For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : मैं तो नेता हूँ जो मिल जाए जिधर, खा जाऊँ

बह्र : २१२२ ११२२ ११२२ २२

 

मैं तो नेता हूँ जो मिल जाए जिधर, खा जाऊँ

हज़्म हो जाएगा विष भी मैं अगर खा जाऊँ

 

कैसा दफ़्तर है यहाँ भूख तो मिटती ही नहीं

खा के पुल और सड़क मन है नहर खा जाऊँ

 

इसमें जीरो हैं बहुत फंड मिला जो मुझको

कौन जानेगा जो दो एक सिफ़र खा जाऊँ

 

भूख लगती है तो मैं सोच नहीं पाता कुछ

सोन मछली हो या हो शेर-ए-बबर, खा जाऊँ

 

इस मुई भूख से कोई तो बचा लो मुझको

इस से पहले कि मैं ये शम्स-ओ-क़मर खा जाऊँ

-----------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 710

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 27, 2015 at 10:21am
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सौरभ जी

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 18, 2015 at 6:38pm

जाने आपके ’नेता’ की इच्छा कहाँ तक फलीभूत हुई. लेकिन आपके ग़ज़लकार को मुझसे ’वाह-वाह’ अवश्य सुनना चाहिये..
बहुत खूब !

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 16, 2015 at 1:27pm

शुक्रिया आ. वीनस जी

Comment by वीनस केसरी on May 16, 2015 at 1:20am

बहुत खूब जनाब, नाम न भी दिखता तो मैं बता देता ये किसकी ग़ज़ल है

जिंदाबाद भाई

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 13, 2015 at 10:20pm

आ. केवल प्रसाद जी विष पिया और खाया दोनों जाता है। मुझे आश्चर्य है कि आपने आज तक "उसने विष खाकर अपनी जान दे दी", "उसने विष खा लिया" जैसा वाक्य नहीं पढ़ा। क्योंकि विष तरल और ठोस दोनों अवस्थाओं में हो सकता है। जहर के साथ भी यही नियम लागू है, उसे भी खाया और पिया दोनों जा सकता है।

अश’आर पसंद करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 13, 2015 at 10:17pm

तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ आ. गिरिराज भंडारी जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 13, 2015 at 10:17pm

बहुत बहुत शुक्रिया जनाब इंतज़ार साहब

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 13, 2015 at 10:16pm

बहुत बहुत शुक्रिया आ. मिथिलेश वामनकर  जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 13, 2015 at 10:16pm

शुक्रिया आ. Vijai Shanker जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 13, 2015 at 10:15pm

बहुत बहुत शुक्रिया जनाब Samar kabeer  साहब

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
13 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आ. भाई तमाम जी, हार्दिक आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service