होगा असर धीरे…"
9 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"चेतन प्रकाश जी, हृदय से आभारी हूं।  साप्ताहिक हिंदुस्तान में कोई और तिलक राज कपूर रहे होंगे।…"
9 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"धन्यवाद आदरणीय धामी जी। इस शेर में एक अन्य संदेश भी छुपा हुआ पाएंगे सांसारिकता से बाहर निकलने…"
9 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय,  विद्यार्जन करते समय, "साप्ताहिक हिन्दुस्तान" नामक पत्रिका मैं आपकी कई ग़ज़ल…"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"वज़न घट रहा है, मज़ा आ रहा है कतर ले मगर पर कतर धीरे धीरे। आ. भाई तिलकराज जी, बेहतरीन गजल हुई है।…"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
9 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीया, पूनम मेतिया, अशेष आभार  आपका ! // खँडहर देख लें// आपका अभिप्राय समझ नहीं पाया, मैं !"
10 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय रिचा यादव जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
10 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"अति सुंदर ग़ज़ल हुई है। बहुत बहुत बधाई आदरणीय।"
10 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service